मध्य प्रदेश की कमलनाथ सरकार भी केंद्र के नक्शे-कदम पर चल रही है। वो केंद्र की मोदी सरकार की तर्ज पर प्रदेश के अनुपयोगी कानूनों को रद्द करने पर विचार कर रही है। अगर ऐसा हुआ तो प्रदेश में करीब 50 कानून ख़त्म किए जा सकते हैं।
कमलनाथ सरकार ऐसे कानूनों के बारे में गंभीरता से विचार कर रही है, जिनका कोईउपयोग नहीं है। ऐसे कानून सिर्फ बोझ बढ़ा रहे हैं।
सरकार के कहने पर राज्य विधि आयोग ने ऐसे कानूनों का अध्ययन शुरू कर दिया है। अब तक लगभग एक हज़ार कानूनों का अध्ययन शुरू किया जा चुका है। उनमें से करीब 350 कानूनों का परीक्षण पूरा कर लिया गया है।
इनमें से 50 कानून ऐसे हैं जिनका वर्तमान स्थिति में कोई उपयोग ही नहीं है। ये पूरी तरह अनुपयोगी पाए गए हैं। ये वो कानून हैं जिनकी या तो अवधि समाप्त हो चुकी है या फिर वर्तमान में प्रभावी नहीं हैं।
राज्य विधि आयोग ने तो ऐसे अनुपयोगी कानूनों को रद्द करने की सिफारिश का ड्राफ्ट भी तैयार कर लिया है। इसे अगले एक माह में राज्य सरकार को सौंपा जा सकता है।
आयोग इन्हें रद्द करने के लिए राज्य सरकार को सिफारिश भेजने जा रहा है। वर्ष 2018 में गठित हुए प्रदेश के तीसरे राज्य विधि आयोग ने अनुपयोगी पुराने कानूनों को हटाने और वर्तमान परिस्थितियों के हिसाब से नए कानून बनाने पर काम शुरू किया है।अनुपयोगी कानून रद्द करने संबंधी ड्राफ्ट पर पहले विधि विभाग काम करेगा।
द भोपाल गैस त्रासदी (जंगिन संपत्ति के विक्रयों को शून्य घोषित करना) अधिनियम 1985-गैस त्रासदी के डर से भोपाल से भागने वालों की संपत्ति बचाने के लिए यह कानून सीमित अवधि के लिए लाया गया था।
इसमें 3 से 24 दिसंबर 1984 के मध्य बिकी संपत्ति के विक्रय को शून्य करने का प्रावधान था। इसकी अवधि 1984 में ही समाप्त हो गई है।
द मप्र एग्रीकल्चरिस्ट लोन एक्ट 1984
इस कानून को नॉर्दन इंडिया तकावी एक्ट 1879 के नियमों में संशोधन के लिए लाया गया था। इसमें लोन राशि की वसूली का अधिकार सरकार को दिया था।
वर्तमान में राष्ट्रीकृत और सहकारी बैंक लोन देते हैं और वही वसूली करते हैं, इसलिए कानून अप्रभावी हो गया है।
मप्र कैटल डिसीजेज एक्ट 1934 और मप्र हॉर्स डिसीजेज एक्ट 1960
दोनों कानूनों को पालतु पशुओं की सुरक्षा के लिए बनाया गया था।इसमें पशुओं की बीमारी और संक्रमण से सुरक्षा का प्रावधान था।
वर्ष 2009 में केंद्र सरकार ने इसके लिए नया कानून बना दिया है, जो दोनों कानूनों से व्यापक है। इसलिए यह कानून भी अनुपयोगी हो गया है।
मप्र ग्रामीण ऋण विमुक्ति अधिनियम 1982
यह कानून भूमिहीन कृषि मजदूरों, ग्रामीण मजदूरों और छोटे किसानों को 10 अगस्त 1982 से पहले के समस्त ऋणों से मुक्त कराने के लिए बनाया गया था।
इस अधिनियम की धारा-3 में यह प्रावधान था कि ऋण न चुकाने वाले किसी भी संबंधित के खिलाफ न तो अदालत में मामला दर्ज होगा और न ही रिकवरी के अन्य उपाय किए जाएंगे।
इस अवधि से पहले के सभी मामले खत्म हो चुके हैं, इसलिए यह कानून भी प्रभावी नहीं बचा है।
विभाग ये देखेगा कि जिन कानूनों की सिफारिश की गई है, वे वाकई अनुपयोगी हो गए हैं या नहीं।
यदि विभाग की जांच में भी यह कानून अनुपयोगी पाए जाते हैं तो रिपोर्ट के साथ आयोग की सिफारिश शासन को भेज दी जाएगी।इसके बाद सरकार इन कानूनों को रद्द करने का फैसला लेगी।