इंदौर- मध्य प्रदेश के आदिवासी बहुल अलीराजपुर और झाबुआ इलाकों में अलग ही नज़ारा देखने को मिल रहा है। यहां बीयर का सरूर छाया हुआ है। पेड़ से बनी ताड़ी और देसी शराब की जगह अब आदिवासियों को बीयर की लत लग गई है। इस मामले में महिलाएं भी पुरुषों से पीछे नहीं हैं।
आदिवासी समाज में महिलाएं भी पुरुषों के साथ ताड़ी पीती रही हैं, उनका पीना गलत नहीं माना जाता। जैसे-जैसे आदिवासी लोग शहरों के संपर्क में उन्हें शराब और बीयर का भी पता लग गया। आलम ये है कि झाबुआ और अलीराजपुर में बीयर की खपत इंदौर जैसे शहर से भी ज्यादा हो गई है।
इन आदिवासी महिलाएं सीधे बोतल से या फिर हथेली लगाकर बीयर पीती नजर आ जाती हैं। अलीराजपुर के गांवों में यह नजारा बहुत ही आम है।
बीयर यहां खून -खराबे का कारण भी बन गई है। अलीराजपुर के सोरवा गांव में पिछले दिनों एक आदिवासी ने अपने दोस्त को तीर से मार दिया। दोस्त का कसूर ये था कि उसने बीयर पार्टी में उसे बुलाया नहीं था। नशे के कारण महिलाओं द्वारा अपराध के मामले भी लगातार बढ़ रहे हैं।
अलीराजपुर एसपी कुमार सौरभ ने बताया कि पुलिस अपराधों पर एक सोशल स्टडी करवा रही है। इसके मुताबिक पिछले 3 साल में यहां हुए अपराधों में से करीब 35 फीसदी का कारण नशाखोरी है।
समाजशात्र की प्रोफेसर डॉ मीनाक्षी स्वामी बताती हैं कि आदिवासी संस्कृति में महिलाओं का ताड़ी पीना सदियों पुराना चलन है, उससे उनकी चेतना शून्य नहीं होती थी। पहले बहुत ही विकट और विपरीत परिस्थिति में ही आदिवासी महिलाएं हथियार उठाती थी। यहीं कारण है कि आदिवासी महिलाओं द्वारा अपराध के बहुत ही कम केस होते थे लेकिन अब क्षेत्र में अपराध का ग्राफ तेजी से बढ़ रहा है। इस संख्या का बीयर की खपत के साथ सीधा संबंध नजर आता है। सरकार को आदिवासी इलाकों में शराब की बिक्री पर रोक लगाना चाहिए।