चुनावी महायुद्ध आज शाम खत्म हो गया। नतीजों की घोषणा की तारीख 18 दिसंबर तय है। चुनावी महायुद्ध खत्म होते ही इलेक्ट्रॉनिक मीडिया जनता का मूड लेकर एग्जिट पोल की बारिश कर दी है। आंकड़ों और कयासों के योग से किसी एक पार्टी के जीत की भविष्यवाणी कर दी जाएगी और ग्रहदशा की गणना करके किसी पार्टी का सूपड़ा साफ कर दिया जाएगा। 18 तक ये आभासी नतीजे ही हर बहस और योजनाओं का आधार होंगे। लेकिन क्या ये एग्जिट पोल इतने भरोसे के काबिल हैं?
वैसे ये भी नहीं है कि हर बार एग्जिट पोल सफेद हाथी साबित हों वर्ष 1998 में पोल के कयास आसपास रहे थे नतीजे, देश में जैसे-जैसे इलेक्ट्रॉनिक मीडिया का विस्तार हुआ, सर्वेक्षण एजेंसियों ने भी अपने पैर फैलाए। इस गठजोड़ की बदौलत ‘एग्जिट पोल’ भी जवान होता गया।
1996 में चुनी गई 11वीं लोकसभा जब 2 सालों में ही धराशायी हो गई, तब अगली लोकसभा के गठन के लिए 1998 में चुनाव कराए गए। 11वीं लोकसभा में 161 सीटें जीतकर भाजपा सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी थी।
उस वर्ष तमाम एग्जिट पोलों में भाजपा और उसके सहयोगियों को सबसे बड़े गठबंधन के रूप में उभरता दिखाया गया। कांग्रेस 1996 में ही कमजोर हो चुकी थी, 1998 के एग्जिट पोल में उसे और कमजोर कर दिया गया।
अन्य दलों के हैसियत को भी मजबूत ही बताया गया। उस वर्ष नतीजे आए तो कयास लगाने वालों को भी मजा आया। नतीजे एग्जिट पोल के आसपास ही थे।तब कांग्रेस के बारे सही रहे थे कयास डीआरएस ने भाजपा गठबंधन को वास्तविक नतीजों से महज तीन सीटें ही कम दी थीं। भाजपा गठबंधन ने 252 सीटें हासिल की थीं, जबकि डीआरएस सर्वें में उन्हें 249 सीटें दी गई थीं।
सर्वेंक्षण एजेंसियों पर भी ‘इंडिया शाइनिंग’ का असर खूब दिखा था
कांग्रेस के बारे कयास लगाने में ये एजेंसी लगभग सफल रही थी। कांग्रेस ने 166 सीटें हासिल की थी, जबकि एजेंसी ने उसे 155 सीटें दी थी। डीआरएस ने अन्य दलों को 139 सीटें दी थी, लेकिन उन्हें महज 119 सीटें ही मिली थीं।
इंडिया टूडे-सीएसडीएस के सर्वे ने भाजपा गठबंधन को 214 सीटें दी थीं, जो वास्तविक नतीजों के आसपास भी नहीं थी। भाजपा गठबंधन को 252 सीटें हासिल हुई, भाजपा गठबंधन को 252 सीटें हासिल हुई थी, कांग्रेस के बारे में एजेंसी का अंदाज जरूर ठीक था। एजेंसी ने कांग्रेस को 164 सीटें दी थी। वास्तविक नतीजों से मात्र दो सीटों का अंतर था। कांग्रेस को 166 सीटें हासिल हुईं थी।
आउटलुक/एसी निल्सन और फ्रंटलाइन/सीएमएस ने भाजपा गठबंधन को क्रमशः 238 और 230 सीटें दी थीं। कांग्रेस को उन्होंने क्रमशः 149 और 150 सीटें दी थी। भाजपा गठबंधन ने उस वर्ष 252 और कांग्रेस ने 166 सीटें हासिल की थी। एजेंसियों के लिए संतुलित रहा था 1999, वास्तविक नतीजों के लिहाज से 1999 का साल एग्जिट पोल करने वाली एजेंसियों के लिए संतुलित रहा था। सत्ताधारी भाजपा गठबंधन के बारे में उन्होंने जो भी भविष्यवाणी की थी, सब धरी की धरी रह गई थी। हां, कांग्रेस को लेकर की गई उनकी गणनाएं कमोबेस ठीक थीं।
उस वर्ष भाजपा गठबंधन को 296 सीटें हासिल हुई थीं, कांग्रेस को 134 और अन्य दलों को 113, जबकि इंडिया टूडे/इनसाइटर के सर्वे में भाजपा गठबंधन को 334 सीटें, टाइम्सपोल/डीआरएस के सर्वें में 332, आउटलुक/सीएमएस ने 324, पायोनियर/आरडीआई ने 316 और एचटी/एसी निल्सन ने 300 सीटें दी थीं। कांग्रेस को एजेंसियों ने 139 से 146 के बीच सीटें दी थी, पार्टी को 134 सीटें हासिल हुईं थीं । सभी को चौंका दिया था 2004 के नतीजों ने भारत के चुनावी इतिहास को ये वो साल था, जबकि एग्जिट पोल एजेंसियां ही नहीं, राजनीतिक दल, चुनावी विश्लेषणों के महारथी और आम लोग सभी चौंक गए थे।
राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनावों के नतीजों से उत्साहित राजग सरकार ने समय से पहले लोकसभा चुनाव कराने का फैसला किया था। भाजपा ‘इंडिया शाइनिंग’ के लहर पर सवार होकर चुनाव मैदान में उतरी थी। सर्वेंक्षण एजेंसियों पर भी ‘इंडिया शाइनिंग’ का असर खूब दिखा था।
सर्वेंक्षणों ने अन्य दलों के मामले में मुंह की खाई थी
हालांकि उन्होंने भाजपा को 1999 के मुकाबले कम सीटें दी थी, लेकिन बहुमत के आसपास ही रखा था। कांग्रेस को उन्होंने मजबूत बताया था, लेकिन इतना भी नहीं कि वह सरकार बना ले। अन्य दलों के बारे में अंदाजा भी ना लगा पाए आउटलुक/एमडीआरए ने भाजपा गठबंधन को 284, सहारा/डीआरएस ने 270, स्टार/सीवोटर ने 269, जी/तालीम ने 249, आजतक/ओआरजी मार्ग ने 248 और एनडीटीवी/इंडियन एक्सप्रेस ने 240 सीटें दी थीं। जबकि वास्तव में भाजपा गठबंधन को मात्र 189 सीटें हासिल हुईं थीं।
कांग्रेस गठबंधन को अलग-अलग सर्वेक्षणों में 164 से 197 के बीच सीटें दी गई थीं। कांग्रेस गठबंधनों ने इन कायसों पर पानी फेरते हुए 222 सीटें हासिल की। सर्वेंक्षणों ने अन्य दलों के मामलें में मुंह की खाई थी।
अन्य दलों को 94 से 110 सीटें दी गईं थी, जबकि उन्होंने 132 सीटें हासिल की थी। सरकार के गठन में इनकी महत्वपूर्ण भूमिका रही थी। अब बात करते हैं 2009 के चुनावों की आइए, अब पिछले चुनावों की बात करते हैं यानी 2009 की। 2004 के चुनावों के बाद जब सोनिया गांधी ने प्रधानमंत्री पद स्वीकार करने से मना किया तो मनमोहन सिंह को यूपीए की ओर से प्रधानमंत्री पद के लिए चुना गया।
पांच साल बाद यूपीए गठबंधन दोबारा चुनावों मे उतरा तो मनमोहन सिंह को ही अपना चेहरा बनाया। भाजपा और आरएसएस की ओर से प्रधानमंत्री पद का चेहरा थे लालकृष्ण आडवाणी। राजनीतिक विश्लेषक उन चुनावों में न कांग्रेस का जीत का दावेदार मान रहे थे और ना भाजपा को। लिहाजा, प्रधानमंत्री पद के और भी कई दावेदार थे।
भाजपा गठबंधन को 159 सीटें ही हासिल हुईं तमाम सर्वेक्षणों में जैसे दावे किए जा रहे थे, वे प्रधानमंत्री पद का झगड़ा और बढ़ा रह थे। बहुमत क्या, बहुमत के आसपास भी किसी को नहीं रखा जा रहा था। यूपीए, एनडीए और अन्य दल सभी को 200 से कम सीटें दी जा रही थीं।
न्यूज एक्स के सर्वे ने भाजपा गठबंधन को 199, स्टार न्यूज/एसी निल्सन के सर्वे ने 197, टाइम्स नाऊ ने 183, हेडलाइंस टुडे ने 180, एनडीटीवी ने 177, और सीएनएनएन/आईबीएन ने 175 सीटें दी थीं। जबकि, वास्तविक नतीजे आए तो भाजपा गठबंधन को मात्र 159 सीटें ही हासिल हुईं। यूपीए गठबंधन ने 262 सीटें हासिल की सर्वेक्षण एजेंसियों ने पिछले चुनाव में कांग्रेस गठबंधन की सत्ता में बहुमत के साथ वापसी की संभावना से भी इनकार किया।
न्यूज एक्स के सर्वे ने यूपीए गठबंधन को 191, स्टार न्यूज/एसी निल्सन के सर्वे ने 199, टाइम्स नाऊ ने 198, हेडलाइंस टुडे ने 191, एनडीटीवी ने 216, और सीएनएनएन/आईबीएन ने 195 सीटें दी थीं। जबकि नतीजे इन कयासों के ठीक उलट रहे। यूपीए गठबंधन ने 262 सीटें हासिल की और सत्ता में दोबारा वापसी की।