बैतूल- पिछले आठ दिनों से बैतूल कलेक्टर कार्यालय के समक्ष आन्दोलनरत आदिवासियों की आखिर जीत हुई। प्रशासन ने उनकी दोनों मांगों को मान लिया| पहला, 19 दिसम्बर उमरडोह में प्रशासन के दल ने वनभूमि से आदिवासीयों के कब्जे हटाते समय जो ज्यादती की उस मामले में सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर बैतूल में बने शिकायत निवारण प्राधिकरण का निर्णय मानकर सरकार और जिला प्रशासन कार्यवाही करेगा ।
दूसरा, वन अधिकार कानून, 2006 को उसकी भावना और प्रावधानों के तहत उसे पूरे जिले में लागू किया जाएगा| सरकार की इस घोषणा के बाद श्रमिक आदिवासी संगठन और समाजवादी जन परिषद के बैनर तले 24 दिसम्बर से जारी आन्दोलन इस घोषणा के साथ समाप्त हुआ कि इन दोनों मुद्दों पर कार्यवाही नहीं होने पर शीघ्र तीव्र आन्दोलन होगा
उपरोक्त निर्णय म .प्र. में वनभूमि से अतिक्रमण हटाने के नाम पर वन विभाग व्दारा आदिवसीयों पर किए जाने वाले अत्याचार पर लगाम लगाने और वन अधिकार कानून के क्रियान्वयन को एक नए स्तर तक ले जाने में एक उदाहरण साबित होगा| वन अधिकार कानून कानून में धारा 3 (1) में जंगल पर दिए गए अधिकार धारा 6 के अनुसार ग्रामसभा को तय करनना है और धारा 4(5) के अनुसार इसे तय होने तक जिले में इस कानून का उल्लघन करते हुए किसी को भी उसके कब्जे की जंगल जमीन से बेदखल नहीं किया जाए।
लेकिन आमतौर पर पूरे प्रदेश में वन विभाग और प्रशासन वन अधिकार कानून की बजाए वन कानून, 1927 को तवज्जों दे आदिवासीयों को वनभूमि से बेदखल करने में लगा है। संगठन की इस बात को भी शासन ने माना कि किस आधार पर दावे तय होंगे इसमें पी ओ आर या गूगल मेप के बात नहीं है। इसलिए कानून में जिन 13 सबूतों को मान्यता दी गई है; उसे मानते हुए कानून की भावना के तहत आदिवासीयों पर हुए ऐतिहासिक कानून को दूर की जाएगा ।
सरकार और प्रशासन की और से बैतूल सांसद ज्योती धुर्वे, बैतूल विधायक हेमंत खंडेलवाल, भैसदेही विधायक महेंद्रसिंग चौहान और बैतूल कलेक्टर ने उक्त बातों को अपनी मीडिया ब्रीफिंग में भी स्वीकारा। संगठन ने आज सुबह इस दल से हुई चर्चा के बाद यह शर्त रखी थी कि जिस प्रशासन ने उनके घर तोड़े; फसल और पानी ,में जहर डाला उसे वो कैसे उसकी जाँच पर विश्वास करे ले| इसलिए उन्होंने इस मामले में शिकायत निवारण प्राधिकरण के निर्णय को मानने की शर्त रखी थी ।
आमतौर पर उपरोक्त निर्णय म.प्र. में वनभूमि से अतिक्रमण हटाने के नाम पर वन विभाग व्दारा आदिवसीयों पर किए जाने वाले अत्याचार पर लगाम लगाने और वन अधिकार कानून के क्रियान्वयन को एक नए स्तर तक ले जाने में एक उदाहरण साबित होगा ।
उल्लेखनीय है कि, हरदा और बैतूल और खंडवा जिले में कार्यरत श्रमिक आदिवासी संगठन ने एक जनहित याचिका के तहत सुप्रीम कोर्ट के सामने यह बात रखी थी कि जो आदिवासी और उनके साथ काम करने वाले कार्यकर्ता जंगल पर अपना हक़ मांगते है और वन विभाग और पुलिस के भ्रष्ट्राचार के खिलाफ आवाज उठाते है, उन्हें वन विभाग और पुलिस छूटे मामलों में फंसाती है।
ऐसे में आदिवासीयों के लिए कोर्ट में आपराधिक मामले में पेशी आन-जान बहुत खर्चीला होता है| इसमें आदिवासीयों की शिकायत पर एफ आई आर दर्ज नहीं करने की बात भी थी | संगठन की इस दलील को मानते हुए न्यायालय ने संगठन के कर्यछेत्र के जिलों हरदा और बैतूल और खंडवा में एक शिकायत निवारण प्राधिकरण का गठन कर उस पर निम्न जवाबदारी डाली उपरोक्त ज़िलों में झूठी शिकायत या मामला दर्ज करने या एफआईआर दर्ज करने से इंकार करने या किसी सरकारी अधिकारी या कर्मचारी (पुलिस समेत) द्वारा अपने अधिकार का दुरुपयोग करने की सूचना प्राप्त करना।
ख. ऐसी कोई भी सूचना प्राप्त होने पर उसकी जांच की जाएगी और सही पाए जाने पर प्राधिकरण ज़िला न्यायाधीश, राज्य विधिक सेवा और मुख्य सचिव को अपनी सिफारिशों के साथ रिपोर्ट प्रस्तुत करेंगे जिसमें अनुशासनात्मक कार्रवाई सम्बंधी सिफारिशें भी शामिल होंगी। प्राधिकरण अपनी सिफारिशों पर अमल का फॉलो-अप करेगा।
ग. सूचना की सत्यता पता करने के लिए किसी भी गैर सरकारी संगठन या रिटायर्ड अधिकारी की मदद लेना। इसके लिए प्राधिकरण गैर सरकारी संगठन अथवा रिटायर्ड अधिकारी को उनकी सेवाओं के लिए उपयुक्त मानदेय देने की सिफारिश करेगा ।
घ. उपरोक्त ज़िम्मेदारियों से जुड़ा कोई अन्य कार्य हाथ में लेना। इतना ही नहीं, यदि उपरोक्त तीन ज़िलों का कोई भी आदिवासी गिरफ्तार किया जाता है, तो गिरफ्तारी करने वाले अधिकारी द्वारा इसकी लिखित सूचना प्राधिकरण के अध्यक्ष तथा ज़िला विधिक सेवा के सचिव को गिरफ्तारी के 24 घंटों के अंदर दी जाएगी। ज़िला विधिक सेवा प्राधिकरण का सचिव ऐसे किसी भी व्यक्ति को मुफ्त कानूनी सहायता देने को बाध्य होगा। श्रमिक आदिवासी संगठन ने इस धरने मैं सहयोग देने वाले मीडियाकर्मियों से लेकर शहर के हर तबके और समूह को सहयोग के लिए धन्यवाद दिया ।