हां कांग्रेस जो कह रही है उससे बढ़ कर नरेंद्र मोदी सरकार को इस बात पर दूध का दूध, पानी का पानी करना चाहिए कि मालेगांव की जांच में ऐसा क्या था जिससे दिग्विजय सिंह, पी चिदंबरम, राहुल गांधी ने भगवा आतंक का दुनिया में हल्ला किया? हां, इन तीन नेताओं और कांग्रेस ने दुनिया में हिंदूओं को कलंकित किया है। क्या इनके पास कोई तथ्य था? क्या किसी तथ्य पर 2008 से ले कर अब तक याकि 2016 तक कोई हिंदू अदालत में आतंकी प्रमाणित हुआ? आठ साल की लंबी जांच, पी चिदंबरम, सुशील कुमार शिंदे जैसे प्रतिबद्व, सख्त गृह मंत्री की निज निगरानी में हुई। बावजूद यदि आज तक कोई हिंदू आंतकी प्रमाणित नहीं हुआ हैं तो क्या यह हिंदू को बदनाम करने, हिंदू विरोधी कांग्रेस साजिश नहीं बनती? कांग्रेस की तरफ से कल ही आनंद शर्मा ने आरोप लगाया है। कांग्रेस के कहे का अर्थ है कि हिंदू आंतकी हैं लेकिन पीएमओ अपनी दखल से एनआईए के जरिए काले को सफेद बना रहा है!
कैसा झूठ है यह कांग्रेस का! क्या सोनिया गांधी और राहुल गांधी को पता है कि इसका हिंदूओं में क्या असर होगा और मुसलमानों में क्या होगा? मुसलमान के दिमाग में जहर घुलना है कि नरेंद्र मोदी, आरएसएस, भाजपा अपनी हिंदूपरस्ती में हिंदू आंतकियों को छोड़ दे रही है। बाबरी मसजिद, गुजरात के दंगों जैसा जहर! बदले की भावना की चिंगारियां सुलगाना।
और कांग्रेस के साथ ऐसा कई लोग कर रहे हंै। कई अखबारों में संपादकीय आए है। चंडीगढ़ के ‘द ट्रिब्यून’ ने लिखा एनआईए की साख का भठ्ठा बैठा। तब मसूद अजहर पर एनआईए जांच को दुनिया मानेगी? उधर ‘टाईम्स आफ इंडिया’ ने ‘मालेगांव पर अंधेरा’ में नसीहत दी कि भारत की एजेंसियां आपस में लड़ने के बजाय आतंक के खिलाफ लड़े। ‘द इंडियन एक्सप्रेस’ की नसीहत है कि सरकार को दोनों तरफ समभाव वाली एप्रोच दर्शानी चाहिए। जाहिर है मोदी सरकार पर ‘हिंदू आतंकी’ छोड़ने का ठिकरा फूट रहा है। मोदी सरकार, एनआईए और एनआईए प्रमुख शरद कुमार को हर तरह से बदनाम करने की मुहिम है। इसमें हर्ज नहीं है मगर चिंता वाली बात है कि भारत का मुसलमान क्या सोच रहा होगा या क्या सोचेगा? वह तो यही सोचेगा कि भारत राष्ट्र-राज्य, उसकी व्यवस्था, उसकी चुनी सरकार भेदभावपूर्ण है। उसके मन में शक, नफरत और बदले की भावना क्या नहीं बनेगी? क्या यह कांग्रेस चाहती है?
कांग्रेस ने अपनी सत्ता में रहते हुए ‘भगवा आतंक’ का झूठ फैलाया। भारत में, हिंदूओं में ‘भगवा आंतकवाद’ दिखलाने के लिए साजिश रची। इस बात को खम ठोंक कर, पुष्ठ भाव से कहने में इसलिए हर्ज नहीं है क्योंकि छह साल राज में रहते हुए भी चिंदबरम, उनकी बनवाई एजेंसी एनआईए और यूपीए सरकार का पूरा प्राणबल यदि एक भी भगवा आरोपी को सजा नहीं दिला पाया। सुप्रीम कोर्ट तक को नहीं समझा सके, साक्ष्य नहीं दे पाए कि आरोपियों पर मकोका एक्ट लगा रहना चाहिए तो उसका अर्थ यही है कि कांग्रेस ने हिंदूओं के खिलाफ या यों कहे कि हिंदू और मुसलमान दोनों के प्रति समभाव दिखाने के लिए जबरदस्ती हिंदूओं को आतंकी करार देने की साजिश रची।
हां, कांग्रेस और सेकुलर मीडिया आज जो यह हल्ला कर रहा है कि मालेगांव बम विस्फोट के आरोपी, प्रज्ञा ठाकुर, कर्नल पुरोहित आदि से एनआईए ने मकोका याकि सांगठिक अपराध गिरोह (जो माफियाओं के खिलाफ बना हुआ है) एक्ट को हटा कर केस को ढीला बनाया है ,उस पर 15 अप्रैल 2015 को सुप्रीम कोर्ट से फैसला है कि इस एक्ट को लगाए जाने का आधार नहीं है। ध्यान रहे सारा केस इस मकोका में जबरदस्ती, मार-मार कर कराए गए बयानों पर है!
सो मोदी सरकार को देरी नहीं करनी चाहिए। ईमानदार जज की अध्यक्षता में वह एक आयोग गठित कर मालूम कराए कि मनमोहन सरकार ने भगवा आतंक का हल्ला करने की साजिश में काम किया या नहीं? राहुल गांधी, सुशील कुमार शिंदे, चिदंबरम आदि ने कैसे पहले भगवा आंतकवाद का फतवा मारा? क्या यह एटीएस और एनआईए की जांच को प्रभावित करने, उसे दिशा देने के मकसद से नहीं था? क्या एनआईए की जांच के कागज चिदंबरम मंगवा कर फोलो या गाईड करते थे? हेमंत करकरे और दिग्विजयसिंह में कितनी बाते होती थी और एक अफसर व नेता में यह क्या रिश्ता था? आतंक के केस में जब मकोका लग नहीं सकता तो इसे लगाने का फैसला किस स्तर पर हुआ? जब एनआईए नतीजे पर पहुंची है कि एटीएस के किसी ने कर्नल पुरोहित के घर पर बाले-बाले बारूद रखा तो एटीएस की उस टीम के लोगों को पकड कर क्यों नहीं पूछताछ होती कि किसके कहने पर ऐसा हुआ? एटीएस और एनआईए के जिन अफसरों ने साध्वी प्रज्ञा का टार्चर कर रीढ की हड्डी में उसे अपंग बनाया उन अफसरों ने इतनी ज्यादती किसके कहने पर की?
स्वतंत्र आयोग बुनियादी तौर पर यह जांचने के लिए बनना चाहिए कि हिंदू आतंक के नाम पर जितनी जो जांच हुई उसकी सचमुच में वजह थी या नहीं या यह सिर्फ हिंदूओं को बदनाम करने और आतंकवाद में दोनों समुदाय को समान रूप से रंगने की सियासी सोच की बदौलत तो नहीं थी? भगवा आतंक के हल्ले की हकीकत बनाम साजिश की गुत्थी स्वतंत्र आयोग से ही सुलझ सकती है। अन्यथा हल्ला होता रहेगा कि मोदी सरकार भगवा आंतकियों को छोड़ रही है इसका अनिवार्यतः मुस्लिम मनौविज्ञान पर असर होना है। अपना मानना है कि सब तरह की जांच का एक-एक तथ्य जुटा का सरकार को श्वेत पत्र बना कर बताना चाहिए कि भगवा आंतक का हल्ला प्रायोजित था या तथ्यात्मक!
लेखक: डॉ. वेद प्रताप वैदिक