शरद पवार ने भीमा कोरेगांव मामले की जांच पुणे पुलिस से एनआईए को सौंपे जाने पर कुछ दिन पहले कहा था कि महाराष्ट्र पुलिस में कुछ लोगों का व्यवहार आपत्तिजनक था। मैं चाहता हूं कि इन अधिकारियों की भी भूमिका की जांच हो। पवार ने कहा था कि पुलिस अधिकारियों के साथ महाराष्ट्र सरकार के मंत्रियों की बैठक हुई थी। इसके बाद केंद्र ने मामले को एनआईए को सौंप दिया। यह संविधान के अनुसार गलत है, क्योंकि अपराध की जांच राज्य का अधिकार क्षेत्र है।मुंबई : भीमा कोरेगांव मामले की जांच राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) को सौंपे जाने के बाद से शिवसेना और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) के बीच खींचतान शुरू हो गई है। एनसीपी सुप्रीमो शरद पवार ने उद्धव सरकार के फैसले पर नाखुशी जाहिर करते हुए सोमवार को पार्टी के सभी 16 मंत्रियों की बैठक बुलाई थी। एनसीपी प्रमुख शरद पवार और पार्टी के सभी मंत्रियों के बीच वाईबी च्वहान सेंटर में बैठक जारी है।
दरअसल भीमा कोरगांव के साथ-साथ यलगार परिषद मामले की जांच एनआईए को सौंपने को लेकर शरद पवार खासे नाराज हैं।
Mumbai: Meeting between NCP chief Sharad Pawar and ministers of the party, begins at YB Chavan Centre. https://t.co/FqnxxLExHt
— ANI (@ANI) February 17, 2020
शरद पवार ने भीमा कोरेगांव मामले की जांच पुणे पुलिस से एनआईए को सौंपे जाने पर कुछ दिन पहले कहा था कि महाराष्ट्र पुलिस में कुछ लोगों का व्यवहार आपत्तिजनक था। मैं चाहता हूं कि इन अधिकारियों की भी भूमिका की जांच हो। पवार ने कहा था कि पुलिस अधिकारियों के साथ महाराष्ट्र सरकार के मंत्रियों की बैठक हुई थी। इसके बाद केंद्र ने मामले को एनआईए को सौंप दिया। यह संविधान के अनुसार गलत है, क्योंकि अपराध की जांच राज्य का अधिकार क्षेत्र है।
महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री व भाजपा नेता देवेंद्र फडणवीस ने भीमा कोरेगांव की जांच एनआईए को सौंपने पर मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे को धन्यवाद दिया। उन्होंने कहा कि मैं इसके लिए मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे को धन्यवाद देता हूं। साथ ही उन्होंने कहा कि शरद पवार इस फैसले का विरोध कर रहे थे, उन्हें इस बात का डर लग रहा था कि कहीं सच सामने ना आ जाए। साथ ही फडणवीस ने सत्तारूढ़ दल शिवसेना को फिर से चुनाव लड़ने की चुनौती दी है। रविवार को देवेंद्र फडणवीस ने शिवसेना,एनसीपी और कांग्रेस तीनों के गठबंधन को चुनौती दी और चुनाव हराने का दावा किया।
शरद पवार ने रविवार को आरोप लगाते हुए कहा था कि केंद्र ने यलगार परिषद मामले की जांच को राष्ट्रीय जांच एजेंसी को इसलिए सौंपा है क्योंकि महाराष्ट्र की पूर्ववर्ती भाजपा सरकार कुछ छिपाना चाहती थी। पवार इस मामले में विशेष जांच दल एसआईटी से पड़ताल करवाने की मांग कर चुके हैं। उन्होंने कहा कि केंद्र को यह कदम उठाने से पहले महाराष्ट्र सरकार को भरोसे में लेना चाहिए था। इस मामले में कुछ सामाजिक और मानवाधिकार कार्यकर्ताओं को माओवादियों से कथित संपर्क रखने के आरोप में गिरफ्तार किया जा चुका है। उन्होंने जलगांव में पत्रकारों से कहा कि यह केंद्र का विशेषाधिकार है कि वह यलगार परिषद मामले की जांच करे लेकिन इसके लिए राज्य को विश्वास में लिया जाना चाहिए।
यलगार परिषद मामले की जांच राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) को सौंपने की अनुमति देने पर महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे की आलोचना करने के अगले दिन राकांपा अध्यक्ष शरद पवार मुख्यमंत्री के साथ मंच साझा करते दिखे थे। जलगांव में शनिवार को राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकांपा) प्रमुख शरद पवार के बड़े भाई अप्पासाहेब पवार के नाम पर कृषि पुरस्कार प्रदान करने के लिए आयोजित समारोह में दोनों साथ नजर आए थे। इससे पहले शुक्रवार को पवार ने कोल्हापुर में पत्रकारों से कहा था कि यलगार परिषद मामले की जांच का जिम्मा पुणे पुलिस से लेकर एनआईए को सौंपने का केंद्र का फैसला सही नहीं है। शरद पवार ने कहा था, ‘मामले की जांच एनआईए को सौंपकर केन्द्र सरकार ने ठीक नहीं किया और इससे भी ज्यादा गलत बात यह हुई कि राज्य सरकार ने इसका समर्थन किया।’
शिवसेना ने अपने मुखपत्र सामना में ‘केंद्र का हस्तक्षेप ये उचित नहीं’ शीर्षक के तहत संपादकीय लिखा था कि भारत राज्यों का एक संघ है। इसलिए हर राज्यों के अपने अधिकार और स्वाभिमान हैं। केंद्र की ओर से जबरन उठाए गए इस कदम से अस्थिरता आ रही है। आरोप लगाया था कि एलगार परिषद मामले की जांच एनआईए को सौंप कर केंद्र प्रतिशोध की राजनीति कर रही है। जबकि पुणे पुलिस इस मामले में संदिग्ध माओवादी संबंधों की जांच कर रही थी। शिवसेना ने सवाल किया था कि इस तरह की बहुत सी घटनाएं भाजपा शासित राज्यों में हो रही हैं, लेकिन वहां केंद्र क्यों दखल नहीं देता। जिस प्रकार से केंद्र ने भीमा कोरेगांव हिंसा मामले की जांच की जिम्मेदारी एनआईए को सौंपी है, क्या वह नहीं चाहती कि सच सामने आए।
एलगार परिषद केस पुणे में भड़काऊ भाषण देने से जुड़ा है। पुलिस का मानना है कि 31 दिसंबर 2017 को कुछ लोगों ने भड़काऊ भाषण दिया था। इस भाषण के अगले ही दिन भीमा-कोरेगांव में हिंसा भड़क उठी थी। पुणे पुलिस का दावा है कि एलगार परिषद कार्यक्रम को माओवादियों का समर्थन हासिल था, इस मामले में पुलिस ने 11 लोगों के खिलाप मामला दर्ज किया है और इनमें से नौ लोग अभी जेल में हैं।