भोजशाला दृश्य एक सुबह आठ बजे का वक्त है। धार शहर के लोग हर साल की तरह इस साल भी बसंत पंचमी पर भोजशाला आ रहे हैं। मगर यहां भोजशाला तो युद्वशाला में बदली हुयी है। अंदर तक पहुंचने से पहले भारी जिकजैक बैरेकेटिंग और लडने के लिये तैयारी की वेशभूपा में खडे ढेरों पुलिस जवान। बीच बीच में घोडों पर सवार पुलिस बल भी घूम जाते हैं। इधर मुख्यद्वार पर एक डीआईजी और दो एसपी स्तर के अफसर खडे हैं और ठीक उनके सामने ही खडे हैं तिलकधारी स्वयंसेवक जो भोजशाला में अंदर जाने वालों को बडी विनम्रता से मंडी में हो रहे हवन की तरफ मोड देते हैं। ऐसे में अधिकतर पुरूप महिलाएं भोजशाला की तरफ मुंह कर दोनों हाथ से प्रणाम करते हैं और आगे बढ जाते हैं।
इधर हवन स्थल से लगातार ऐलान हो रहा है कि इस बार हम भोजशाला में अंदर नहीं जायेंगे और बाहर रहकर ही मां सरस्वती का पूजन करेंगे। हवन कुंड से मां सरस्वती की बंदना की जगह पूरे वक्त गायत्री मंत्र गंूजते रहते हैं। धीरे धीरे हवन के आस पास लंबी कतार लग जाती है श्रद्वालुओं की जो सरस्वती पूजा के लिये भोजशाला की तरफ आये हुये हैं। आप हर साल की तरह भोजशाला में जाकर पूजा क्यों नहीं कर रहे तो इस पर भोज उत्सव समिति के नेता अशोक जैन कहते हैं कि हम दिन भर यज्ञ और हवन करना चाहते थे हमारी बात सरकार ने नहीं मानी तो हम बाहर पूजा कर विरोध जता रहे हैं और बडे दिल का परिचय दे रहे हैं कि भोजशाला में सरकार को अपनी मर्जी से जो भी कराना हो कराये। हम तो बाहर ही रहेंगे।
यहां आपको बता दें कि धार की भोजशाला ग्यारहवीं सदी का राजा भोज का बनवायी गयी भव्य इमारत हैं जिसे कहा जाता है कि ये संस्कृत की पाठशाला थी और यहाँ वाग्देवी यानिकी मां सरस्वती की प्रतिमा थी। तेरहवीं सदी में जब राजा भोज के वंशजों का पराभव हुआ तो मुसलिम शासकों ने इस इमारत में तब्दीली कर मुसलिम इबादतगाह बना दिया। विवाद की वजह ये है कि हिंदू जहां इसे सरस्वती का मंदिर मानते हैं तो मुसलिम समाज कमाल मौला मसजिद। अब ये इमारत भारतीय पुरात्तव विभाग के पास संरक्षित है। आम दिनों में यहां कोई भी जा सकता है।
मंगलवार को यहां हिंदू पूजा करते हैं तो शुक्रवार को मुसलिम यहंा नमाज पढते हैं। बसंत पंचमी को नमाज का वक्त यानिकि एक से तीन को छोड दें तो यहां हिदू समाज को पूरे दिन पूजा करने की इजाजत है। परेशानी होती है उस बसंत पंचमी पर जो शुक्रवार को पडती है। 2003, 2006, 2013 और अब 2016 को ये मौका आ गया था जब सरकार को पूजा और नमाज दोनों करवानी थीं। पिछले तीन मौकों पर पुलिस ने भोजशाला को नमाज के लिये खाली करवाने की कोशिश में जमकर डंडे चलाये थे। इस बार डंडे ना चलंे और किसी भी टकराव को टाला जाये इसके लिये सरकारी और संघ स्तर पर लगातार कोशिशें चल रहीं थीं। शायद उसीका नतीजा था कि हिंदू संगठनों ने अंदर जाने से इनकार कर दिया था जिससे टकराव टले और ये दिन शांति से गुजर जाये।
[box type=”shadow” ]अदम गोंडवी ऐसे ही मौकों के लिये कह गये हैं।
हिंदू या मुसलिम के अहसासात को मत छेडिये,
अपनी कुर्सी के लिये जज्बात केा मत छेडिये।
छेडिये एक जंग मिल जुलकर गरीबी के खिलाफ,
दोस्त मेरे मजहबी नग्मात को मत छेडिये।[/box]
दृश्य दो दोपहर एक बजे का वक्त। लालबाग से चला भोज उत्सव समिति का जुलूस अब ठीक भोजशाला के सामने था। हजारों की संख्या में लोग भगवा झंडे और केसरिया पगडी पहने डीजे के शोर में नाच गा रहे थे। महिलाएं पुरूप और बच्चों की भारी भीड। हर थोडी देर में जय श्रीराम के नारे लग रहे थे। 1992 में राममंदिर आंदोलन के समय कारसेवकों में रहे उन्माद की झलक दे रहा था ये विशाल जुलूस। भोजशाला के बैरिकेड पर खडे पुलिस वाले भी ये विशाल जनसमुदाय को देख सहमे से खडे थे। सारे टीवी चैनलों पर भगवा झंडे लहराते ये जोश से भरे विजुअल्स लाइव कट रहे थे। रिपोर्टरों के फोनों चल रहे थे। क्या हो रहा है और क्या होने वाला है। अचानक जुलूस में शामिल कुछ लोग भोजशाला में अंदर जाने लगते हैं।
नाममात्र की तलाशी के बाद इनके पीछे पुलिस के जवान भी भागते हैं। अनिप्ट की आशंका से घबडा उठते हैं हम सब। क्योंकि ये तो नमाज का वक्त है। सब जानते थे कि अंदर नमाज हो रही होगी और ये लोग वहां पहुंचे तो टकराव तय है। हम अफसरों को फोन लगाने में व्यस्त हैं तभी जनसंपर्क विभाग की तरफ से एसएमएस टन्न से मोबाइल पर आता है। भोजशाला परिसर में शांति पूर्वक नमाज अता की गयी। बस फिर क्या था भोजशाला में अंदर लोग तेजी से जाने लगते हैं। किसी को रोका नहीं जाता। अंदर सरस्वती का तेलचित्र रखकर भी पूजा होनी शुरू हो जाती है। टकराव का वक्त टल गया। पुलिस अफसर और सामने खडे पत्रकारों के चेहरे जो थोडी देर पहले इस विशाल जुलूस से सहमे थे अब तनाव मुक्त होकर मुस्कुरा रहे थे। इंदौर कमिश्नर संजय दुबे सीढियों से उतरते हुये आते हैं और मुझे देखकर मुस्कुराते हुये कहते हैं आपको बे्रकिंग न्यूज नहीं मिली। मैंने कहा धार में शांति की कीमत पर मुझे कोई भी बडी बे्रक्रिग न्यूज नहीं चाहिये। तनाव खत्म हो गया यही मेरे लिये सबसे बडी बे्रकिंग न्यूज है आपको बधाई।
भाई साहब एक बात समझ नहीं आयी। दिन भर की थकान और तनाव के बाद भोजशाला के सामने लगे नल में मुंह धोते वक्त ये आवाज मेरे पीछे से आयी। सिर पर चंदन का टीका लगाये ये गौरीशंकर थे जो सुबह से भोजशाला आंदोलन में कार्यकर्ता बनकर सक्रिय थे। जब हमने सुबह तय किया था कि भोजशाला में अंदर नहीं जाना है तो फिर गये क्यों। नल के पास रखी माइक आईडी से अंदाजा लगा लिया था कि मैं पत्रकार हूं इसलिये अपनी जिज्ञासाएं मुझसे बांटना चाह रहे थे। अब वो हाथ जोडकर चेहरे पर विनय और बदमाशी की मुस्कुराहट एक साथ लाकर बोले कम पढा लिखा हूं मगर जानता बहुत कुछ हूं। कोई खेल हुआ है। इस सब के पीछे। तभी ये पब्लिक है सब जानती है ये पब्लिक है। ये गाना मेरे दिमाग में गूंजने लगा। मैंने भी मुस्कुराकर गौरीशंकर के कंधे पर हाथ रखा और कहा जो आप समझ रहे हो वो सब समझ रहे हैं मगर अब धार की जनता को भी समझना होगा कि सरकार किसी की दल की हो राजधर्म निभाती है। इसलिये सद्भाव बनाये रखें।
लेखक ब्रजेश राजपूत ABP न्यूज़ के मध्य प्रदेश प्रभारी है।