पटना- नीतीश कुमार बिहार में हैट्रिक लगाते दिख रहे हैं रुझानों में महागठबंधन को पूर्ण बहुमत मिल गया. साढ़े दस बजते-बजते महागठबंधन ने 125 सीटों पर बढ़त बना ली. शुरुआती रुझानों में एनडीए आगे रही, लेकिन वोटों की गिनती जैसे ही पहले दौर से आगे बढ़ी, महागठबंधन सत्ता की दौड़ में आगे निकल गया. पटना के गांधी मैदान में जमा बीजेपी समर्थक लौटने लगे.
बीजेपी नेता रामकृपाल यादव ने कहा- हम हार स्वीकार करते हैं. अब थोड़े चिंतन का समय है. हमें मंथन की जरूरत है. पीएम की रैलियों का असर तो हुआ है. लेकिन लोग चाहते थे कि हम विपक्ष में बैठें. उधर, असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम का सीमांचल में सफाया हो गया. पार्टी ने 6 प्रत्याशी खड़े किए थे. इलाके में 45 से 70 फीसदी मुस्लिम मतदाता हैं.
पार्टी दफ्तरों का माहौल बदला
शुरुआती रुझान के तुरंत बाद ही पटना के बीजेपी दफ्तर में जश्न मनाया जाने लगा. पटाखे फूटे. पूरे चुनाव के दौरान खफा-खफा रहे शत्रुघ्न सिन्हा ने भी पार्टी को बधाई दे दी. लेकिन जैसे ही रुझान महागठबंधन के पक्ष में गए पटना बीजेपी मुख्यालय में मायूसी पसर गई. अब जश्न की बारी जेडीयू की थी. इधर, दिल्ली कांग्रेस मुख्यालय में भी जश्न मनाया जाने लगा.
सियासत पर असर
एनडीए जीता तोः अमित शाह बड़े आर्किटेक्ट साबित होंगे. अगले साल पश्चिम बंगाल के चुनाव में फायदा मिलेगा. उसके बाद 2017 में यूपी में भी बड़ा फायदा मिलेगा.और हारा तोः साबित हो जाएगा अमित शाह की बयानबाजी से वोटर उकता गया था. आगे भी यह काम नहीं आने वाली. इस हार का नुकसान पश्चिम बंगाल में भी होगा. महागठबंधन जीता तोः BJP की लहर देश में खत्म हो चुकी है. पीएम मोदी ने विकास का चाहे जितना ढिंढोरा पीटा हो, लेकिन देश के वोटर ने उसे दर्ज नहीं किया. और हारा तोः साबित होगा कि बिहार ने जाति की बेड़ियां तोड़ दी हैं. लालू की सियासत पर भी पूर्ण विराम लग जाएगा. नीतीश का लालू से जुड़ने का फैसला भी गलत साबित होगा.
जीतनराम ने चला सियासी दांव
पहले आधे घंटे में बीजेपी आगे हो गई. जीतनराम मांझी की पार्टी हम जैसे ही 7 सीटों पर आगे आई, मांझी ने अपना सियासी दांव चल दिया. मुख्यमंत्री बनने की इच्छा फौरन जाहिर कर दी. बोले- यदि सीएम बनने का ऑफर मिला तो जरूर स्वीकार करूंगा. एनडीए ने हम को सिर्फ 20 सीटें ही दी थी.बिहार विधानसभा चुनाव में 272 महिलाओं सहित 3,450 उम्मीदवारों के चुनावी किस्मत का फैसला होना है.
चुनावों पर पूरे देश की रही नजर
करीब एक महीने लंबे चले बिहार विधानसभा चुनाव पर देश की पैनी नजर रही. इस चुनाव को देश में राजनीतिक बदलाव की क्षमता रखने वाला चुनाव माना जा रहा है. इस चुनाव में बीजेपी नीत NDA के चेहरे के तौर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पेश किए जाने तथा इस दल के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह के स्वयं चुनाव प्रबंधन की कमान संभाले के कारण यह दोनों की प्रतिष्ठा और साख का सवाल है.
महागठबंधन के लिए अस्तित्व की लड़ाई
वहीं दूसरी ओर पिछले लोकसभा चुनाव में करारी पराजय झेल चुके धर्मनिरपेक्ष महागठबंधन के चेहरे मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और उनके सहयोगी लालू प्रसाद के आस्तित्व के लिए इसे महत्वपूर्ण माना जा रहा है.
क्या कर रहे थे रविवार को नेता
मतगणना से एक दिन पहले मुख्यमंत्री नीतीश कुमार शनिवार पूरे दिन सात सकुर्लर रोड स्थित अपने सरकारी बंगले में मौजूद रहे. मुख्यमंत्री आवास से प्राप्त जानकारी के मुताबिक नीतीश को अपने आवास पर कुछ लोगों से मुलाकात के अलावा अन्य किसी कार्यक्रम में शामिल नहीं होना था. वहीं आरजेडी प्रमुख लालू प्रसाद भी अपने आवास पर ही रहे और वहां आने वाले पार्टी कार्यकर्ताओं तथा नेताओं से मिलते रहे. बीजेपी नेता भी अपने-अपने घर पर मौजूद रहे. बीजेपी के प्रदेश उपाध्यक्ष संजय मयूख ने बताया कि सभी उल्लास से भरे हुए हैं, क्योंकि हम बीजेपी नीत गठगबंधन की जीत को लेकर निश्चिंत हैं.
क्या कहते हैं एग्जिट पोल
बिहार विधानसभा के पांच चरणों में हुए चुनाव के गत पांच नवंबर को अंतिम चरण के हुए मतदान के बाद दिखाए गए सर्वेक्षणों (एग्जिट पोल) में से अधिकतर में JDU-RJD व कांग्रेस के महागठबंधन और NDA के बीच कांटे की टक्कर होने की संभावना व्यक्त की गई है. इंडिया टुडे-सिसेरो एग्जिट पोल में BJP, LJP, HAM और RLSP के गठबंधन NDA को 113 से 127 सीटें मिलने की संभावना जताई गई है. वहीं JDU की अगुआई वाले गठबंधन को 111 से 123 सीटें मिलने की बात कही गई है.
इन सीटों पर रहेगी खास नजर
जिन महत्वपूर्ण विधानसभा क्षेत्रों के परिणाम का लोगों को बहुत बेसब्री से इंतजार है उनमें राघोपुर और महुआ हैं, जहां से RJD सुप्रीमो लालू प्रसाद के दोनों बेटे पहली बार अपना भाग्य आजमा रहे हैं, इमामगंज विधानसभा क्षेत्र भी है जहां बिहार विधानसभा अध्यक्ष उदय नारायण चौधरी और पूर्व मुख्यमंत्री तथा हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा सेक्युलर प्रमुख जीतन राम मांझी के बीच कड़ी टक्कर मानी जा रही है. मांझी इमामगंज के अलावा अपने पुराने विधानसभा क्षेत्र मखदुमपुर से सभी अपना भाग्य आजमा रहे हैं.
इस बार बदले हुए हैं समीकरण
इसके अलावा अन्य महत्वपूर्ण विधानसभा क्षेत्रों में पटना साहिब, बांकीपुर और कुम्हरार का चुनाव परिणाम स्थानीय बीजेपी सांसद शत्रुघ्न सिन्हा के चुनाव प्रचार से गायब रहने के कारण महत्वपूर्ण माना जा रहा है. निवर्तमान विधानसभा के लिए 2010 में हुए चुनाव में जेडीयू और बीजेपी ने साथ-साथ चुनाव लड़ा था और जेडीयू को 115 सीटें मिली थीं, जबकि बीजेपी को 91 सीटें मिली थीं. उस चुनाव में आरजेडी को 22 और कांग्रेस को चार सीटों पर कामयाबी मिली थी.
आमने-सामने हैं पुराने सहयोगी
जेडीयू-बीजेपी गठबंधन 2013 में टूट गया जब नीतीश कुमार ने घोषणा की कि 2014 के लोकसभा चुनावों के लिए बीजेपी की चुनाव प्रचार समिति का प्रमुख नरेंद्र मोदी को बनाए जाने के बीजेपी के फैसले को लेकर उनकी पार्टी एनडीए से अलग हो रही है.
लोकसभा चुनावों से बदला समीकरण
पिछले साल हुए संसदीय चुनाव में बीजेपी को 40 में से 22 सीटें मिली थीं, जबकि उसके सहयोगी दलों को नौ सीटें मिली थीं. आरजेडी और जेडीयू ने अलग-अलग चुनाव लड़ा था और उसे क्रमश: चार एवं दो सीटों से ही संतोष करना पड़ा था. कांग्रेस को भी दो सीटें मिली थीं जबकि एक सीट राकांपा को मिली थी. बिहार विधानसभा चुनाव 2015 में बीजेपी अपने सहयोगी दलों लोजपा, रालोसपा एवं हम सेक्युलर के साथ, प्रदेश में सत्तासीन जदयू राजद एवं कांग्रेस के साथ और भाकपा पांच अन्य वामदलों .. माकपा, भाकपा माले, फारवर्ड ब्लॉक, एसयूसीआई (सी) एवं आरएसपी के साथ चुनाव मैदान में है.
तीसरे मोर्चे की उपस्थिति
मुलायम सिंह यादव की समाजवादी पार्टी शरद पवार की पार्टी राकांपा सहित चार अन्य दलों जिसमें मधेपुरा से सांसद राजेश रंजन उर्फ पप्पू यादव की पार्टी भी शामिल थी के साथ तीसरा मोर्चा बनाकर इस बार चुनावी मैदान में उतरी थी पर बाद में तीसरा मोर्चा बिखर गया.
किसके कितने उम्मीदवार मैदान में
राजग में भाजपा ने जहां 158 सीटों पर अपने उम्मीदवार खड़े किए हैं वहीं उसके अन्य सहयोगी दलों लोजपा, रालोसपा और हम सेक्युलर ने क्रमश: 41, 23 और 21 पर अपने प्रत्याशी चुनावी मैदान में उतारे हैं. धर्मनिरपेक्ष महागठबंधन में जदयू और राजद 101-101 सीटों पर तथा कांग्रेस ने 41 सीटों पर अपने प्रत्याशी चुनावी मैदान में उतारे.
ओवैसी का क्या रहेगा असर?
बिहार विधानसभा चुनाव में हैदराबाद से सांसद और एआईएमआइएम प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी की लोकप्रियता भी परखी जाएगी क्योंकि आखिरी चरण में गत पांच नवंबर को हुए मतदान में उनकी पार्टी ने मुस्लिम बहुल सीमांचल इलाके जहां 45 से 70 प्रतिशत मुस्लिम मतदाता हैं में पहली बार छह उम्मीदवार चुनावी मैदान में उतारे थे. अपने बलबूते बिहार में चुनाव लड़ रही महाराष्ट्र में भाजपा के साथ सरकार में शामिल पार्टी शिवसेना ने भी करीब 150 प्रत्याशी चुनावी मैदान में उतारे हैं.