मोदी लहर पर भारी पड़ा लालू का लालटेन
बिहार विधानसभा चुनाव पर पूरे देश की नजरे थी आखिर आज वो दिन आ ही गया जिसका इंतजार राजनीतिक पंडितों को था। भारत की राजनीति की दशा और दिशा तय करने वाले इस विधानसभा चुनाव में एक ओर जहां 2014 के लोकसभा चुनावों में रिकार्ड जीत के साथ प्रधानमंत्री की साख दाव पर लगी थी वहीं भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह की अगली भूमिका भी इस चुनाव के परिणामों पर ही निर्भर है। बिहार विधानसभा चुनाव के परिणामों ने अब तक सारे अनुमानों को पलट के रख दिया। बिहार में एक बार फिर नीतिश कुमार मुख्यमंत्री होंगे।
लगातार तीसरी बार जीत हासिल करने वाले नीतिश कुमार को इस बार अपने कट्टर विरोधी माने जाने वाले जो अब बड़े भाई की भूमिका में है लालू प्रसाद की पार्टी आरजेडी का बड़ा सहयोग मिला वहीं 243 में से केवल 41 सीटों पर चुनाव लडऩे वाली कांग्रेस को भी दो दर्जन से अधिक सीटों पर जीत हासिल नहीं हो सकी। बिहार की 243 विधानसभा सीटों में से महागठबंधन को 174 और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व वाले एनडीए को 61 सीटों पर ही संतोष करना पड़ा है। इस चुनाव में अन्य दलों के 8 प्रत्याशियों को ही जीत का स्वाद चखने को मिला।
1989 के भागलपुर दंगे के बाद बिहार की राजनीति और सत्ता को अपने नियंत्रण में करने वाले लालू प्र्रसाद यादव का जादू 26 सालों बाद फिर सिर चढक़र बोला। लालू की पार्टी आरजेडी बिहार में 78 सीटों पर जीत हासिल कर सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी है। हालांकि पार्टी की नेत्री और पूर्व मुख्यमंत्री राबड़ी देवी ने स्पष्ट कर दिया है कि महागठबंधन के नेता नीतिश कुमार ही प्रदेश के मुख्यमंत्री होंगे।
त्री दलीय व्यवस्था का बिहार में सूत्रपात करते हुए महागठबंधन ने विधानसभा चुनाव में जो इतिहास रचा है वह अपने आप में एक नया फार्मूला है। लोगों ने उम्मीद नहीं की थी कि एक नया प्रयोग यहां सफल हो जाएगा। यह बात अलग है कि यह गठबंधन धर्म कितना सफल होता है और इस को निभाने में एक दूसरे से कितने समझौते करने पड़ेंगे। इस महागठबंधन में संयोजक की भूमिका निभाने वाले समाजवादी पार्टी के मुखिया मुलायम सिंह यादव ने चुनाव के पहले ही गठबंधन से अलग होकर चुनाव लडऩे का निर्णय लिया था, लेकिन बिहार में उनकी पार्टी जीत का खाता भी नहीं खोल सकी।
मैंने विधानसभा चुनाव के पूर्व ही लिखा था कि नीतिश और लालू की जोड़ी इस चुनाव मेें कमाल दिखा देगी। आखिर बिहार की जनता ने यह साबित कर ही दिया कि राज्य में आज भी नीतिश सुशासन बाबू के रूप में लोकप्रिय है। महागठबंधन की जीत से बहारी पर भारी बिहारी पड़ गया। महागठबंधन ने देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा अपने भाषण के दौरान प्रयोग किए गए डीएनए शब्द को बिहार के स्वाभिमान से जोडक़र इसका राजनीतिक लाभ लेने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी। फिर आरक्षण के संबंध में राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत के बयान को यह साबित करने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी थी कि यदि भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व वाली एनडीए बिहार की बागडोर संभालती है तो वो राज्यसभा में भी पावरफुल हो जाएगी और आरक्षण को देश से समाप्त कर देगी। ब्राम्हण, बनियों की पार्टी कहलाने वाली भारतीय जनता पार्टी आरएसएस के मुखिया की बात को किसी भी रूप में नहीं काट सकती। महागठबंधन ने इन मुद्दों को इस चुनाव में इतना केस किया कि प्रधानमंत्री द्वारा बिहार को दिए स्पेशल विकास पैकेज का असर भी नहीं पड़ा।
भारतीय जनता पार्टी पर टिकट वितरण के साथ ही मोटी-मोटी रकम लेकर टिकट बेचने के आरोप लगते रहे है, ऐसा नहीं है कि यह आरोप केवल भाजपा पर ही लगे हो अन्य पार्टियों पर भी इस प्रकार के आरोप लगे है, लेकिन भाजपा के पूर्व गृह सचिव आरके सिंह जो आरा लोकसभा से भाजपा के सांसद है ने मीडिया के माध्यम से अपने शीर्ष नेतृत्व को चेताया था, कि प्रदेश में टिकट पैसे लेकर बेचे जा रहे है, उनका इसारा प्रदेश के पूर्व उप मुख्यमंत्री सुशील मोदी, मंगल पांडे और नंद किशोर यादव पर था आज भी उन्होंने चुनाव परिणाम के बाद अपने फेसबुक वाल पर पार्टी की हार की वजह प्रादेशिक नेतृत्व को बताया था।
भाजपा, जेडीयू के 17 वर्षों से चला आ रहा गठबंधन टूटने के बाद से ही भाजपा के सामने बिहार में नेतृत्व का संकट दिखने लगा था। कहने को तो रविशंकर प्रसाद, राजीव प्रसाद रूढ़ी, शहनवाज हुसैन, सुशील मोदी, गिरीराज किशोर बिहार से आने वाले बड़े नेता है, लेकिन नीतिश कुमार और लालू प्रसाद के सामने इनका कछ छोटा है। ये नेता प्रदेश में अपनी साख स्थापित करने में आज तक सफल नहीं हो सके है, यही वजह थी कि भाजपा को जेडीयू से अलग हुए जतीनराम मांझी की पार्टी ‘हम’ और रामविलाश पासवान की पार्टी ‘लोजपा’ से समझौता करना पड़ा। भाजपा को अपने अंदर खाने में भी काफी चुनौती का सामना करना पड़ा। पटना साहेब से सांसद शत्रुघन सिन्हा लगातार पार्टी का विरोध करते रहे है, यह बात अलग है कि उनके जेडीयू में शामिल होने के कयास सही नहीं हुए, जब आरके सिंह ने प्रादेशिक नेताओं पर आरोप लगाया था तो उनका समर्थन करने वालों में सिन्हा ही एक मात्र व्यक्ति थे।
बिहार के चुनाव को भाजपा ने अपनी प्रतिष्ठा का प्रश्न बना लिया था और यही वजह है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अपनी साख की परवाह किए बगैर बिहार का चुनावी मोर्चा खुद संभाल लिया था। बिहार का चुनाव पार्टी ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के चेहरे को सामने रख कर लड़ा था। इतना ही नहीं मोदी ने बिहार की तीस चुनावी सभाओं को भी संबोधित किया था, जो अपने आप में ऐतिहासिक थी। ऐसा भी कहा जा रहा है कि नरेन्द्र दामोदर दास मोदी देश के पहले ऐसे प्रधानमंत्री है जिन्होंने प्रधानमंत्री पद पर रहते हुए किसी राज्य की विधानसभा चुनावों में सबसे ज्यादा संबोधन दिया है और अपनी पार्टी के लिए माहौल तैयार करने में भूमिका का निर्वहन किया है।
कश्मीर, दिल्ली, महाराष्ट्र के बाद अब बिहार के चुनाव परिणामों ने मोदी के करिश्माई व्यक्तित्व के असर को फिका कर दिया है, वहीं महागठबंधन के नेता नीतिश कुमार को राष्ट्रीय पटल पर लाने का प्रयास किया जाएग। लोकसभा चुनाव में हांसिए पर खिसक चुकी कांग्रेस मोदी के मुकाबले खड़ा कर एक नया दांव खेल सकती है। राष्ट्रीय उपाध्यक्ष के रूप में कोई विशेष भूमिका का निर्वहन नहीं कर सकने का आरोप झेल रहे राहुल को यह चुनाव परिणाम संजीवनी देगा और उनके आलोचक खास तौर पर पार्टी के ही वरिष्ठ नेता जो राहुल के बिहार में महागठबंधन में शामिल होने का विरोध कर रहे थे उन्हें भी अब मौन साधना पड़ेगा।
पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी, दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल ने बिहार विधानसभा चुनाव में नीतिश कुमार का समर्थन किया उससे यह इनकार नहीं किया जा सकता कि आने वाले समय में राष्ट्रीय स्तर पर ये नेता भी महागठबंधन के अंग हो। इस जीत से यह तो तय हो गया है कि गैर भाजपा वोट को यदि बंटने ना दिया जाए तो जीत सुनिश्चित है। महागठबंधन अब उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल सहित उन 8 राज्यों में इस पेटर्न का उपयोग कर सकता है जहां अगले साल विधानसभा चुनाव है। आरजेडी अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव ने आज की इस जीत के बाद घोषणा की है कि महागठबंधन पूरे भारत में घूम-घूमकर अपना जनाधार और मजबूत करेगा।
केन्द्र में सत्तासीन भाजपा के लिए यह चुनाव परिणाम आत्म विश्लेषण के लिए महत्वपूर्ण है। 2014 के लोकसभा चुनावों में जो ऐतिहासिक जीत पार्टी को मिली वह लगातार कम होती गई। महाराष्ट्र, कश्मीर, हरियाणा, झारखंड, दिल्ली और बिहार के चुनाव परिणाम का अध्ययन करें तो यह देखने को मिलता है कि भाजपा का वोट प्रतिशत कम हुआ है वहीं पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह के नेतृत्व में हुए चुनाव दिल्ली और अब बिहार के परिणाम उनके नेतृत्व पर प्रश्नचिन्ह लगाते है, यह बात अलग है कि पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष राजनाथ सिंह, अमित शाह के बचाव में अपना बयान दे चुके है।
इस चुनाव में महागठबंधन ने बिहार के पड़ोसी राज्य छत्तीसगढ़, राजस्थान और मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्रियों पर लगे भ्रष्टाचार के आरोपों को जमकर भुनाया खास तौर पर मध्यप्रदेश के व्यापमं घोटाला जेडीयू और आरजेडी के साथ ही कांग्रेस के मंचों पर जमकर गूंजा। कांग्रेस नेताओं ने व्यापम को युवाओं के भविष्य से खिलवाड़ करने वाला सबसे बड़ा घोटाले के रूप में प्रस्तुत किया।
भाजपा के केन्द्रीय नेतृत्व को अब इन बिन्दुओं पर भी विचार करना पड़ेगा। साथ ही जिन राजनीतिक पार्टी के साथ नया गठबंधन किया गया है उनकी साख और भविष्य के बारे में भी चिंतन करना पड़ेगा तब ही आने वाले समय में होने वाले चुनाव में भाजपा मुकाबले की स्थिति में रहेगी।
चारा घोटाले के बार राजनीतिक हासियों में चले गए लालू प्रसाद यादव की वापसी ने राजनीतिक पंडितों के सारे अनुमानों को गलत साबित कर दिया है। लालू प्रसाद यादव अपने दोनों बेटों को जीताकर जिस मजबूती से उभरे है उससे उनके सुनहरे राजनीतिक भविष्य का अनुमान लगया जा सकता है।
लेखक – कृष्णमोहन झा
(लेखक राजनीतिक विश्लेषक हैं)
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