पटना-बिहार विधानसभा चुनाव में पहली बार उतरे असदुद्दीन ओवैसी मुसलमानों के लिए नई पार्टी की जरूरत बता कर उन्हें अपने पक्ष में करने की कोशिश कर रहे हैं। सीमांचल की छह सीटों पर लड़ रहे ओवैसी ने किशनगंज की एक सभा में कहा, ‘बिहार की राजनीति आपकी पूरी हालत बयां कर रही है।
बिहार और देश की राजनीति हमें यह साफ दर्शाती है कि किस तरह अलग-अलग समुदाय के लोगों ने अपना-अपना नेता चुन लिया है। यादवों ने लालू प्रसाद को, कुर्मियों ने नीतीश कुमार को, भूमिहार-ब्राह्मण और तमाम दूसरी अगड़ी जातियां भाजपा के साथ हैं, मांझी ने मांझी (जीतन राम) को अपना नेता बना लिया है, पासवान ने पासवान (रामविलास) को नेता मान लिया है।
हैदराबाद से सांसद और ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एआईएमआईएम) के मुखिया असदुद्दीन ओवैसी सीमांचल में अपने भाषणों के जरिए मुसलमानों को यही बता रहे हैं कि उनका प्रतिनिधि वही और उनकी पार्टी ही है। वह कहते हैं, ‘यादवों की आबादी 11 फीसदी है और उन्हें महागठबंधन ने 64 सीटें लड़ने के लिए दीं। मुसलमान 17 फीसदी हैं, पर उन्हें केवल 33 सीटें दी गईं।
मुसलमानों को बंधुआ वोटर्स मान लिया गया है, क्योंकि सेकुलर पार्टियों ने यह मान लिया है कि भाजपा के डर से मुसलमान और कहीं जा ही नहीं सकते। ओवैसी शुरू में 24 सीटों पर उम्मीदवार उतारना चाहते थे। लेकिन, अंतत: छह सीटों पर लड़ने का फैसला किया। इस लड़ाई में मुसलमानों का एक डर उनके आड़े आ रहा है। डर यह है कि उनका वोट बंट जाने का फायदा भाजपा को होगा।
चुनाव में एआईएमआईएम के कूदने से हिंदू मतदाताओं की भाजपा के पक्ष में एकजुटता के संकेत पहले से दिखाई देने लगे हैं। लेकिन, ओवैसी अलग नजरिये से देख रहे हैं। उनकी नजर एक मुस्लिम पार्टी के रूप में स्थापित होने की है। मुसलमानों की ऐसी पार्टी जो भगवा और सेकुलर, दोनों ही गठबंधनों से समान दूरी रखते हुए अपने आप में स्वतंत्र राजनीतिक इकाई हो।
कुछ युवा मतदाता ओवैसी के इस विचार से सहमत भी हैं। ग्रेजुएशन की पढ़ाई कर रहे इश्फाक अहमद ने कहा, ‘ओवैसी सच्चाई बयां कर रहे हैं। पर हमारे बड़े-बुजुर्ग इतना डरे हुए हैं कि वे महागठबंधन के पक्ष में ही वोट करने पर आमादा हैं। मेरी नजर में मुसलमानों की समस्या का एक मात्र हल यही हो सकता है कि उनकी अलग पार्टी हो। बाकी को आपस में लड़ने दें।
आखिर इन पार्टियों को वोट देकर हमें मिला ही क्या है?’ अपनी रैलियों में ओवैसी आंकड़ों के जरिए सीमांचल के पिछड़ेपन की बात करते हैं और साबित करने की कोशिश करते हैं कि दूसरी पार्टियों को वोट देने से मुसलमानों का भला न हुआ है और न होगा। वह कहते हैं, ‘आप सालों से उन्हें वोट दे रहे हैं, फिर भी वे मोदी को रोकने में कामयाब नहीं हो पाए। 280 सीटों (लोकसभा में) पर भाजपा की जीत का जिम्मेदार कौन है? क्या हमने कभी भाजपा को वोट दिया है?