मुंबई- महाराष्ट्र के राजस्व एवं कृषि मंत्री एकनाथ खड़से को आखिरकार इस्तीफा देना पड़ा। इससे भाजपा पर पड़ रहा विपक्षी दलों का चौतरफा वार कुछ थम जाएगा। मगर उसकी मुश्किलें इतनी जल्दी कम होने वाली नहीं। खड़से महाराष्ट्र में भाजपा के अन्य पिछड़ी जाति के बड़े जनाधार वाले नेता हैं। सरकार में वे दूसरे नंबर के ताकतवर नेता माने जाते थे। मगर उन पर महाराष्ट्र औद्योगिक विकास निगम की भूमि खरीद में गड़बड़ी करने, रिश्वतखोरी और दाउद इब्राहीम से संबंध रखने के आरोप लगे।
महाराष्ट्र में भाजपा ने पहली बार अपने बल पर सरकार बनाई है। इसलिए न सिर्फ कांग्रेस और आम आदमी पार्टी उसे घेरने में जुटी थी, बल्कि बरसों तक उसकी दोस्त रही शिव सेना ने भी तीखे वार शुरू कर दिए थे। शिव सेना को सरकार में मनचाही हैसियत न मिल पाने के कारण वह शुरू से भाजपा से नाराज चल रही है। इसलिए खड़से के मामले को वह अभी और भुनाने की कोशिश करेगी।
कांग्रेस अब पंकजा मुंडे और विनोद तावड़े आदि पर लगे भ्रष्ट्राचार के आरोपों को रेखांकित कर राजनीति का रुख मोडऩे की कोशिश कर रही है। उसका कहना है कि भाजपा ने क्यों सिर्फ बहुजन समाज के नेताओं को दंडित करना मुनासिब समझा, दूसरी जातियों के नेताओं पर लगे आरोपों को उसने अनदेखा क्यों कर दिया। हालांकि खड़से लगातार तर्क दे रहे हैं कि उन्होंने जमीन खरीद में कोई गड़बड़ी नहीं की, उन्होंने नैतिक आधार पर इस्तीफा दिया है और जब वे आरोपमुक्त हो जाएंगे तो फिर अपनी पुरानी जगह लौट आएंगे। मगर न तो उनके लिए रास्ता आसान लगता है और न भाजपा के लिए कठिनाइयां कम होती नजर आ रही हैं।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा अध्यक्ष अमित शाह लगातार दावा करते रहे हैं कि उनकी पार्टी की सरकारें किसी भी रूप में भ्रष्ट्राचार को बर्दाश्त नहीं कर सकतीं। इस तरह इसे मोदी सरकार के समय भाजपा पर भ्रष्ट्राचार के पहले कलंक के रूप में देखा जा रहा है। पार्टी के केंद्रीय कमान ने मुस्तैदी दिखाते हुए खड़से का इस्तीफा लेकर साबित करने का प्रयास किया कि वह भ्रष्ट्राचार के मामले में सख्त है।
हालांकि इस मामले की उच्चस्तरीय जांच के आदेश दे दिए गए हैं, पर बहुत-से लोगों को उसे लेकर आशंका है कि सही तस्वीर सामने आ पाएगी। ऐसे में भाजपा और महाराष्ट्र सरकार से अपेक्षा की जाती है कि वह निष्पक्ष जांच होने दे। महाराष्ट्र में भाजपा को अपनी साख बनानी और बचानी है तो उसे कुछ कठोर कदम उठाने ही पड़ेंगे। ऐसा नहीं कि भाजपा में खड़से पर अकेले ऐसा आरोप लगा है। कर्नाटक में भूमि आबंटन को लेकर उसे पहले ही खासी किरकिरी सहनी पड़ चुकी है।
इसी तरह महाराष्ट्र में उसके दूसरे कुछ नेताओं पर भी भूमि आबंटन के मामले में अनियमितता के आरोप लग चुके हैं। विनोद तावड़े और पंकजा मुंडे पर लगे आरोपों की हकीकत अभी परदे के पीछे है। इसलिए भाजपा को अपने नेताओं को अनुशासित करने की जरूरत है, ताकि भ्रष्ट्राचार जैसी समस्या से लडऩे के केंद्र सरकार और पार्टी के संकल्प को पूरा किया जा सके। एकनाथ खड़से पर केवल सस्ती दर पर जमीन खरीदने का नहीं, दाउद इब्राहीम जैसे माफिया से संबंध रखने का भी आरोप है। इससे भाजपा की देशभक्ति को पलीता लग सकता है। इसलिए उसे जांच को प्रभावित किए बगैर, उस पर परदा डालने के बजाय निष्पक्ष रूप से तथ्यों को सामने आने देना चाहिए !