भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने साल 2014 के आम चुनावों से पहले नई सोशल इंजीनियरिंग और पॉलिटिकल कम्बिनेशन कर केंद्र के साथ-साथ कई राज्यों में सत्ता हासिल की।
बाद में जब अमित शाह पार्टी के अध्यक्ष बने, तब पार्टी ने शाह और मोदी की जोड़ी में अन्य राज्यों में न केवल अपना विस्तार किया बल्कि जीत का परचम भी लहराया। 2018 तक आते-आते 38 साल पुरानी इस पार्टी का चेहरा एकदम सा बदल गया लेकिन नहीं बदली तो वह अवधारणा जिसमें कहा जाता रहा है कि बीजेपी ब्राह्मणों और बनियों की पार्टी है।
हालांकि, बीजेपी ने हाल के वर्षों में अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, अन्य पिछड़े वर्ग और अल्पसंख्यकों (खासकर मुस्लिम महिलाओं) के बीच अपनी कट्टर छवि को बदलने की भरपूर कोशिश की है मगर हकीकत ये है कि आज भी बीजेपी संगठन के स्तर पर अगड़ी जातियों की ही पार्टी बनी हुई है।
‘दि प्रिंट’ ने बीजेपी में दलितों, आदिवासियों, पिछड़ी जातियों और अल्पसंख्यकों की स्थिति पर देशव्यापी सर्वे किया है। इस सर्वे रिपोर्ट में बताया गया है कि अभी भी पार्टी के अहम पदों पर ऊंची जाति के लोगों का कब्जा बरकरार है।
बीजेपी में जातीय संरचना के गहन अध्ययन के बाद बताया गया है कि पार्टी के पदाधिकारियों की तीन-चौथाई पदों पर ऊंची जाति का बोलबाला है। बीजेपी राष्ट्रीय कार्यकारिणी के भी 60 फीसदी पदों पर भी ऊंची जाति के लोगों का कब्जा है।
सर्वे में कहा गया है कि प्रदेश अध्यक्षों के 65 फीसदी पदों पर भी सामान्य वर्ग यानी उच्च जाति के लोग बैठे हैं। यहां तक कि बीजेपी के सबसे निचले स्तर के संगठन जिला अध्यक्षों के पद पर भी 65 फीसदी लोग उच्च जाति से ताल्लुक रखते हैं।
सर्वे के लिए ‘दि प्रिंट’ ने बीजेपी के 50 राष्ट्रीय पदाधिकारियों, 97 राष्ट्रीय कार्यकारिणी सदस्यों, 29 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के कुल 36 अध्यक्षों समेत 24 राज्यों के कुल 752 जिला अध्यक्षों की जातीय स्थिति का आंकड़ा जमा किया।
फिर उसकी व्याख्या की है। 36 प्रदेश अध्यक्षों में एक भी दलित नहीं है। इनमें से सात ब्राह्मण, 17 अगड़ी जाति के लोग, 6 आदिवासी, पांच ओबीसी और एक मुस्लिम है। यानी कुल 66 फीसदी पदों पर उच्च जाति के लोग काबिज हैं। पूर्वोत्तर राज्यों जहां की अधिकांश आबादी आदिवासी और धार्मिक अल्पसंख्यक बौद्धों की है, वहां से सबसे ज्यादा आदिवासी प्रतिनिधित्व है।
बता दें कि पार्टी लंबे समय से दलितों को अपने पाले में लाने की कोशिश करती रही है। इसके लिए पार्टी अध्यक्ष अमित शाह ने उत्तर प्रदेश से लेकर कर्नाटक और ओडिशा के दलितों और आदिवासियों के घर भोजन किया। यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने भी ऐसी ही मुहिम चलाई लेकिन देश का दलित वर्ग मौजूदा समय में बीजेपी को अपना हितैषी नहीं समझता है।
दलित संगठनों ने एससी/एसटी एक्ट को तथाकथित कमजोर करने के खिलाफ और प्रमोशन में दलितों को आरक्षण देने की मांग पर 9 अगस्त से देशव्यापी आंदोलन की धमकी दी है। दलितों का विरोध इस कदर है कि पार्टी के ही कई सांसद शीर्ष नेतृत्व के खिलाफ बोलते रहे हैं।