नई दिल्ली – बिहार की हार के बाद भाजपा के अंदर मुखर खेमों को शांत करने की कवायद शुरू हो गई है। हालांकि, सामंजस्य का अभाव है। दो दिन पहले दिग्गज नेताओं के खिलाफ परोक्ष रूप से सख्त रवैया दिखाने वाले केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने शुक्रवार को बयान जारी कर कहा कि वह किसी के खिलाफ कार्रवाई नहीं चाहते हैं। लेकिन दूसरी तरफ वेंकैया नायडू जैसे वरिष्ठ मंत्री और मनोज तिवारी जैसे नए सांसद ने दिग्गजों को पार्टी मंच से ही बोलने की सलाह दे दी।
प्रतिक्रिया दूसरी ओर भी दिखी। मुरली मनोहर जोशी और लाल कृष्ण आडवाणी के साथ यशवंत की मुलाकात को इसी संदर्भ में देखा जा रहा है। माना जा रहा है कि भाजपा केंद्रीय नेतृत्व दिग्गजों समेत दूसरे नेताओं को भी विश्वास दिलाना चाहता है कि समीक्षा पूरी ईमानदारी से होगी।
बिहार की हार ने भाजपा को हिला दिया है। इसी बीच घर के अंदर की आग को बुझाने की कोशिश शुरू हो गई है। दो दिन पहले समीक्षा की बात करने वाले दिग्गज नेताओं को भरोसा दिया गया है कि समीक्षा होगी और हर पहलू पर चर्चा होगी।
बताते हैं कि इसी क्रम में नितिन गडकरी का बयान जारी हुआ। केंद्रीय गृह मंत्री राजनाथ सिंह पहले ही संदेश दे चुके हैं कि वह दिग्गज नेताओं के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई के पक्ष में नहीं हैं।
इसका थोड़ा असर भी दिखने लगा है। संयुक्त बयान जारी करने वाले नेताओं में शामिल शांता कुमार ने दैनिक जागरण से बातचीत में कहा, “जिस तरह जेटली ने जोशी और आडवाणी से मुलाकात की उससे हम संतुष्ट हैं। हमारा मानना है कि पहली प्रतिक्रिया सही है।” लेकिन शुक्रवार की दूसरी घटनाओं ने यह भी संकेत दे दिया है कि आग बुझी नहीं है।
यशवंत ने शुक्रवार शाम पहले जोशी और फिर आडवाणी के घर जाकर उनसे मुलाकात की। दोनों नेताओं के घर पर वह तकरीबन 30-40 मिनट बैठे। सूत्रों का कहना है कि उनकी चर्चा के केंद्र में बिहार और पार्टी थी।
संभवतः वह एक निश्चित समय के अंदर समीक्षा चाहते हैं और यह भी चाहते हैं कि इस काम से कुछ लोगों को बाहर रखा जाए। मौका पहले से मुखर आरके सिंह को भी मिल गया और उन्होंने भी यह दोहराने में कोई कोताही नहीं की कि चुनाव की पूरी रणनीति ही गलत थी।