अगले साल होने वाले प्रांतीय चुनावों में भाजपा की मुश्किलें बढ़ती ही जा रही हैं। पहले उसने उत्तराखंड में मुंह की खाई, फिर अरुणाचल में औंधे मुंह गिरी, फिर उप्र में कांग्रेस ने शीला दीक्षित और राज बब्बर को अखाड़े में उतार दिया और अब भाजपा सांसद नवजोत सिद्धू ने पल्ला झटक दिया।
सिद्धू ने राज्यसभा से जिस तरह इस्तीफा दिया, वह बिल्कुल वैसा ही है, जैसा कि अरुणाचल में हुआ। बागी नेता कलिखो पुल कैसे नबाम तुकी से जा मिले, इसकी भाजपा के महान नेताओं को कानों-कान भनक तक नहीं लगी। इससे क्या सिद्ध होता है? क्या यह नहीं कि भाजपा नेताओं में दूरंदेशी की कमी है?
वे यह नहीं पहचान पाते कि सामने वाला शतरंज पर अगली चाल क्या चलेगा? उन्हें पता होना चाहिए कि ये लोग घुटे हुए कुर्सी प्रेमी नेता हैं, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अनुशासित स्वयंसेवक नहीं हैं। सिद्धू यदि ‘आप’ में जा मिलें और पंजाब में मुख्यमंत्री के उम्मीदवार बन जाएं तो वे शिरोमणि अकाली दल और भाजपा, दोनों का सूंपड़ा साफ करवा सकते हैं।
अकाली दल और भाजपा की खींचतान ने इस गठबंधन सरकार की दाल पहले से पतली कर रखी थी। वह अब पानी-पानी हो सकती है। पंजाब में अपनी सरकार बनाने का भाजपा का सपना अब दरी के नीचे सरक गया है। यों भी 117 सदस्यों की विधानसभा में भाजपा ने 23 सीटें लड़ी थीं और अकाली दल ने 94 सीटें। अब भाजपा 117 भी लड़ा ले तो भी कितनी सीटें जीत पाएगी?
उत्तरप्रदेश में भाजपा की स्थिति काफी मजबूत हो रही थी लेकिन कांग्रेस ने कमाल का दांव मारा है। राज बब्बर को अध्यक्ष और शीला दीक्षित को मुख्यमंत्री का उम्मीदवार बना दिया है। इसका पहले फायदा तो सोनिया और राहुल को होगा। कांग्रेस की हार का ठीकरा उनके माथे नहीं फूटेगा।
कांग्रेस की सीटें जरुर बढ़ेंगी, क्योंकि शीला दीक्षित की छवि बेजोड़ है। उन्होंने 15 साल में दिल्ली में जो काम कर दिखाया है, वह कोई भी मुख्यमंत्री नहीं दिखा सका है। उप्र के 12 प्रतिशत ब्राह्मण वोट में से वे जो भी खीचेंगी, उसका नुकसान भाजपा को होगा। वे इमरान के साथ मिलकर मुसलमानों के 18 प्रतिशत वोटों में से जो खीचेंगी, उसका ज्यादा नुकसान मायावती को होगा।
याने फायदा समाजवादी पार्टी को घर बैठे मिल जाएगा। भाजपा की दिक्कत यह है कि देश के इस सबसे बड़े प्रदेश में उसके पास कोई नामवर नेता नहीं है, जिसे वह भावी मुख्यमंत्री के तौर पर पेश कर सके। जो दिक्कत बिहार में थी, वह यहां भी है।
सबसे बड़ी दिक्कत यह है कि अब मोदी की लहर भी उतर गई है। कोई आश्चर्य नहीं कि राज बब्बर की सभाओं में ज्यादा लोग जुटें। अब तक जितने भी फिल्मी सितारे राजनीति में आए हैं, उनमें बब्बर की छवि सबसे अच्छी है। क्या भाजपा के पास उप्र में कोई ऐसा नेता है?
लेखक:- डॉ. वेदप्रताप वैदिक