बॉम्बे हाईकोर्ट ने महाराष्ट्र सरकार द्वारा दिए गये मराठा आरक्षण को बरकरार रखा। बॉम्बे हाईकोर्ट ने आरक्षण को बरकरार रखा है, लेकिन कहा,’16% न्यायोचित नहीं है। एक याचिका में इसकी संवैधानिक वैधता को चुनौती दी गई थी। महाराष्ट्र के मराठा समुदाय को दिए 16 प्रतिशत आरक्षण के खिलाफ दायर याचिकाओं पर बांबे हाईकोर्ट में आज फैसला सुनाया।
गुरुवार को राज्य सरकार के मराठाओं को 16 फीसदी आरक्षण देने के फैसले की वैधता को बरकरार रखा है। हालांकि, इसके साथ ही कोर्ट ने कहा है कि राज्य पिछड़ा आयोग द्वारा प्रस्तावित कोटा को 16 फीसदी से घटाकर 12-13 फीसदी कर देना चाहिए।
ज्ञात हो कि पिछले साल 30 नवंबर को राज्य सरकार ने विधानसभा नें मराठाओं को सरकारी नौकरियों और शैक्षणिक संस्थानों में 16 फीसदी आरक्षण देने को लेकर विधेयक पारित किया था। इसके बाद विधेयक के खिलाफ कई याचिकाएं हाई कोर्ट में डाली गई थीं।
याचिकाओं पर लेकर सुनवाई करते हुए जस्टिस रंजीत मोरे और भारती डांगरे की पीठ ने सरकार के फैसले को वैध बताया है, साथ ही यह भी कहा है कि पिछड़ा आयोग द्वारा प्रस्तावित कोटा और कम होना चाहिए। कोर्ट ने सुझाव दिया है कि इसे 16 फीसदी से घटाकर 12-13 फीसदी कर दिया जाए। सुनवाई के दौरान कोर्ट ने कहा कि राज्य के पास सामाजिक और शैक्षणिक पिछड़ा वर्ग अधिनियम, 2018 (एसईबीसी ऐक्ट, 2018) को लागू करने की विधायी शक्ति है। जिसके तहत मराठाओं को एसईबीसी की कैटिगरी में रखते हुए उन्हें आरक्षण दिया जा सकता है।
कोर्ट ने कहा कि 102वें संविधान संशोधन से राज्य सरकार की विधायी शक्ति किसी भी तरीके से प्रभावित नहीं होती है। पीठ ने कहा कि असाधारण परिस्थितियों में आरक्षण की सीमा को 50 फीसदी से ज्यादा बढ़ाया जा सकता है और जस्टिस गायकवाड़ आयोग राज्य में ऐसी असाधारण परिस्थिति को दर्शाने में सफल रही है। बता दें कि मराठाओं को सरकारी नौकरियों और शैक्षणिक संस्थानों में 16 फीसदी आरक्षण मिलने के बाद राज्य में आरक्षण का कोटा 68 फीसदी हो जाएगा।
मराठा आरक्षण कब लागू हुआ
पिछले साल 30 नवंबर को महाराष्ट्र विधानसभा ने सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े वर्ग (एसईबीसी) श्रेणी के तहत मराठों के लिए शिक्षा और सरकारी नौकरियों में 16 प्रतिशत आरक्षण का प्रस्ताव पारित किया था। आरक्षण को चुनौती देते हुए हाईकोर्ट में कई याचिकाएँ दायर की गईं, जबकि कुछ अन्य कोटे के समर्थन में दायर की गईं। सरकार ने अपने फैसले का बचाव करते हुए कहा था कि आरक्षण केवल मराठा समुदाय के उन लोगों को दिया गया जो लंबे समय से उपेक्षित हैं।
आरक्षण का विरोध क्यों
हालांकि, सरकार के मराठा समुदाय को आरक्षण दिए जाने के फैसले को चुनौती देने वाले याचिकाकर्ताओं ने दावा किया कि मराठा समुदाय को आरक्षण देकर सरकार ने उन्हें स्थायी बैसाखी दी है, जिसे वे कभी नहीं छोड़ पाएंगे।