सामान्तय: मनोवैज्ञानिकों का मत तो यही है कि किसी भी इंसान के चेहरे पर मुस्कान या हंसी उसी समय आती है जब वह किसी बात को सुनकर प्रसन्न हो या कोई बात उसे सकारात्मक या आनंददायक महसूस हो। इसी प्रकार किसी व्यक्ति की आंखों से निकलने वाले ‘वास्तविक आंसू’ उसके दु:ख,उसकी चिंताओं या उसके हृदय पर लगी किसी प्रकार की ठेस की तर्जुमानी करते हैं। अकारण न तो किसी सामान्य व्यक्ति को हंसी आ सकती है न ही उसकी आंखों से आंसू निकल सकते हैं।
कहा जा सकता है कि हंसने व रोने दोनों ही का संबंध दिल की गहराईयों से ही होता है। इसी लिए अकारण हंसने वाले लोगों को पागल या दीवाने की संज्ञा दी जाती है जबकि ज़बरदस्ती या बिना किसी वजह के रोने वाला व्यक्ति मक्कार या ढोंगी कहा जाता है। आजकल हमारे देश में फिल्मी अभिनेताओं के अभिनय के दौरान ‘नौटंकीपूर्ण’ रोने-धोने जैसे ‘कला प्रदर्शन’ के अलावा नेताओं की भी एक ऐसी जमात है जो एक ओर तो स्वयं को अत्यंत बल्ष्ठि एवं जनमानस के मध्य अपना बड़ा जनाधार रखने वाला भी बताती है और साथ ही साथ समय पडऩे पर यही हस्तियां जनता के समक्ष रोते-धोते भी दिखाई दे जाती हैं।
ज़ाहिर है जब कोई व्यक्ति स्वयं को लौहपुरुष कहलवाना पसंद करे और बाद में वही ‘लौहपुरुष’ आंसू भी बहाता दिखाई दे जाए तो प्राकृतिक रूप से यह सवाल ज़ेहन में उठेगा ही कि आखिर लौहपुरुष की उपाधि धारण करने वाले ‘महापुरुष’ की आंखों में सार्वजनिक रूप से आंसू बहते हुए क्यों दिखाई दे रहे हैं? यदि कोई राजनेता स्वयं को 56 इंच की छाती रखने वाला नेता साबित करने पर तुला हो और वही नेता एक-दो नहीं बल्कि बार-बार केवल आम जनता के समक्ष ही आंसू बहाता दिखाई दे जाए तो यह सवाल ज़रूर उठेगा कि आ$िखर 56 इंच की छाती रखने वाले ‘महाबली’ की आंखों में आंसू क्योंकर आ गए? ऐसी और भी कई मिसालें हैं जो आंसूओं के वास्तविक भाव पर संदेह खड़ा करती हैं। खासतौर पर ऐसे विशिष्ट व्यक्तियों के व्यक्तित्व को लेकर जो अत्यंत ताकतवर तथा एक बड़ा जनाधार रखने वाले ‘दबंग’ नेताओं में गिने जाते हैं।
उपरोक्त उदाहरणों में से पहला उदाहरण सीधे तौर पर भारतीय जनता पार्टी के नवगठित मार्गदर्शक मंडल के सर्वप्रथम ‘मार्गदर्शक’ लाल कृष्ण अडवाणी की ओर इशारा कर रहा है। प्रधानमंत्री पद पर बैठने के उनके सपने धराशायी होने तथा बाद में राष्ट्रपति पद भी नसीब न हो पाने के बाद उनकी मायूसियों का अंदाज़ा भलीभांति लगाया जा सकता है। खासतौर पर ऐसी परिस्थितियों में जबकि एक शिष्य समान नेता ही ‘गुरू’ के सपनों को धराशायी कर दे। कई बार अडवाणी को सार्वजनिक कार्यक्रमों में आंसू बहाते देखा गया है। परंतु अभी तक यह बात समझ में नहीं आ सकी कि जो लौहपुरुष कश्मीर से कन्याकुमारी तक की रथयात्रा लेकर निकले थे, जिनकी रथयात्रा के पीछे-पीछे चीख-पुकार,धुंआ,आगज़नी,दंगे-फसाद जैसा लोमहर्षक वातावरण बनता जा रहा था इतना बड़ा ‘योद्धा’ आखिर इस नौबत पर कैसे आ पहुंचा कि आज उसे अपनी आंखों से आंसू बहाने जैसा प्रदर्शन सार्वजनिक रूप से करना पड़ रहा है?
नरेंद्र मोदी आज हमारे देश के सर्वोच्च पद पर ज़रूर आसीन हैं और भारतवर्ष जैसे महान लोकतंत्र का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं। केवल अडवाणी ही नहीं बल्कि और भी कई आरएसएस व भाजपा के नेताओं की आंखों से इन्होंने भी खूब ‘आंसू’ निकलवाए हैं। मार्गदर्शक मंडल के कई लोग इनके ‘नश्तर’ का शिकार हो चुके हैं। 56 ईंच के अपने सीने की विशेषता तो यह खुद ही बता चुके हैं। अपने महाबली होने तथा विशाल देश की मज़बूत सरकार के नुमाईंदे होने की बात करते ही रहते हैं।
स्वयं को 130 करोड़ जनता की आवाज़ बताते हैं। इस समय देश के सैकड़ों नेताओं के वे ही भाग्यविधाता हैं। राष्ट्रपति से लेकर विधान परिषद् के सदस्य तक आप ही की मजऱ्ी से बनाए जा रहे हैं। ऐसे में यदि भारत का इतना शक्तिशाली व्यक्ति कभी आंसू बहाता- पोंछता नज़र आ जाए तो या तो उसकी बहादुरी पर संदेह होगा या फिर उसके आंसू भी संदेहास्पद नज़र आएंगे। यह सवाल ज़रूर पूछा जाएगा कि इतने शक्तिशाली व्यक्ति खासतौर पर जिसने भारतवर्ष को आज़ादी के 70 वर्षों के बाद अब विकास के मार्ग पर ले जाने जैसा ‘दृढ़ संकल्प’ किया हो उसकी आंखें अश्कबार कैसे हो सकती है?
उत्तर प्रदेश के वर्तमान मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के चेले प्रदेश में नारा लगाते फिरते हैं कि-‘यूपी में गर रहना है तो योगी-योगी कहना है। इस नारे में दंभ तथा ज़ोर-ज़बरदस्ती की जो शैली नज़र आ रही है वह निश्चित रूप से लोकतंत्र के वास्तविक मूल्यों की धज्जियां उड़ाने वाली है। योगी ने समुदाय विशेष को संबोधित करते हुए अपने दर्जनों ऐसे भाषण दिए हैं जो हिंसा,द्वेष तथा नफरत को बढ़ावा देते हैं। इन पर कई आपराधिक मु$कदमे भी लंबित हैं। कहा जा सकता है कि इस समय उत्तर प्रदेश के सबसे ताकतवार नेताओं में उनकी गिनती है। कुछ विश्लेषक तो नरेंद्र मोदी के बाद योगी में ही देश का उज्जवल भविष्य देख रहे हैं।
एक बार यूपीए सरकार के शासनकाल मेें लोकसभा में इस शक्तिशाली नेता को ाी आंसू बहाते देखा जा चुका है। और अब ताज़ातरीन मिसाल एक ऐसे व्यक्ति के आंसू बहाने की है जिसने हमेशा नफरत और हिंसा फैलाने पर ही ज़ोर दिया है। विश्व हिंदू परिष्द के नेता प्रणीण तोगडिय़ा जो भारत को हिंदू राष्ट्र बनाने, देश के मुसलमानों को जेहादी साबित करने,डॉक्टरी जैसे पवित्र पेशे को छोडक़र हिंदू धर्म की ‘सेवा’ में अपना जीवन समर्पित करने तथा किसी भी $कीमत पर यथाशीघ्र राममंदिर निर्माण किए जाने जैसे संकल्प के साथ काम कर रहे थे और निश्चित रूप से खांटी हिंदुत्ववादी विचारधारा रखने वाले लोगों के मध्य उनकी अच्छी स्वीकार्यता भी है, ऐसे क्रांतिकारी फायरब्रांड नेता को भी गत् दिनों मीडिया के समक्ष अपनी बेबसी के आंसू बहाते देखा गया। हालांकि तोगडिय़ा ने इशारों में यह भी बता दिया कि उनके आंसुओं के जि़ मेदार भी वही हैं जो अडवाणी के आंसूओं का जि़ मेदार है।
वैसे तो शायर यही कहते हैं कि आंसू,दिल की ज़ुबान होते हैं। परंतु कहावत लिखने वालों ने दिल से निकलने वाले जज़्बाती आंसुओं के अलावा ज़बरदस्ती निकाले जाने वाले आंसुओं को भी ‘घडिय़ाली आंसू’ का नाम दिया है। आलेख में जिस स्तर के लोगों का जि़क्र किया गया है उस स्तर पर तो वास्तव में रोने-पीटने का चलन ही नहीं होता। आप देखेंगे कि किसी $गमगीन माहौल में जब इस स्तर के नेता इक_ा होते हैं तो वे अपनी $गमगीन आंखों को छुपाने के लिए काले चश्मे का भी सहारा ले लेते हैं।
परंतु जब देश के शक्तिशाली समझे जाने वाले नेता मीडिया के समक्ष,लोकसभा में या सार्वजनिक सभाओं में रोने-पीटने जैसे ‘दृश्य प्रस्तुत’ करने लग जाएं तो उनके मज़बूत इरादों तथा उनके व्यक्तित्व पर संदेह पैदा होने लगता है। आम लोगों को यह सोचकर संदेह होने लगता है कि खुद को देश का मज़बूत राजनेता समझने वाले लोगों की आंखों में आने वाले आंसू वास्तविक हैं,राजनैतिक हैं,या परिस्थितियों वश बहने वाले आंसू हैं अथवा किसी दूसरी घटना को याद कर किसी तीसरे स्थान पर बहाए जाने वाले ऐसे आंसू हैं जो जनता पर अपने उदार हृदय,कोमल मन तथा पवित्रता के प्रदर्शन के अतिरिक्त इसी के माध्यम से जनता की सहानुभूति हासिल करने का उपाय मात्र हैं? ज़ाहिर है ऐसे में-‘कैसे हो पाए भला इंसान की पहचान। दोनों नकली हो गए आंसू और मुस्कान’।।
तनवीर जाफरी
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