अगर आज साक्षी मालिक, बबिता कुमारी को उनके माता-पिता ने कुश्ती करने से रोका होता तो भारत को ऐसे अनमोल रत्न नहीं मिल पाते। हम लड़कियों के लिए आस्मां भी कम है अगर हमे उड़ने का मौका दिया जाए तो।
आज लड़कियां हर क्षेत्र में लड़कों से कंधे से कंधा मिलाकर चल रही है, या यूं कहे उनसे आगे निकल चुकी है। फिल्ड चाहे जो भी हो, डॉक्टर, इंजिनीयर , टीचर, पायलट, एक्टर, स्टंट वुमन, आज लड़कियां पेन से लेकर प्लेन तक चलाना जान चुकी है। खेल कूद में भी अब लड़कियां पीछे नहीं है, फिर चाहे वो कुश्ती ही क्यों ना हो।
इस वर्ष भारत को कई ऐसे चेहरे मिले जो कुश्ती में अव्वल है, और खुशी की बात ये है की, सारी की सारी लड़कियां जैसे हमारी शाक्षी मालिक जिन्होंने ओलम्पिक्स में कांस पदक जीत कर देश का सर ऊंचा किया, विनेश फोगाट ,बबिता कुमारी जिसने ओलम्पिक्स में सिल्वर मेडल पाया था इनके जैसे और भी कई नाम शुमार है।
हाल ही में रिलीज हुई फिल्म ‘दंगल’ भी जो की भारत की मशहूर फीमेल रेसलर गीता फोगाट और बबिता कुमारी की कहानी पर आधारित है। भारत में ज्यादातर महिला पहलवान हरियाणा प्रदेश से निकली है। जो की हरियाणा प्रदेश के लिए बड़े शान की बात है, और उससे भी ज्यादा गर्व की बात है की वे हमारे देश को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उजागर कर रहीं है।
मेडलिस्ट पेड़ पर नहीं उगते, उन्हें बनाना पड़ता है, मिसाले दी जाती है, बोली नहीं जाती पहलवानी तो सिर्फ छोरे करे है, ‘म्हारी छोरियां के किसी छोरे से कम है के’ दंगल फिल्म के इन डायलॉग ने लोगो की सोच बदल कर रख दी है। आज के वक़्त पेरेंट्स अपनी बेटियों को पूरी तरह से सपोर्ट करते है।
वे चाहे जिस भी फिल्ड में जाना चाहती है, फिर चाहे वो कुश्ती ही क्यों ना हो उनके पेरेंट्स उन्हें नहीं रोकते। अगर आज साक्षी मालिक, बबिता कुमारी को उनके माता-पिता ने कुश्ती करने से रोका होता तो भारत को ऐसे अनमोल रत्न नहीं मिल पाते। हम लड़कियों के लिए आस्मां भी कम है अगर हमे उड़ने का मौका दिया जाए तो।