लोकतान्त्रिक देश मे बहुमत की सरकार होने का मतलब हैं सरकार को अपनी योजनाओं एंव नीतियों के क्रियान्वन के लिए ज्यादा मशक्कत नही करनी पङती हैं परन्तु उसी लोकतान्त्रिक देश मे जब एक बहुमत की सरकार अपनी स्वतन्त्रता को स्वछंदता मे बदलती हुई दूसरी बहुमत की सरकार को उसकी नीति के क्रियान्वन के लिए रोकने लगे तो उस समय सरकार के बहुमत पर सवाल खङे होने लगते हैं ।
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यह स्थिति देश मे केन्द्र सरकार एवं राज्य सरकार के बीच उत्पन्न हो गई हैं जिसके कारण दिल्ली की जनता इस बहुमत के खेल के बीच मे खुद को ऐसा उलझा हुआ महसूस कर रही हैं कि वह चाह कर भी अपने आपको इस खेल से बाहर नही निकाल सकती हैं ।
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केन्द्र सरकार पर बहुमत को लेकर स्वछंता का आरोप पिछले कई दिनों से लग रहा हैं । बहुमत की आङ मे केन्द्र सरकार राज्यपाल पद की गरिमा का ख्याल न रखते हुए इस पद को अपने राजनैतिक हित साधने के लिए प्रयोग कर रही हैं । जिसका उदाहरण उत्तराखण्ड , हिमाचल मे राष्ट्रपति शासन था ।
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केन्द्र सरकार एंव दिल्ली सरकार के बीच लङाई की स्थिति ऐसी हो गई हैं कि दोनों एक दूसरे के लिए हमेशा किसी भी मुद्दे पर तलवार लेकर खङे हो जाएं । दिल्ली की स्थिति के लिए और उसकी वर्तमान समस्याओं के लिए पूरी तरह दिल्ली सरकार को जिम्मेदार नही ठहराया जा सकता हैं क्योकि दिल्ली सरकार के पास न तो खुद की पुलिस हैं और न ही राज्य पर पूर्ण अधिकार हैं ।
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जिसके कारण दिल्ली सरकार को केन्द्र सरकार से राजनैतिक मतभेद का शिकार होना पङ रहा हैं । केन्द्र सरकार की मनमानी का अनुमान इसी बात से लगाया जा सकता हैं कि केन्द्र सरकार के निर्देशों का पालन करने वाले दिल्ली के राज्यपाल दिल्ली की सरकार के किसी भी बिल को बिना संशोधन के आगे बढाने को तैयार ही नही होते हैं ।
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केन्द्र सरकार जब संसद मे सांसदो के वेतन वृद्दि की बात करे और उस पर बिल बनाने की मांग करे तो व पूर्णतया ठीक होता हैं लेकिन यही वेतन वृद्दि का बिल जब दिल्ली सरकार पास कराती हैं तो वह पूर्णतया गलत हो जाता हैं । दिल्ली पुलिस की सर्तकता तो एकाएक ऐसी बढी हैं कि सोचने पर विवश करती हैं कि क्या ये वही पुलिस हैं जो देश के आम राज्यो मे होती हैं ।
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विधायक के नाम पर अगर सिर्फ शिकायत भी हुई तो विधायक को तुरन्त जेल की हवा खानी पङती हैं । भरी प्रेस कांफ्रेस तो कांफ्रेस , विधायक के तो उनके बेडरुम से भी गिरफ्तार किया जा रहा हैं और उन सब के बीच के पीछे यह बात तो किसी भी छुपी नहीं हैं कि दिल्ली पुलिस किस सरकार के अन्दर आती हैं और किसके दिशा – निर्देशों का पालन करती हैं ।
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दिल्ली पुलिस ने बीते 17 महीने मे 10 विधायको को गिरफ्तार की हैं जिनमें से 8 जमानत पर हैं इनमें से 5 के खिलाफ उनकी गिरफ्तारी के बाद केस आगे ही नही बढ पाया बाकि दो के मामले में चार्जशीट दाखिल हुई हैं और 1 विधायक अभी जमानत पर बाहर हैं , एक जेल में हैं और एक के खिलाफ केस खत्म हो चुका हैं । भाजपा शासित या अन्य पार्टियों द्वारा शासित राज्य मे विधायकों को पुलिस का सान्धिय प्राप्त हैं ।
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विधायकों पर गम्भीर से गम्भीर आरोप होने पर भी उनको गिरफ्तार नही किया जाता हैं , उल्टे उन्हे सुरक्षा प्रदान की जाने लगती हैं । ऐसे मे सवाल उठना तो लाजमी हैं कि केन्द्र सरकार जब पुलिस पर अपराध रोकने के लिए इतना दबाव बनाती हैं तो अन्य भाजपा शासित राज्यो की सरकार पुलिस पर वहाँ के ऐसे विधायको पर लगे आरोप पर कार्यवाही करने की स्वतन्त्रता क्यों नही दे पाती हैं ।
दिल्ली पुलिस पर केन्द्र सरकार के निरंकुश नियन्त्रण एंव दोगलापन इसी बात से दिखता हैं कि पुलिस विधायकों पर मात्र शिकायत की सूचना पर उन्हें गिरफ्तार कर लेती हैं । पर दिल्ली मे बढते महिला अपराधों पर नियन्त्रण करने और अपराधी को गिरफ्तार करने के मामले मे पुलिस की सारी चुस्ती सुस्ती मे बदल जाती हैं ।
दिल्ली सरकार का आरोप हैं कि केन्द्र सरकार दिल्ली के बाहर गोवा , पंजाब , गुजरात में आम आदमी पार्टी के बढते फैलाव के कारण चिन्तित हो गई हैं , जिससे वे आप को हर कदम पर दबाने की कोशिश कर रही हैं । आम आदमी पार्टी की दिल्ली सरकार ने केन्द्र सरकार के साथ विवादो मे रहने के अलावा कुछ अच्छे भी काम किए हैं
जिसमे अभी हाल – फिलहाल मे शुरु की गई पी.टी.एम. का कार्य हो या शुरु की गई ई – राशन कार्ड योजना ही क्यों न हो । इस योजना के आने के बाद लोगों को सरकारी दफ्तर के चक्कर लगाने से निजात मिलेगी । जल बोर्ड द्वारा पहले 835 एमजीडी पानी की आपूर्ती होती थी लेकिन अब यह आपूर्ती 870 एमजीडी हो गई हैं । अभी करीब 10.50 लाख लोगो को मुफ्त मे पानी मिल रहा हैं ।
ई – रिक्शा चालको के लाइसेंस के लिए कैंप लगाकर उन्हे लाइसेंस दिया जा रहा हैं । प्राइवेट स्कूलो की मनमानी पर रोक लगाने के लिए सरकार काफी कुछ काम की हैं लेकिन इन अच्छे कामों को करने के बाद भी अपनी कुछ गलियों के कारण दिल्ली सरकार को अपनी फजीहत करना पङ जाता हैं और जनता का इन योजनाओं पर ध्यान नही जा पाता हैं ।
केजरीवाल का पीएम मोदी पर सीधे–सीधे आरोप लगाना उनके पद की गरिमा के अनुकुल नहीं हैं । दिल्ली के संसदीय सचिव का मामला भी सरकार के लिए अभी मुसीबत बढाने का काम कर रहा हैं तो दूसरी तरफ पंजाब चुनाव के लिए जारी की गई 19 उम्मीदवारो की लिस्ट को लेकर भी पार्टी के अन्दर से विरोध के आवाज उठ रहे हैं ।
दिल्ली सरकार अगर थोङी सी सावधानी बरतती हुई अपने काम पर ध्यान दे तो दिल्ली मे न केवल बाकी आने वाले चार राज्यों के चुनाव में भी बेहतर प्रर्दशन कर सकती हैं तो दूसरी तरफ भाजपा सरकार को भी समझना चाहिए कि राजनैतिक दुश्मनी निकालने मे कही पार्टी इतनी व्यस्त न हो जाएं कि जनता पार्टी से बहुत दूर हो जाएं ।
पार्टी को दिल्ली की जनता ने भी लोकसभा मे सात सीटें दी हैं इसीलिए जनता के वोटों का ख्याल रखते हुए पार्टी को दिल्ली सरकार की सही योजना पर उसका समर्थन कर देना चाहिए क्योकि केवल विरोध के लिए विरोध करना ठीक नहीं हैं । दोनो सरकार के बीच फंसी जनता की समस्याओं पर दोनों सरकार की समान जिम्मेदारी बनती हैं ।
लेखिका – सुप्रिया सिंह
संपर्क – singh98supriya@gmail.com
Chappra , Bihar
Ph. no. – 09457109481
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