भारत ने अमेरिकी विदेश विभाग की ‘अंतर्राष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता’ पर प्रकाशित रिपोर्ट का खंडन किया है। भारतीय विदेश मंत्रालय का कहना है कि भारत को अपनी धर्मनिरपेक्षता पर गर्व है। भारत एक जीवंत लोकतंत्र है, जहां अल्पसंख्यकों सहित सभी नागरिकों के मौलिक अधिकारों को संविधान के तहत संरक्षित किया गया है।
बता दें इस रिपोर्ट में देश के अल्पसंख्यकों की स्थिति के बारे में भी टिप्पणी की गई है।
विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रवीश कुमार ने कहा है, “हम हमारे नागरिकों की स्थिति पर किसी विदेशी सरकार की टिप्पणी को जरूरी नहीं समझते, जिनके (नागरिकों) अधिकार संवैधानिक रूप से संरक्षित हैं।”
उन्होंने कहा है, “भारत एक जीवंत लोकतंत्र है, जहां संविधान धार्मिक स्वतंत्रता के लिए संरक्षण प्रदान करता है, और जहां लोकतांत्रिक शासन और कानून का शासन मौलिक अधिकारों को और बढ़ावा देता है और उनकी रक्षा करता है।” ये रिपोर्ट अमेरिकी विदेश मंत्री माइक पोम्पियो के भारत दौरे से पहले जारी की गई है।
क्या थी अमेरिकी रिपोर्ट?
इस रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत में 2018 के दौरान सालभर अल्पसंख्यकों खासतौर पर मुस्लिमों पर हिंदू संगठनों की भीड़ ने हमले किए हैं। जो लोग हिंसा का शिकार हुए हैं, उनमें अधिकतर गौवंश की खरीद और बीफ के कारोबार में लगे हुए थे।
शनिवार को आई इस रिपोर्ट को इंडिया 2018 इंटरनेशनल रिलीजियस फ्रीडम रिपोर्ट नाम दिया गया है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि मोदी सरकार भीड़ द्वारा धर्म और गौरक्षा के नाम पर हुए हमलों को रोकने में नाकाम रही है।
बीते साल सरकार की आलोचना करने वाले लोगों और अल्पसंख्यकों पर कई बार हमले हुए। भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के नेताओं ने भी भड़काऊ भाषण दिए।
अमेरिकी रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत के करीब 24 राज्यों में गौवंश के वध पर पूरी तरह रोक लगा दी गई है। अगर गौवध होता है तो उसके लिए न्यूनतम छह महीने और अधिकतम दो साल की सजा और जुर्माने का प्रावधान है।
जिससे सबसे अधिक मुस्लिम समुदाय प्रभावित हुआ है। इसका अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लोगों पर भी विपरीत असर पड़ा है।
गृह विभाग के हवाले से विदेश मंत्री माइक पोम्पियो ने रिपोर्ट में कहा है कि भारत में 2015 से 2017 के बीच सांप्रदायिक घटनाओं में नौ फीसदी की वृद्धि हुई है।
ऐसी घटनाएं 2017 में 822 हुईं, जिनमें 111 लोगों की मौत हुई और 2,384 लोग घायल हुए। लोगों की धार्मिक भावनाओं पर धर्म के नाम पर हत्याओं, हमले, दंगों और भेदभाव से ठेस पहुंची है।
इस रिपोर्ट में जम्मू कश्मीर के कठुआ में आठ साल की मुल्सिम लड़की के अपहरण, दुष्कर्म और हत्या के मामले के बारे में भी कहा गया है।
इसमें कहा गया है कि अल्पसंख्यकों के खिलाफ अपराधों में पुलिस और सरकारी कर्मचारी भी शामिल थे। पीड़ित लड़की के साथ निर्दयता के लिए उसे मंदिर में रखा गया।