आज लगभग हर माँ बाप इस समस्या से परेशान है कि वह अपने बच्चे की बात माने या न माने। शिक्षाविद आर्यवीर लायन विकास मित्तल बताते है कि अगर आपका बच्चा किसी बात के लिए ज़िद्द करता है, तो हो सकता है कि ‘ना’ कहने से वह आसानी से नहीं माने। जब भी आप किसी बात के लिए उसे ‘ना’ कहेगें तो वह आपके सब्र की जांच करेगा।
कही बार तो वह रोकर, चिल्लाकर अपनी बात मनवाने की कोशिश करता है, आप चाहे जो भी कहें, पर वह नहीं मानता। आखिर में तंग आकर आपको लगता है, अब बच्चे के सामने हार मानने के सिवाय आपके पास कोई रास्ता नहीं। फिर आप बच्चे के सामने कमज़ोर पड़ जाते है और उसकी ज़िद्द से तंग आकर आप उसकी बात मान लेते हैं। आप बच्चे के सामने इस तरह हारने बच सकते हैं। लेकिन सबसे पहले ‘ना’ कहने के बारे में कुछ बातों पर ध्यान दीजिए।
माँ बाप को क्या मालूम
शिक्षाविद आर्यवीर लायन विकास मित्तल बताते है कि कुछ माँ बाप इस बात से सहमत नही होगें कि ‘ना’ कहना बेरहमी से पेश आना नहीं है। वे शायद कहें कि आपको अपने बच्चे को सीधे-सीधे ना कहने के बजाय, उसे ना कहने कारण बताना चाहिए और साथ बच्चे को समझाना चाहिए और किसी भी तरह बात मनवाने की कोशिश करनी चाहिए। पर जहाँ तक हो सके बच्चे को ‘ना’ कहकर नाराज करने से बचना चाहिए।
हो सकता है कि माँ बाप के ‘ना’ कहने से शुरू-शुरू में बच्चा निराश हो सकता है, मगर इससे वह एक ज़रूरी जीवन का पाठ सीखता है। वास्तविक ज़िंदगी में हर किसी की कुछ सीमाए होती हैं, जिन्हें बच्चे को मानना ही है। लेकिन अगर माँ बाप बच्चे की ज़िद्द के आगे घुटने टेक देंगे, तो वह अपने अधिकार की ताकत को कम करेगें और साथ ही साथ आप बच्चे की जिद्द करने की आदत को बढावा देगें , जिससे उसे जब भी कुछ चाहिए उसके लिए वह रो-धोकर आपको राज़ी करवा सकता है। मगर समय के साथ साथ, माँ बाप ऐसे व्यवहार से वह उनसे नाराज़ रहने लगेगा। और ज़रा सोचिए, जिन माँ बाप को बच्चे रो-धोकर आसानी से राज़ी कर लेते हैं, उनकी बच्चे कितनी इज़्ज़त करेंगे?
‘ना’ कहकर माँ बाप बच्चे को भविष्य के लिए तैयार करते है कि युवा या बड़े होने पर उसे कैसे पेश आना चाहिए। इससे आप बच्चे को सिखाते हैं कि अपनी इच्छाओं को ‘ना’ कहना फायदेमंद है। जो बच्चा यह ज़रूरी सबक सीख लेता है, उस पर युवा होने पर अगर ड्रग्स लेने या शादी से पहले लैंगिक संबंध रखने का दबाव आता है, तो मुमकिन है वह आसानी से समझौता नहीं करेगा।
ना कहकर माँ बाप बच्चे को इस बात के लिए भी तैयार करते हैं कि बड़े होने पर उसे कैसे पेश आना चाहिए। डॉक्टर डेविड वोल्श कहते हैं, ‘सच्चाई यह है कि हम बड़ों को हर वह चीज़ नहीं मिलती, जो हम चाहते हैं। इसलिए अगर हम अपने बच्चों को सिखाते हैं कि यह दुनिया उन्हें मुँह-माँगी चीज़ देगी, तो हम उन्हें समझदार इंसान बनने में मदद नहीं दे रहे होंगे।
माँ बाप क्या कर सकते हैं
अगर माँ बाप चाहते हैं कि उनका बच्चा बडा होकर होनहार, जज़्बातों पर काबू रखनेवाला और एक कामयाब इंसान बने तो उनको ना कहना आना ही चाहिए । लेकिन अगर माँ बाप बच्चे को हर वह चीज़ देंगे जो वह माँगता है, तो आप अपने लक्ष्य से हटकर निशाना लगा रहे होंगे। बाइबल कहती है, अगर किसी का पालन-पोषण उसके बचपन से लाड़-प्यार से किया जाए, तो वह बाद में एहसान-फरामोश हो जाएगा। इसलिए ‘ना’ कहना बच्चों को अनुशासित करने का एक तरीका है। ऐसी शिक्षा सेे बच्चे को कोई नुकसान नही होगा।
बच्चा आपके बराबर नहीं है। इसलिए यह ज़रूरी नहीं कि माँ बाप ने जिस बात के लिए ‘ना’ कहा है, उस बारे में बच्चे से बहस करें, मानो उनको यह साबित करना है कि उनका ‘ना’ कहना सही है। यह सही है कि जैसे-जैसे बच्चा बड़ा होता है, उसे “अपनी सोचने-समझने की शक्ति का प्रयोग करके सही-गलत में फर्क करना आना चाहिए। माँ बाप बच्चे के साथ तर्क तो करे मगर उससे लंबी-चौड़ी बहस मत कीजिए कि आपने उसको ‘ना’ क्यों कहा। अगर आप उसके साथ ज़्यादा तर्क करेंगे, तो उसको ऐसा लगेगा कि जैसे आप बच्चे से राय ले रहे हों।
एन जी एफ रेडियो की सामाजिक संयोजिका अल्पना मित्तल बताती है कि हो सकता है, आपका बच्चा रो-धोकर या गिड़गिड़ाकर या चिल्लाकर शायद यह जांच करे कि आप अपने निर्णय पर फिक्स रहते हैं या नहीं। अगर बच्चा घर पर ही जिद्द करता है, तो माँ बाप क्या कर सकते हैं? बिना नुकसान पहुँचाए प्यार से बच्चे को समझाए। मनोवैज्ञानिक सुझाव देते है कि, बच्चे से थोड़ा दूर हो जाइए। उसे बोले अगर तुम्हारा रोने का मन कर रहा है, तो रोते रहो। पर हम तुम्हारा रोना नहीं सुनना चाहता।
जाओ अपने कमरे में जाओ, वहाँ तुम्हें जितना रोना हो, रो लो। शुरू-शुरू में ऐसा करना शायद आपके लिए कठिन हो और बच्चे को भी शायद ऐसा अनुशासन पसन्द न हो। लेकिन जब उसे एहसास हो जाएगा कि आप अपनी बात से बदलेंगे नहीं, तो सकता है कि वह आपके ‘ना’ का विरोध करना कम कर देगा। एक बात और सिर्फ आप माँ बाप होने का हक जताने के लिए ‘ना’ मत करे इसके बजाय, आपके व्यवहार से बच्चे को एहसास होना चाहिए कि आप “लिहाज़ करनेवाले इंसान” हैं। कई बार जीवन में ऐसे मौके भी आते हैं, जब माँ बाप अपने बच्चे से ‘हाँ’ कह सकते हैं। बस इतना ध्यान रखें, आप बच्चे का रोना-धोना सुनकर ‘हाँ’ न कहें, न ही उसकी किसी गलत गुज़ारिश के लिए हाँ कहें।
बच्चे को ‘ना’ कहने का महत्व
डाक्टर डेविश वोल्श बताते है कि “यह एक इंसानी फितरत है कि हम चाहते हैं, हमारे घर की बगिया बच्चो की मुस्कुराहट से महकती और चहकती रहें। अगर कभी ऐसा लगे कि बच्चे कभी-भी दंगा न करे, उन्हें गुस्सा न आए या वे निराश न हों, तो यह माँ बाप के लिए एक चिन्ता की बात होगी कि हम माँ बाप होने का फर्ज अच्छी तरह नहीं निभा रहे हैं।
अगर बच्चे कभी गुस्सा या निराश हुए ही न हों, तो वे कैसे सीखेंगे कि उन्हें ऐसे हालात में कैसे पेश आना चाहिए? अगर माँ बाप अपने बच्चों को सिखाएँगे नहीं कि उन्हें कैसे खुद को अनुशासन में रखना है, तो वे कैसे सीखेंगे? यह माँ बाप ज़िम्मेदारी है कि वे ‘ना’ कहकर उन्हें ज़िंदगी के ये अनमोल सबक सिखाएँ।
लेखक:- आर्यवीर लायन विकास मित्तल
संयोजक:- पलवल डोनर्स क्लब और ज्योतिपूंज पलवल