क्रिसमस का त्यौहार आते ही हर तरफ चहल-पहल का माहौल बन जाता है। हिंदू होया मुस्लिम हर धर्म के लोग इस त्यौहार को काफी हर्षोल्लास के साथ मनाते हैं। लेकिन क्या आपको पता है कि मुगलकाल में भी क्रिसमस को बड़े ही धूम-धाम के साथ मनाया जाता था। जी हां, अकबर से लेकर शाह आलम तक के मुग़ल शासकों ने क्रिसमस मनाया है।
बता दें कि मध्यकाल यूरोप में क्रिसमस का जन्म हुआ था लेकिन उत्तर भारत में इसकी शुरुआत अकबर के शासन काल में हुई जिसने एक पादरी को आगरा में अपने राजदरबार में आमंत्रित किया था।
अकबर ने पादरी को शहर में एक भव्य चर्च बनाने की अनुमति दी थी जिसे बनने में लंबा समय लगा हालंकि अकबर के बेटे जहांगीर के शासनकाल में एक भव्य कार्यक्रम के दौरान चर्च का कर्मचारी ‘ख़ुशी से पागल हो गया था’ और घंटे को तब तक बजाता रहा जब तक वह टूटकर गिर नहीं गया।
सौभाग्य से इस दौरान कोई घायल नहीं हुआ और कर्मचारी की नौकरी भी नहीं गई। अकबर और जहांगीर इस त्योहार को मनाते थे और आगरा के किले में पारंपरिक भोज मे भाग लेते थे। “क्रिसमस की सुबह अकबर अपने दरबारियों के साथ चर्च आते थे और प्रतीकात्मक रूप से ईसा मसीह के जन्म को दिखाने के लिए बनाई गई गुफ़ा को देखते थे।”
साथ ही शाम के वक्त हरम की सभी महिलाएं और युवा राजकुमारी लाहौर में चर्च का दौरा करती थीं और मोमबत्तियां जलाती थीं। अकबर जब क्रिसमस पर आगरा के चर्च में जाते थे तो उनका स्वागत घंटियां बजाकर और भजन गाकर किया जाता था। “जो यूरोपवासी मैदान में एक-दूसरे के ख़िलाफ़ साज़िशें करते थे और लड़ते थे वो सब कुछ भूलकर इस त्योहार में बढ़-चढ़कर हिस्सा लेते थे। आगरा और शायद उत्तर भारत उनके लिए क्रिसमस पर खेले जाना वाला खेल लेकर आया।”
“क्रिसमस की रात वह आमतौर से छोटे बच्चे और बच्चियों को परियों के परिधान पहनाकर ईसा मसीह के जन्म का नाटक खेला करते थे।” साभार BBC