नई दिल्ली: नागरिकता संशोधन कानून (CAA) पर दाखिल 140 याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई शुरू हो गई है। चीफ जस्टिस एसए बोबडे की अध्यक्षता में तीन जजों की पीठ कर रही है मामले की सुनवाई। पिछली सुनवाई में शीर्ष अदालत ने याचिकाओं पर केंद्र सरकार से मांगा था जवाब। सुनवाई के दौरान कानून को चुनौती देने वाले पक्ष की दलील रखते हुए वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने कहा कि जबतक इस मामले की सुनवाई पूरी नहीं हो जाती तबतक इस को निलंबित कर दिया जाना चाहिए। सिब्बल ने संविधान पीठ के गठन की मांग की।चीफ जस्टिस बोबडे, जस्टिस अब्दुल नजीर, जस्टिस संजीव खन्ना की पीठ CAA की संवैधानिक वैद्यता पर भी कर रही है सुनवाई।
नागरिकता संशोधन कानून (CAA) के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में 140 से ज्यादा दाखिल याचिकाओं पर सुनवाई हुई। सुनवाई शुरू होने से पहले कोर्ट नंबर एक पूरी तरह से खचाखच था, जिसकी वजह से कोर्ट के तीनों दरवाज़े खोलने पड़े है। CJI एसए बोबड़े की अध्यक्षता वाली तीन जजों की पीठ मामले की सुनवाई में भीड़ के चलते परेशानी हुई। जिस पर अटार्नी जनरल ने कहा कि वकील अंदर नहीं आ पा रहे हैं। शांतिपूर्वक माहौल होना चाहिए। कुछ किया जाना चाहिए। इस पर कपिल सिब्बल ने कहा कि ये देश की सबसे बडी अदालत है। इस पर सीजेआई ने सुरक्षाकर्मियों को बुलाया। CJI एसए बोबड़े ने कहा, हमे बार एसोसिएशन के साथ बात करनी चाहिए।
अटॉर्नी जनरल ने कहा, आज 144 याचिकाएं लगी हैं। फिर CJI बोले, सभी को कोर्ट में आने की क्या जरूरत, लेकिन सभी पक्षों के साथ बैठक करेंगे। लोग अपना सुझाव दे सकते हैं। अटॉर्नी जनरल ने कहा, कुल मिलाकर 140 से ज्यादा याचिकाएं हैं। हमें हलफनामा भी दाखिल करना है। अटॉर्नी जनरल ने कहा, अभी प्रारंभिक हलफनामा दे रहे हैं। केंद्र को 60 याचिकाएं मिली हैं।
कपिल सिब्बल ने कहा, पहले ये तय हो कि इसे संविधान पीठ भेजा जाना है या नहीं। हम रोक नहीं मांग रहे लेकिन इस प्रक्रिया को तीन हफ्ते के लिए टाला जा सकता है। मनु सिंघवी ने कहा, नागरिकता देने की प्रक्रिया शुरू हो चुकी है। यूपी में 30 हजार लोग चुने गए हैं। फिर कपिल सिब्बल बोले, इसी मुद्दे पर जल्द फरवरी में कोई तारीख सुनवाई के लिए तय हो। CJI ने कहा, फिलहाल हम सरकार को प्रोविजनल नागरिकता देने के लिए कह सकते हैं।
अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने कहा कि हमने 60 याचिकाओं पर जवाब तय किए हैं जबकि कोर्ट में 144 याचिकाएं हैं। उन्होंने कहा कि कोर्ट अब और पिटिशन दाखिल करने की इजाजत नहीं दे। शीर्ष अदालत ने सुनवाई के दौरान कहा कि इस मामले में वह जल्दबाजी में कोई आदेश नहीं दे सकती है।