नागरिकता संशोधन विधेयक (सीएबी) को बुधवार को केंद्रीय मंत्रिमंडल की स्वीकृति मिल गई। इसके जरिए पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान से आए हिंदू, जैन, बौद्ध, सिख, पारसी और ईसाई समुदाय के लोगों को भारतीय नागरिकता देने का प्रावधान है।
इस बिल में मुस्लिम समुदाय के लिए नागरिकता देने की बात नहीं कहीं गई है। इस बिल को अगले सप्ताह संसद में पेश किए जाने की उम्मीद है।
वहीं, दूसरी तरफ विपक्षी पार्टियां इस बिल के विरोध में उतर आई हैं। एआईएमआईएम प्रमुख असदुद्दीन औवेसी ने इस बिल को लेकर सरकार को घेरते हुए, उनकी मंशा पर सवाल उठाए हैं।
असुदद्दीन औवेसी ने कहा कि नागरिकता (संशोधन) विधेयक बिल लाने के पीछे की सरकार की मंशा है कि वह हिंदुस्तान को एक धर्म आधारित देश बना दें।
इस बिल के लागू होने के बाद हिंदुस्तान और इसराइल में अब कोई फर्क नहीं रहेगा। संविधान में धर्म के आधार पर नागरिकता देने की कोई बात ही नहीं है।
उन्होंने सवाल पूछा कि अगर कोई नास्तिक होगा तो आप क्या करेंगे? इस तरह का कानून बनाने के बाद हम पूरी दुनिया में हमारा मजाक बनेगा। भाजपा सरकार हिंदुस्तान के मुसलमानों को संदेश देना चाहती है कि आप अव्वल दर्जे के शहरी नहीं हैं बल्कि दूसरे दर्जे के शहरी हैं।
औवेसी ने कहा कि अगर मीडिया रिपोर्ट सही है कि पूर्वोत्तर राज्यों को प्रस्तावित सीएबी कानून से छूट दी जाएगी, तो यह मौलिक अधिकारों से संबंधित अनुच्छेद 14 का घोर उल्लंघन होगा क्योंकि आपके पास इस देश में नागरिकता पर दो कानून नहीं हो सकते हैं। उन्होंने कहा कि यह धर्म के आधार पर नागरिकता देगा, जो हमारे संविधान के सिद्धांतों के खिलाफ है।
औवेसी ने कहा कि सीएबी लाना हमारे स्वतंत्रता सेनानियों के लिए एक अपमानजनक होगा क्योंकि आप द्वी-राष्ट्र सिद्धांत को पुनर्जीवित कर रहे हैं। एक भारतीय मुस्लिम के रूप में, मैंने जिन्ना के द्वी-राष्ट्र सिद्धांत को खारिज कर दिया। अब आप एक कानून बना रहे हैं, जिसमें दुर्भाग्य से, आप द्वी-राष्ट्र सिद्धांत की याद दिला रहे हैं।