कांग्रेस पार्टी इस समय संकट के दौर से गुज़र रही है। इसकी सबसे मुख्य वजह यही है कि सत्ता में न होने के चलते सत्ता के बिना राजनीति में घुटन महसूस करने वाले सत्तालोलुप,स्वार्थी व अवसरवादी नेताओं का किसी न किसी बहाने पार्टी छोड़ना। मौक़े की तलाश में लंबे समय से सत्ता के लिए संघर्षरत भारतीय जनता पार्टी का हाथ धोकर कांग्रेस के पीछे पड़ जाना भी कांग्रेस की कमज़ोरी का एक कारण है। विभिन्न राज्यों में कांग्रेस की सरकार गिराने व कमज़ोर करने में भाजपा कोई कसर बाक़ी नहीं रख रही है । चाहे कांग्रेस को बदनाम करने के लिये उसे ‘मुसलमानों की पार्टी’ कहकर बदनाम करना हो,चाहे ‘राम विरोधी’ राजनैतिक दल बता कर हिन्दू जन भावनाओं को कांग्रेस के विरुद्ध करना हो,या फिर सत्ता के दबाव में सरकारी प्रतिष्ठानों का प्रयोग कर पार्टी नेताओं में भय पैदा करने की कोशिश हो,चाहे लोभ लालच देकर अपने पक्ष में लाना हो,भाजपा ने कांग्रेस को समाप्त करने के प्रयासों में हर जगह अपना महत्वपूर्ण किरदार निभाया है। जिसका सबसे बड़ा प्रमाण यह है कि स्वयं प्रधानमंत्री सार्वजनिक मंचों से कई बार ‘कांग्रेस मुक्त भारत’ का नारा दे चुके हैं।
ज़रा सोचिये जिस राजनैतिक संगठन के नेतृत्व में महात्मा गाँधी के नेतृत्व में देश की आज़ादी की लड़ाई लड़ी गयी हो,जिस संगठन ने देश की स्वतंत्रता के बाद लगभग 5 दशकों तक शासन कर देश को आत्मनिर्भरता के मार्ग पर ला खड़ा किया हो,जिस कांग्रेस के नेतृत्व में देश ने विश्व के सबसे बड़े धर्मनिरपेक्ष लोकतंत्र के रूप में अपनी पहचान स्थापित की हो,जिस पार्टी के गाँधी,पटेल व नेहरू जैसे अनेक नेता किसी भी क्षेत्र,भाषा,रंग,भेद,धर्म व जाति की सीमाओं से ऊपर उठकर सभी देशवासियों को समान रूप से आदर व मान सम्मान देते रहे हों,जिस कांग्रेस पार्टी ने विपक्ष व विपक्षी दलों के नेताओं को हमेशा आदर,सत्कार,सम्मान व पूरा महत्व दिया हो देश के उस ऐतिहासिक राजनैतिक संगठन को देश के इतिहास से मिटाने की कोशिश की जा रही है। मध्य प्रदेश,छत्तीसगढ़ व राजस्थान में विजयी होने वाला दल यदि बिहार में सफल नहीं हो पाता तो सोनिया व राहुल के नेतृत्व पर सवाल उठने लगते हैं। जो नेता आज सोनिया गाँधी व राहुल गाँधी के नेतृत्व पर सवाल खड़ा कर रहे हैं उन्हें कम से कम अपने जनाधार के बारे में तो ज़रूर सोचना चाहिए। कल तक ख़ुशामद परस्त प्रवृति के यही लोग राजीव गाँधी को ग़लत मशविरे दिया करते थे।
आज यदि देश सांप्रदायिक ताक़तों के हाथों में चला गया है तो निश्चित रूप से इसके ज़िम्मेदार जहाँ देश के तथाकथित अनेक वे धर्मनिर्पेक्ष दल हैं जो समय समय पर भाजपा के साथ सत्ता की भागीदारी कर भाजपा को शक्तिशाली बनाते रहे वहीं कांग्रेस आला कमान के वे सलाहकार भी कम ज़िम्मेदार नहीं जो सांप्रदायिक शक्तियों के प्रसार को रोक पाने में अपनी सशक्त भूमिका नहीं निभा पाए। सांप्रदायिक शक्तियों के विरुद्ध अर्जुन सिंह,माधव राव सिंधिया,राजेश पॉयलट,दिग्विजय सिंह जैसे नेताओं की बुलंद आवाज़ को पार्टी में उठने नहीं दिया गया। उधर अस्तित्व में आने के समय से ही कांग्रेस में अनेकानेक ‘आस्तीन के साँप ‘ भी पलते रहे। कोई पार्टी में सांप्रदायिक एजेंडा चलाता रहा तो कोई ‘सत्ता दोहन’ में लगा रहा। कुछ भ्रष्टाचार को ही अपनी सियासी ज़िन्दिगी का सरमाया समझ बैठे तो कुछ ने चाटुकारिता व ख़ुशामद परस्ती को ही अपनी सफल राजनैतिक जीवन की कुंजी मान लिया।
पार्टी के ऐसे ही दमघोंटू वातावरण ने अमिताभ बच्चन जैसे महानायक को 1987 में पार्टी व संसद की सदस्यता छोड़ने के लिए बाध्य किया। आज जो आधारहीन नेता पार्टी में पांच सितारा संस्कृति हावी होने की बात कर रहे हैं दरअसल स्वयं यही लोग पार्टी को पांच सितारा संस्कृति की ओर ले जाने के ज़िम्मेदार भी हैं और अपने ग़लत फ़ैसलों व ग़लत मशविरों के कारण पार्टी को नुक़सान पहुँचाने के भी। यही वे नेता हैं जिनकी सलाह पर इलाहाबाद में 1987 में अमिताभ बच्चन को विश्वनाथ प्रताप सिंह की चुनौती स्वीकार करने से रोका गया तथा 1987 के इलाहाबाद उपचुनाव में अमिताभ बच्चन को पुनः विश्वनाथ प्रताप सिंह के सामने खड़ा करने के बजाए सुनील शास्त्री जैसे बेहद कमज़ोर उमीदवार को मैदान में उतार कर वी पी सिंह के भविष्य का रास्ता साफ़ किया गया।कांग्रेस के पतन की शुरुआत तो दरअसल वहीँ से हुई थी। जबकि कथित रूप से ‘बोफ़ोर्स दलाली’ के आरोपों के सहारे विपक्ष ने वी पी सिंह के कंधे पर बंदूक़ रख कांग्रेस को कमज़ोर,विभाजित व सत्ता से बेदख़ल करने का षड़यंत्र रचा था जिसे काँग्रेस की पांच सितारा राजनीति के महारथी न समझ सके न ही इससे स्वयं को बचा सके।
देश में सांप्रदायिक शक्तियों तथा विचारों का प्रसार भी कांग्रेस के पतन का एक कारण है। भारतीय जनता पार्टी ने धर्म के नाम का इस्तेमाल कर एक ऐसा ‘नरेटिव’ तैयार कर दिया है जिससे आम लोग सांप्रदायिक सद्भाव,धार्मिक व जातीय एकता,मंहगाई,बेरोज़गारी,क़ानून व्यवस्था,शिक्षा,सड़क,स्वास्थ्य,बिजली पानी आदि अनेक बुनियादी ज़रूरतों के बारे में कुछ जानने व सुनने के गोया इच्छुक ही नहीं रहे । भाजपा ने उन्हें ‘स्वाभिमान’ , हिंदुत्व,हिन्दू राष्ट्र,मंदिर,’लव जिहाद’,गौ रक्षा,संकीर्णता,स्थानों के नाम परिवर्तन,अल्पसंख्यक विरोध,कश्मीर,चीन,पाकिस्तान व आतंकवाद जैसे अनेक भावनात्मक मुद्दे दे दिए हैं। हालांकि इन मुद्दों का आम लोगों की रोज़ी रोटी या उनके जीवन यापन,तरक़्क़ी आदि से कोई वास्ता नहीं फिर भी चूँकि भाजपा इन्हीं मुद्दों के सहारे निरंतर आगे बढ़ती रही है इसलिए वह इन्हीं मुद्दों को अपनी जीत का मंत्र व सूत्र भी मानती है।
ठीक इसके विपरीत कांग्रेस पार्टी सभी धर्मों व जातियों को साथ लेकर चलने वाली,अल्पसंख्यकों का विशेष ध्यान रखने वाली,जिसे भाजपाई अपनी भाषा में तुष्टीकरण कहती है,सभी धर्मस्थानों को समान सत्कार देने वाली,धर्म व राजनीति में फ़ासला बनाकर रखने का प्रयास करने वाली,कश्मीर से कन्याकुमारी तक सभी देशवासियों को भारतीयता के एक सूत्र में पिरोकर रखने का प्रयास करने वाली पार्टी रही है। स्वतंत्रता के बाद जहाँ कांग्रेस ने नंगल डैम जैसे अनेक बड़े बाँध व् बिजली घर बना कर देश को ऊर्जा के क्षेत्र में आत्मनिर्भर किया वहीँ 1971 में पाकिस्तान का विभाजन कर तथा बांग्लादेश के रूप में नए राष्ट्र का उदय कराकर अपनी शक्ति का भी दुनिया को लोहा मनवाया है। जिस कांग्रेस ने अपनी दौर-ए-हुकूमत में दशकों तक सांप्रदायिक शक्तियों को सिर उठाने का मौक़ा नहीं दिया वे लोग आज भले ही कांग्रेस के पतन का जश्न मना रहे हों परन्तु वे यह भी जानते हैं कि जिस समय विश्व की सबसे बड़ी महाशक्ति अमेरिका, भारत को अपने सातवें युद्धक बेड़े से डरा रही थी और पाकिस्तान के पक्ष में खड़ी थी ठीक उसी समय इंदिरा गाँधी के नेतृत्व में भारतीय सेना विश्व के अब तक के सबसे बड़े सैन्य आत्मसमर्पण का इतिहास लिख रही थी। देश का इतिहास व देश के लोग उस कांग्रेस पार्टी को फ़रामोश नहीं कर सकते जिसके नेतृत्व में देश के इतिहास का स्वर्णिम अध्याय लिखा गया हो।
:-तनवीर जाफ़री