भारतीय महिलायें दिन प्रतिदिन अपने कौशल व साहस का परिचय कराती रहती हैं। कभी अंतरिक्ष में भारतीय ध्वज लहराकर,कभी विश्व के सबसे लंबे व ख़तरनाक वायुमार्ग पर विमान उड़ाकर, कभी युद्धक विमान को क़लाबाज़ियाँ खिलाकर,कभी बस,ट्रक व ट्रेन चलाकर तो कभी अपने अपाहिज बाप को पीछे बिठाकर लॉक डाउन में लगभग 1500 किलोमीटर तक लगातार साईकिल चलाकर गोया अनेकानेक जटिल क्षेत्रों में भी महिलाओं ने अपने अदम्य साहस,हौसले व सूझ बूझ का परिचय दिया है।
उधर सरकार भी ‘बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ’ का नारा देकर तथा इस योजना पर सैकड़ों करोड़ रूपये ख़र्च कर यह सन्देश देना चाहती है कि नारी उत्थान के लिए सरकार भी प्रयासरत है। परन्तु दुर्भाग्यवश इसी बीच महिलाओं के साथ होने वाले दुराचार,शारीरिक शोषण,बलात्कार,सामूहिक बलात्कार व हत्याओं की ख़बरें भी आती ही रहती हैं।कई समाचार तो ऐसे होते हैं जिन्हें सुन -पढ़कर तो यह विश्वास ही नहीं होता कि वासना में डूबा राक्षस रुपी पुरुष इस हद तक गिर सकता है व अमानवीयता की सभी सीमाएं लांघ सकता है? परन्तु निःसंदेह यह हमारे देश के अति दूषित मानसिकता रखने वाले कलंकी लोगों का एक कुरूपित चेहरा है जो नारी का शारीरिक शोषण भी करता है,उससे सामूहिक बलात्कार भी करता है और जब अपनी शैतानी सोच की सभी सीमाओं को पार कर जाए तो महिला के गुप्तांग में लोहे की रॉड डालकर या उसमें पत्थर भरकर उसी नारी को असीम कष्ट पहुंचाते हुए उसे मौत के घाट भी पहुंचा देता है। देश में अनेकानेक घटनायें ऐसी भी हो चुकी हैं जिससे यह पता चला कि बलात्कार,शारीरिक शोषण या छेड़ख़ानी की शिकार महिलायें जब अपनी शिकायत दर्ज कराने पुलिस चौकी या थाने पहुँचती हैं उस समय पीड़ित महिला से ही इस तरह के इतने सवाल किये जाते हैं कि जैसे सारा दोष पीड़ित महिला का ही हो। और इससे भी बड़ी त्रासदी यह है कि पुरुषों के ज़ोर,ज़ुल्म,उत्पीड़न व ज़्यादती की शिकार यही महिला अपने साथ होने वाली घटना के बाद समाज द्वारा बुरी व अपमान जनक नज़रों से देखी जाती है। गोया अपने साथ हुई ज़्यादती की ज़िम्मेदार पुरुष नहीं बल्कि वह स्वयं है ?
एक ओर तो भारतीय महिलायें अपने साहस,कौशल,पराक्रम व हौसले का लोहा मनवाते हुए नित्य नये कीर्तिमान स्थापित कर रही हैं। उधर पुरुष समाज को कलंकित करने वाले सरफिरे नारी स्मिता की धज्जियां उड़ाने में कोई कसर बाक़ी नहीं रखना चाह रहे तो एक ओर हमारे ही देश में अभी तक यही निर्धारित नहीं हो पा रहा कि यौन शोषण व शारीरिक शोषण की परिभाषायें क्या हों ? हमारे देश की अदालतें अभी तक यही तय कर रही हैं कि पुरुष के किस सीमा तक चले जाने को यौन शोषण माना जाये और किस हद तक जाना यौन शोषण के दायरे में नहीं आता। वैसे तो धर्म,समाज व नीति शास्त्र के लोगों का मानना है कि मन में किसी तरह के पाप का विचार आना ही पाप किये जाने के समान होता है। पश्चिमी देशों में भी लोग अपने बच्चों को पुरूषों द्वारा किये जाने वाले शारीरिक स्पर्श को ‘गुड टच’ व ‘बैड टच’ के रूप में अलग अलग तरीक़ों से शिक्षित करते हैं। महिलाओं में पर्दा व घूंघट प्रथा के पीछे का भी कड़ुवा सच यही है कि औरत ग़ैर पुरुषों की कुदृष्टि से बची रहे। गोया हर जगह पुरुष को पूरी छूट व स्वतंत्रता है जबकि महिलाओं को ही सारे परदे,घूंघट व सुरक्षा संबंधी उपाय करने ज़रूरी बताए गए हैं ?
यौन शोषण के ही एक मामले में पिछले दिनों मुंबई उच्च न्यायालय की नागपुर बेंच की एकल पीठ द्वारा एक आश्चर्य जनक निर्णय सुनाया गया जिसने यौन शोषण की परिभाषा को और भी विस्तृत किया है। ख़बरों के अनुसार एक व्यक्ति 12 वर्ष की एक बच्ची को अमरुद देने की लालच देकर अपने घर के अंदर ले गया। वहां उसने बच्ची के शरीर से देर तक छेड़ छाड़ की। उसके शरीर के निजी अंगों को देर तक छेड़ता रहा। इस बीच पीड़िता की मां अपनी बच्ची को तलाश करते हुये दुष्कर्मी के घर पहुंची। तभी बच्ची ने अपने साथ हुए ज़ुल्म की सारी कहानी रो रो कर अपनी मां को सुना डाली। उसी बयान के आधार पर आरोपी के विरुद्ध मुक़द्द्मा दर्ज किया गया। अब इसी मामले के संबंध में मुंबई उच्च न्यायालय की नागपुर पीठ की न्यायाधीश पुष्पा गानेडीवाला ने यौन शोषण की परिभाषा को और अधिक विस्तृत रूप से बयान किया है। माननीय न्यायाधीश के अनुसार केवल किसी की इच्छा के विपरीत कामुकता से स्पर्श करने मात्र को यौन शोषण नहीं माना जा सकता। बल्कि शारीरिक संपर्क तथा यौन शोषण के इरादे से किया गया शरीर से शरीर का संपर्क ही यौन शोषण माना जा सकता है। माननीय न्यायाधीश के मुताबिक़ केवल नाबालिग़ लड़की के स्तन को छूना भर यौन शोषण की श्रेणी में शामिल नहीं हो सकता। न्यायमूर्ति कहती हैं कि यदि आरोपित ने ज़्यादती के इरादे से शारीरिक संपर्क हेतु पीड़िता के कपड़े उतारे होते,उसके अंडर गारमेंट्स में हाथ डालने की कोशिश की होती तो यह कृत्य यौन शोषण के श्रेणी में ज़रूर आता। इस मामले में हुई सुनवाई के दौरान न्यायमूर्ति द्वारा और भी इसी तरह के अनेक बिंदुओं पर रौशनी डाली गयी।
हालांकि सर्वोच्च न्यायलय ने मुंबई उच्च न्यायालय की नागपुर बेंच के उस निर्णय पर रोक लगा दिया है जिसमें सीधे शारीरिक स्पर्श किए बिना ग़लत तरीके से छूने को यौन हमला न माने जाने का फ़ैसला पिछले दिनों सुनाया गया था। परन्तु सवाल यह है कि जिस समाज में धर्म-समाज व नैतिक शिक्षा यह बताती हो कि बुरे इरादों या बुरी नीयत मात्र से ही आप बुराई के हक़दार व पाप के भागीदार हो जाते हैं। उसी समाज में नासिक न्याय पीठ का यौन शोषण की सीमाओं को विस्तार देने वाला यह निर्णय समाज को क्या दिशा देगा ? हमारे देश में तो बसों,ट्रेन,मेला ठेला,बाज़ार,पिक्चर हॉल तथा भीड़ भाड़ वाले स्थानों पर अक्सर लड़कियों को शोहदों की इन्हीं हरकतों का शिकार होना पड़ता है जिन्हें माननीय अदालत यौन शोषण स्वीकार नहीं करना चाहती। लफ़ंगे व मनचले लोग प्रायः भीड़ में अवसर पाकर महिलाओं के शरीर से अपने शरीर का संपर्क बनाना चाहते हैं। मौक़ा मिलते ही उसके स्तन से या अन्य शारीरिक अंगों से छेड़ छाड़ करने लगते हैं। गंदे इशारे करते रहते हैं। दिल्ली का निर्भया काण्ड भी मनचलों को मिलती आ रही ऐसी ही खुली छूट का ही चरमोत्कर्ष था। ऐसे में किसी बच्ची या महिला के शारीरिक अंगों को उसकी अनेच्छा से ऊपर से छूने व भीतर से छूने के आरोपियों में भेद करना अदालत की नज़र में मुनासिब हो सकता है,अदालती फ़ैसले का सम्मान भी है परन्तु मेरे विचार से इस फ़ैसले से शोहदों के हौसले और बुलंद होंगे और शारीरिक स्पर्श व शारीरिक छेड़ छाड़ की घटनाओं में इज़ाफ़ा भी हो सकता है। अफ़सोस इस बात का भी है कि भारत सहित पूरी दुनिया की महिलायें जहां इतिहास में अपनी शौर्य गाथाएं दर्ज करा रही हैं वहीँ हम नारी स्मिता को सम्मान देने के कीर्तिमान स्थापित करने के बजाए अभी तक यौन शोषण के नित्य नए तर्क व परिभाषायें गढ़ने में व्यस्त हैं।
:-निर्मल रानी
Nirmal Rani (Writer)
phone-0972922972