नई दिल्ली – दिल्ली सरकार ने सरकारी अस्पतालों के लिए जारी की गई एक एडवाइजरी में रेप पीड़िताओं के विवादित टू फिंगर टेस्ट को मंजूरी दे दी थी, जिसे अब वो वापस ले सकती है।
हालांकि, इस एडवाइजरी में साफ-साफ कहा गया था कि यह पीड़िता की अनुमति से ही किया जाएगा। इस टेस्ट को Per Vaginal (PV) examination या पी.वी. भी कहा जाता है।
कहा जा रहा है कि विवादों में आने के बाद इस तकलीफदेह टेस्ट को लेकर जो सर्कुलर जारी किया गया था वह अब सरकार वापस ले लेगी। केजरीवाल सरकार के इस फैसले का विपक्ष खुले तौर पर विरोध कर रहा है। विपक्ष के साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने भी टेस्ट पर सवाल उठाए थे।
विशेषज्ञों के अनुसार इस टेस्ट में डॉक्टर महिला के प्राइवेट पार्ट में दो उंगलियां डालकर यह पता लगाने की कोशिश करते हैं कि रेप पीड़िता को कोई अंदरूनी चोट तो नहीं लगी है।
प्राइवेट पार्ट के अंदर से सैंपल लेकर उसकी स्लाइड बनाई जाती है और फिर लैब टेस्ट किया जाता है। इस टेस्ट में अंदर ले जाई गई उंगलियों की संख्या से यह भी सुनिश्चित किया जाता है कि महिला सक्रिय सेक्स लाइफ में है या नहीं।
सामाजिक कार्यकर्ताओं द्वारा इस टेस्ट का लंबे समय से विरोध किया जाता रहा है। 2013 में सुप्रीम कोर्ट ने भी इस टू फिंगर टेस्ट के बारे में कहा था कि ये टेस्ट पीड़िता को उतना ही तकलीफ देता है जितना कि उसके साथ हुआ रेप।
कोर्ट ने अपनी टिप्पणी में ये भी कहा था कि यह पीड़िता का अपमान तो है ही साथ ही उसके अधिकारों का हनन भी है। इस तरह का टेस्ट मानसिक पीड़ा देता है। सरकार को ऐसे टेस्ट के लिए कोई दूसरा तरीका अपनाना चाहिए।
एम्स के डॉक्टर सुधीर गुप्ता का कहना है कि हालांकि यह टेस्ट सेक्सुअल एक्सपीरियेंस और पेनीट्रेशन को जांचने के लिए किया जाता है लेकिन यह सही तरीका नहीं है। यही कारण है कि सभी इस टेस्ट का काफी विरोध कर रहे हैं जिसके चलते दिल्ली सरकार ने अपनी एडवाइजरी वापस लेगी।