मुंबई : देश की आर्थिक राजधानी मुंबई भले ही कैश-लेस ना हो पाई हो, लेकिन मुंबई से लगभग 140 किलोमीटर दूर ठाणे जिले के धसई गांव लगभग पूरी तरह प्लास्टिक के पैसों से चलने लगा है। इस गांव में चाय से लेकर वड़ा-पाव तक रोजमरा की चीज़ो को कार्ड से खरीदा बेचा जा सकता है।
लगभग 10000 लोगों की आबादी वाले गांव में आसपास से भी लोग 150 कारोबारियों से रोज़ाना के सामान, अनाज, सब्ज़ी खरीदने आते हैं। इस गांव में महाराष्ट्र के वित्त मंत्री सुधीर मुनघंटीवार ने भी यहाँ कार्ड के ज़रिये पांच किलो चावल खरीदा। उनका कहना है कि यहां का चावल बहुत अच्छा है।
धसई गांव में पहले जहा सिर्फ दो बैंक थे, ठाणे डिस्ट्रिक्ट सेंट्रल कॉपरेटिव बैंक और विजया बैंक थे वह गांव में बैंक ऑफ बड़ौदा ने फिलहाल 49 स्वाइप मशीनें दी हैं, आनेवाले दिनों में 51 और देने की योजना है। गांव को कैशलेस बनाने की पहल स्वातंत्र्यवीर सावरकर स्मारक नाम की संस्था ने की है, जो लोगों को कार्ड इस्तेमाल करने की ट्रेनिंग भी दे रहा है।
नोटबंदी के बाद धसई और आसपास के गांवों में भी अर्थव्यवस्था थोड़ी डामाडोल हुई लेकिन प्लास्टिक मनी के प्रयोग से गांव अब सुर्खियों में है। देश में सबसे पहले डिजिटल हुए गांवों में गुजरात का अकोदरा गांव है जो पूरी तरह डिजिटल हुआ था, उसके बाद नोटबंदी के दौरान शायद ये तमगा धसई को मिला है।