महिला आईएएस अधिकारी टीना डाबी हैं जो अक्टूबर 2018 से भीलवाड़ा के उप-मंडल मजिस्ट्रेट के पद पर कार्यरत हैं। दबी के कुशल प्रशासन से भीलवाड़ा को कोरोना के खिलाफ जंग जीत पाना मुमकिन हुआ। आइए टीना डाबी से जानते हैं है कि कैसे कोरोनोवायरस से लड़ने में ‘भीलवाड़ा मॉडल’ और किस तरह से बना भारत में केस स्टडी?
भीलवाड़ा: कोरोना वायरस के संक्रमण से लड़नें में राजस्थान के भीलवाड़ा मॉडल की चौतरफा प्रशंसा हो रही हैं। अन्य राज्य भी भीलवाड़ा मॉडल को लागू कर रहे हैं। राजस्थान की राजधानी जयपुर से लगभग 250 किलोमीटर दक्षिण में स्थित भीलवाड़ा कोरोनोवायरस हॉटस्पॉट बनने से बच पाया और पूरे देश के लिए मॉडल बन पाया इसमें बहुत बड़ा श्रेय टीम की हिस्सा रही एक महिला अधिकारी को जाता है। उनके प्रशासनिक कौशल और स्थिति बिगड़ने से पहले अपने टीम के साथ किए गए प्रयासों की बदौलत आज ये जिला कोरोना के खिलाफ जंग जीतने वाला पहला जिला बन चुका है।
ये महिला आईएएस अधिकारी टीना डाबी हैं जो अक्टूबर 2018 से भीलवाड़ा के उप-मंडल मजिस्ट्रेट के पद पर कार्यरत हैं। दबी के कुशल प्रशासन से भीलवाड़ा को कोरोना के खिलाफ जंग जीत पाना मुमकिन हुआ। आइए टीना डाबी से जानते हैं है कि कैसे कोरोनोवायरस से लड़ने में ‘भीलवाड़ा मॉडल’ और किस तरह से बना भारत में केस स्टडी?
बता दें भीलवाड़ा में कोरोना का पहला मामला 20 मार्च को दर्ज हुआ था और उसके बाद यहां काफी तेज़ी से वायरस ने पैर पसारने शुरू कर दिए। यहां पर 27 पॉजिटिव मामले दर्ज किए गए थे और दो मौतें भी हुईं। अगर प्रशासन उसी वक़्त चौंकन्ना नहीं हुआ होता तो कोविड-19 का यहां अब तक भयानक विस्फोट हो गया होता, लेकिन प्रशासन ने 20 मार्च को पहला पॉजिटिव केस मिलने के बाद जो योजना बनाई। जिसकी प्रशंसा केंद्र सरकार कैबिनेट सचिव राजीव गाबा ने कि और कहा कि सभी राज्यों को भीलवाड़ा से सीखना चाहिए कि कोरोना को कैसे काबू किया जाता है।
आईएएस अधिकारी टीना डाबी ने साक्षात्कार में बताया कि राज्य में स्थिति काफी खराब हो सकती थी, लेकिन सही समय पर सही कदम उठाने से कोरोनावायरस का प्रसार रोकने से कामयाबी मिली है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा 21 दिन का लॉकडाउन घोषित करने से पहले ही विशेष रूप से, भीलवाड़ा में यह आदेश जारी कर दिया गया था। 20 मार्च को कोरोनावायरस के प्रसार को रोकने के लिए जिला अधिकारियों द्वारा पूर्ण लॉकडाउन के तहत रखा गया था। जिला प्रशासन ने सभी दुकानों को बंद करने और लोगों से नहीं घबराने के अपील की।
डाबी ने कहा कि डॉक्टरों द्वारा टेस्टिंग किए जाने के बाद प्रशासन को लगा कि भीलवाड़ा शहर कोरोनावायरस के लिए हॉटस्पॉट बन सकता है। उन्हें इस बात का असहसास हुआ कि कई लोग एक दूसरे के संपर्क में आए हैं, जिससे यह महमारी लोगों में जल्दी फैल जाएगी। इसकी गंभीरता को देखते हुए प्रशासन ने तेजी से काम किया और पूरी तरह से लॉकडाउन कर दिया गया। इसके बाद, बहुत आक्रामक तरीके से स्क्रीनिंग प्रक्रिया शुरू की गई। जिसमें चिकित्सा कर्मचारियों, उनके परिवारों और अंततः शहर के सभी लोगों की स्क्रीनिंग की गई।
बता दें 26 वर्षीय टीना डाबी जिला कलेक्टर राजेंद्र भट्ट के साथ भीलवाड़ा में स्थिति को संभालने वाली टीम का एक हिस्सा रही। दबी ने कहा कि टीम ने लॉकडाउन के बाद जिले को अलग-थलग करने के लिए किया और लोगों को विश्वास में लिया। यहां तक कि ये लोगों को ये भी बताया गया कि अगर हमने ये नहीं किया तो हमारे जिले की तुलना इटली की तरह कोरोना वायरस के हॉटस्पाट के तौर पर की जाएगी। बृजेश बांगर मेमोरियल हॉस्पिटल (बीबीएमएच) के डॉक्टर और कर्मचारी इस क्षेत्र में सकारात्मक परीक्षण करने वाले पहले व्यक्ति थे। पॉजिटिव केस अधिक आने पर तुरंत जिला प्रशासन ने पूरी तरह से बंद करने का फैसला किया और भीलवाड़ा को बंद कर दिया गया।
दो घंटे के भीतर, जिले के कलेक्टर राजेंद्र भट्ट ने बहुत कड़ा और कड़ा फैसला लिया कि हमें कर्फ्यू लगाने की घोषणा की। कलेक्टर राजेंद्र भट्ट ने ज़िले में आने वाले सभी 20 रास्तों पर चेक पोस्ट बनाकर सीमाएं सील कर दीं ताकि कोई बाहर न जा सके। राशन सामग्री की सप्लाई सरकारी स्तर पर करने व जिले के हर व्यक्ति की स्क्रीनिंग का फैसला किया। संक्रमण बांगड़ हॉस्पिटल से फैला, इसलिए सबसे पहले यह पता किया यहां कहां-कहां के मरीज आए. सूची निकलवाई तो पता चला कि 4 राज्यों के 36 और राजस्थान के 15 जिलों के 498 मरीज़ यहां आए थे. इन सभी जिलों के कलेक्टर को एक-एक मरीज की सूचना दी गई।
बांगड़ अस्पताल में आने वाले मरीज़ों की स्क्रीनिंग शुरू की गई। छह हज़ार टीमें बनाकर 25 लाख लोगों की स्क्रीनिंग शुरू की गई। करीब 18 हज़ार लोग सर्दी-जुकामसे पीड़ित मिले। इनमें से 1,215 लोगों को होम आइसोलेट कर दिया गया और ये सुनिश्चित करने के लिए कि किसी भी सूरत में वो आइसोलेशन का उल्लंघन न करें, वहां कर्मचारी तैनात कर दिए गए। क़रीब एक हज़ार संदिग्धों को 20 होटलों में क्वारंटाइन किया गया।
उन्होंने कहा कि हमारे दिमाग में सिर्फ एक मिशन था और हमारा बस एक ही लक्ष्य था कि हमें इसे रोकने की ज़रूरत हैं। उन्हे बस तब ये लग रहा था कि वो एक टाइम बम पर बैठे हैं जिसको समय रहते कंट्रोल नहीं किया गया तो विस्फोट हो जाएगा। प्रशासन को डोर टू डोर समान पहुंचाना था ताकि लोगों को परेशानी न हो। इसलिए सहकारी उपभोक्ता भंडार से खाद्य सामग्री की सप्लाई शुरू कराई गई। रोजवेज़ बसों को पूरी तरह बंद करवाई गई. दूध सप्लाई के लिए डेयरी को सुबह-सुबह दो घंटे खोला गया. हर वार्ड में होम डिलीवरी के लिए दो-तीन किराना की दुकानों को लाइसेंस दिए गए। कृषि मंडी को शहर में हर वार्ड के अनुसार सब्जियां और फल सप्लाई के लिए लगाया और यूआईटी को कच्ची बस्तियों में सूखी खाद्य सामग्री सप्लाई की ज़िम्मेदारी दी गई। यदि प्रशासन आवश्यक सेवाओं का ध्यान नहीं रखते तो लोगों का साथ नहीं मिल पाता और विद्रोह हो सकता था।
डाबी ने बताया कि ऐसे में उन लोगों को भी संभालना था जहां लोग बहुत भावुक थे। उसने कहा कि शहर में फंसे छात्र और उनके चिंतित माता-पिता ऐसे लोगों में से थे।जब लोग भावुक होते हैं तो उन्हें यह समझाना बहुत मुश्किल होता है कि ये कठिन समय हैं और उन्हें वास्तव में यह समझने की आवश्यकता है।
भीलवाड़ा में स्थिति को संभालने वाली दबी ने कहा, ये चुनौतीपूर्ण कार्य और मेरे जीवन में ये आगे ये अनुभव काम आएगा। इस संकट को संभालने में हमें इतने लोगों की सेवा करने का यह अवसर पहले कभी नहीं मिला। मुझे लगता है कि इससे होने वाला आईर्निंग एक्सपीरियंस मेरे करियर के लिए बहुत फायदेमंद होने वाला है और मैं इस पर गर्व हैं।