येचुरी ने ट्वीट कर लिखा है, ‘वैसे लोग जो यह तर्क दे रहे हैं कि CAA पर सवाल खड़े नहीं किए जा सकते हैं क्योंकि यह संसद द्वारा पारित कानून है, उन्हें यह याद रखना चाहिए कि इमर्जेंसी भी संसद द्वारा ही पास किया गया था, हम लड़ें और लोकतंत्र की स्थापना की।
नई दिल्ली: सीपीएम महासचिव सीतराम येचुरी का नागरिकता संशोधन कानून (CAA) की तुलना इमर्जेंसी से करते हुए इसके खिलाफ सड़क पर उतरने की बात कही है। येचुरी ने ट्वीट के जरिए सरकार पर निशाना साधने के साथ-साथ विपक्षी दलों को भी लपेटे में लिया। उन्होंने इस कानून पर सवाल खड़ा करते हुए कहा कि इमर्जेंसी को भी संसद के द्वारा लागू किया था लेकिन हमने इसका विरोध कर लोकतंत्र की स्थापना की थी। ऐसे में सवाल उठ रहा है कि आखिर येचुरी CAA की तुलना इमर्जेंसी से क्यों कर रहे हैं?
येचुरी ने ट्वीट कर लिखा है, ‘वैसे लोग जो यह तर्क दे रहे हैं कि CAA पर सवाल खड़े नहीं किए जा सकते हैं क्योंकि यह संसद द्वारा पारित कानून है, उन्हें यह याद रखना चाहिए कि इमर्जेंसी भी संसद द्वारा ही पास किया गया था, हम लड़ें और लोकतंत्र की स्थापना की। इस विरोध में मौजूदा सत्तारूढ़ पार्टी के लोग भी शामिल हुए थे। क्या वे उस समय गलत थे?’ एक अन्य ट्वीट में येचुरी ने कहा कि सरकार को लोगों की आवाज सुननी चाहिए और CAA, NRC एवं NPR को वापस लेना चाहिए।
Government must listen to the people and take back CAA, NRC & NPR. (2/2) https://t.co/iyd2Ne2vMr
— Sitaram Yechury (@SitaramYechury) January 27, 2020
दरअसल, येचुरी के ट्वीट से सवाल उठ रहे हैं कि क्या वह CAA मामले में कांग्रेस पर निशाना साध रहे हैं? हालांकि, येचुरी के ट्वीट से कई सवाल भी खड़े हो रहे हैं। क्योंकि इशारों में जिस विपक्ष पर वह निशाना साध रहे हैं, उसका हिस्सा उनकी पार्टी भी है। अगर उनकी पार्टी इस मुद्दे पर इतना गंभीर है तो वह विपक्ष को एकजुट करने के प्रयास में शामिल क्यों नहीं हो रही है? पश्चिम बंगाल में पार्टी ममता से अलग है वहीं, केरल में कांग्रेस-सीपीएम अलग हैं। दरअसल, तमाम विरोध-प्रदर्शन के बाद भी विपक्षी दल CAA के खिलाफ अलग-अलग सुर में बोल रहे हैं।
Across India, many young men & women have been wounded & even killed while protesting against the CAA.
I urge our Congress party workers to meet the victim’s families & provide them all possible assistance.
On Saturday I met the families of 2 young martyrs in Assam. pic.twitter.com/V1zggCTK7c
— Rahul Gandhi (@RahulGandhi) December 30, 2019
CAA पर सभी विपक्षी दल अपनी डफली, अपना राग के साथ चल रहे हैं। पश्चिम बंगाल की सीएम ममता बनर्जी जनवरी के दूसरे हफ्ते में CAA के खिलाफ विपक्षी दलों की बैठक में शामिल नहीं हुई थीं। वहीं, बीएसपी चीफ मायावती ने इस बैठक से दूरी बनाई थी। ममता ने तो उल्टे आरोप लगाया था कि पश्चिम बंगाल में कांग्रेस और वाम दल गंदी राजनीति कर रहे हैं और अब वह CAA और NRC का विरोध अकेले अपने दम पर करेंगी। उन्होंने लेफ्ट पर दोहरे मानदंड अपनाने का भी आरोप लगाया था। बीएसपी की इस बैठक से दूरी ने विपक्षी दलों की बैठक को बेरंग कर दिया था।
येचुरी ने CAA को लेकर सवाल तो कई उठाए हैं लेकिन एक हकीकत यह भी है कि अभी तक विपक्षी दलों ने जमीन पर उतरकर कोई ऐसा आंदोलन नहीं किया है जिससे सरकार को इस कानून पर विचार करने को मजबूर किया जा सके। विपक्ष एकजुट होने का संदेश तो देना चाहता है लेकिन ऐन मौके पर उनके कुछ मजबूत साथी दल कन्नी काट जा रहे हैं। ऐसे में सवाल उठता है कि क्या विपक्षी एकता केवल एक दिखावा भर है? अगर ये दल CAA के लेकर इतना गंभीर हैं तो यह ऐलान क्यों नहीं करते कि अगर 2024 में विपक्षी नेतृत्व वाले गठबंधन की सरकार बनी तो CAA को रद्द कर दिया जाएगा। ऐसे में लगता है कि सभी दल अपने हिसाब से इस मुद्दे पर राजनीति कर रहे हैं।
CAA/NRC आदि के विरोध में संघर्ष करने वाली महिलाओं समेत जिन लोगों के भी खिलाफ यूपी बीजेपी सरकार द्वारा गलत मुकदमे दर्ज किए गए हैं उन्हें तुरन्त वापस लिया जाए और इस दौरान जिनकी जान गई है तो सरकार उनकी भी उचित मदद करे, यह BSP की मांग है।
— Mayawati (@Mayawati) January 27, 2020