चैनलीय बछडों ने घुमा-घुमा के दुल्लती मारनी शुरू कर दी…आपने कभी नवजात बछडों को देखा है। बस पूंछ उठाकर भागता रहता है। कभी इधर दुल्लती मारी कभी उधर मारी….बुरा मत मानिएगा ये “बछडा टाइप चैनलीय पत्रकारिता”..का विशेषण और विश्लेषण मेरा नहीं है। विश्लेषण कर यह विशेषण प्रख्यात साहित्यकार व पत्रकार मनोहर श्याम जोशी जी ने दिया था। उनके कालम हिंदी आउटलुक में छपा करते थे….आज सारे बछडे क्रिकेट को दौड़ा-दौड़ा कर…पटक-पटक कर उनका प्याज छीले डाल रहे हैं। कोई पगलाया सा बाघा बार्डर पर क्रिकेट की दुकान सजाए चीख चिल्ला रहा है। कोई कार्तिक स्नान मेले की तरह चैनल के भीतर ही सेट लगाए क्रिकेट को पान बनाए उस पर कत्था-चूना रगडे डाल रहा है। सब क्रिकेट की भंग में हैं।
देश से गरीबी दूर, भुखमरी दूर, रेप-छिनरई दूर…पूरा देश दो दिन रामराज्य में रहेगा। भगवान न करे आज और कल शाम तक कोई बड़ा लफडा हो नहीं तो भुक्तभोगी के आंसू पर “अनुष्का वाले” का पलडा भारी रहेगा। दो दिन चैनल पर पट्टी तक नहीं चलेगी। क्रिकेट का बल्ला कहाँ पूजा गया..कहाँ क्रिकेटीय हवन हुआ… कहाँ भीड़ ने जुलूस निकाला…यही चलेगा….दो दिन तक हर बाॅल हर शाॅट का प्याज छीला जाएगा ….मेरा मतलब है परत दर परत विश्लेषण होगा….बछडई पत्रकारिता का मजा लीजिए ….
@पवन सिंह
वरिष्ठ पत्रकार/लेखक