हिंदु-मुस्लिम एकता का एक जीवंत उदाहरण, देवा शरीफ एक धार्मिक स्थल है जहाँ सैयद हाजी वारिस अली शाह की कब्र प्रतिष्ठापित है। अक्टूबर-नवम्बर के महीनों में यहाँ देवा मेला आयोजित होता है जो हज़ारों उन्नायकों को यहाँ आकर्षित करता है
देवा शरीफ लखनऊ से 25 किमी दूर बाराबंकी जिले में मशहूर धार्मिेक स्थान है | यह स्थान महान सूफी संत हाजी वारिस अली शाह का केंद्र माना जाता है जो विश्व बंधुत्व की एक मिसाल हैं तथा जिनका अवध के इतिहास में महत्वपूर्ण स्थान है। हाजी वारिस अली शाह रहस्यमय शक्तियों के ज्ञाता माने जाते हैं तथा वह सभी समुदायों के सदस्यों द्वारा श्रद्धेय हैं।
इनके वालिद कुर्बान अली शाह भी एक सूफी संत थे। इनके श्रद्धालु दूर दराज से इनकी ‘मज़ार’ का दर्शन करने आते हैं जो ‘देवा शरीफ’ के नाम से मशहूर है। इस पवित्र स्थल पर पूरे वर्षभर उनके अनुयायियों का आना जाना लगा रहता है।
अक्टूबर-नवंबर माह में यहां संत की स्मृति में वार्षिक उर्स का आयोजन होता है, इस मौके पर एक बड़ा मेला आयोजित होता है, जिसे देवा मेले के नाम से जाना जाता है। इस मेले के खास आकर्षण के रूप में मुशायरा, कवि सम्मेलन और संगीत कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं।
यहां पर्यटकों को हस्तशिल्प की व्यापक रेंज भी देखने को मिल जाती है। मेले के समापन के मौके पर आतिशबाजी का भव्य कार्यक्रम भी आयोजित किया जाता है। नवंबर में आयोजित होने वाला यह मेला वैश्विक भाईचारे का सर्वश्रेष्ठ उदाहरण है।
उत्तर प्रदेश में देवा शरीफ, राजस्थान में रामदेवरा और असम में पोवा मक्का के बीच क्या समानता है? भले ही इन स्थानों के बारे में बहुत अधिक लोग नहीं जानते लेकिन सभी धर्मों में आस्था रखने वाले लोग सदियों से शांति, सहिष्णुता और सौहार्द के प्रतीक इन स्थानों पर बार बार जाते रहे हैं।
उत्तर प्रदेश के शहर बाराबंकी में है देवा शरीफ…
लखनउ से एक घंटे की यात्रा कर कई धर्मों के लोग बाराबंकी में हाजी वारिस अली शाह की दरगाह देवा शरीफ जाते हैं। इक्वेटर लाइन पत्रिका के ताजा अंक में ‘दि सूफी आफ देवा’ शीषर्क से लिखे एक लेख में बताया गया है, ‘‘इस जगह का वातावरण उदार है। लोग फूलों, मिठाइयों और रंग-बिरंगी चादरों के साथ इस सूफी संत की दरगाह पर आते हैं।’’
दरगाह की नींव एक हिन्दू ने रखी थी…
ऐसा कहा जाता है कि हाजी वारिस अली शाह ने अपने अनुयायियों को कभी भी अपना धर्म छोड़ने को नहीं कहा और यही वजह है कि भारी संख्या में हिंदू श्रद्धालु यहां मत्था टेकने आते हैं। इस दरगाह की नींव कन्हैया लाल ने रखी और इसके बाद कई और हिंदू लोग आगे आए। आज यहां हिंदू और मुस्लिम बराबर की संख्या में आते हैं।
पोखरण से करीब 12 किलोमीटर दूर स्थित है रामदेवरा…
पोखरण से करीब 12 किलोमीटर दूर रामदेवरा का स्थान हिंदू और मुस्लिम दोनों के लिए ही पवित्र जगह है। ‘‘ रामदेवरा, बाबा रामदेव या रामशा पीर का समाधि स्थल है और यह देश में संभवत: अकेला ऐसा मंदिर है जहां श्रद्धालुओं का पहेलीनुमा संगम होता है। इस मंदिर की सबसे अजीब खूबी इसके भीतर कई मजार हैं। ये उन लोगों की मजारें हैं जो बाबा रामदेव के बेहद करीब थे।’’
पोवा मक्का के लिए मक्का से लाई गई थी मिट्टी…
असम के गुवाहाटी में पोवा मक्का, सूफी संत पीर गियासुद्दीन औलिया की गद्दी है। ‘‘ इस मस्जिद की आधारशिला रखने के लिए मक्का से मिट्टी लाई गई थी। स्थानीय लोगों का मानना है कि इस मजार पर आने से मक्का में हज करने जैसा सबाब मिलता है। हिंदू, मुस्लिम और बौद्ध लोग इस पवित्र स्थान पर आते हैं।
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