सोमवार शाम को अमरनाथ यात्रा से लौट रहे श्रद्धालुओं की बस पर आतंकियों ने हमला किया, जिसमें 7 लोगों की मौत हो गई, जबकि कई लोग घायल हो गए। इस हमले में बस ड्राइवर की समझदारी और बहादुरी के कारण बाकी लोगों की जान बच सकी। बस ड्राइवर सलीम ने एक अंग्रेजी अखबार अहमदाबाद मिरर को घटना के बारे में विस्तार बताया। उन्होंने कहा कि जिनकी मौत हुई, उनके लिए उन्हें दुख है, लेकिन जितने लोगों को वो बचा सके, उसे वो ऊपर वाले की नेमत मानते हैं।
सलीम ने कहा कि मैं बहुत हौरान और आश्चर्य में हूं और दुख भी हो रहा है। मैंने मंगलवार को कई राजनेताओं को अमरनाथ यात्रियों पर हुए आतंकी हमले पर बोलते हुए सुना। मैं राजनीति नहीं समझता। मुझे दुख इस बात का है कि मैं बस में सवार सभी लोगों को नहीं बचा सका। मैं बस को एक सुरक्षित स्थान पर ले गया और 50 लोगों की जान बचाई, लेकिन इस हादसे में मारे गए लोगों की मौत को भुला नहीं सकता।
हमले में जो घायल हुए वह मेरा शुक्रिया अदा कर रहे थे। बहुत से लोग कह रहे थे, सलीम भाई आपको सलाम। भाईजान आपने हमारी जान बचाई। लेकिन मैंने उन लोगों की बात का कोई जवाब नहीं दिया। बस में लोगों की लाश और खून को देखकर मैं डर गया था। उस मंजर के कुछ डेढ़ घंटे बाद मैं सदमे से बाहर आ सका।
मैं समझदार नहीं हूं, अल्लाह और शिव जी ने मुझे रास्ता दिखाया
मेरी बहादुरी के कारण मुझे वीरता पुरस्कार के लिए नामित किये जाने की बात कही जा रही है। लेकिन वास्तव में वह हर्ष भाई थे, जिन्होंने मुझे बस न रोकने और तेज चलाने की सलाह दी थी।
सलीम ने कहा कि पहली कुछ गोलियों के बाद मैं बस के फ्लोर पर लेट गया था, मुझे नहीं पता था कि बस कहां जा रही थी। लेकिन मैंने बस की स्टेयरिंग नहीं छोड़ी। मैं भारतीय हूं और मुझे इस बात का गर्व है। मैं भी बहुत से देशवासियों के तरह राजनीति नहीं समझता। मैं बस देश में शांति चाहता हूं। और इसलिए मैं अमरनाथ यात्रा में था, इससे पहले मैं चार बार यात्रा पर जा चुका हूं।
मेरे मालिक ने मेरी जान बचाई, अल्लाह और शिव जी ने मुझे रास्ता दिखाया। मैं खुद को समझदार नहीं मानता हूं। मुझे नहीं पता कि मेरे अंदर इतनी हिम्मत कहां से आई। जब गोलियां चल रही थी तो मुझे लगा की मेरे बगल से पत्थर निकल रहे हैं, लेकिन जल्द ही मुझे पता चला की वह गोलियां हैं। महज दो सेकेंड के अंदर 40 से ज्यादा गोलियां मेरे दायीं ओर से निकल रही थी।
मालिक और भगवान ने मुझे हिम्मत दी। मैं बस चलाता रहा। लगभग दो किमी के बाद मुझे एक सेना के जवान दिखे, मैंने बस रोकी और उनकी ओर भागा। मैंने उन्हें सारे वाकये के बारे में बताया। वो लोग बहुत अच्छे थे, उन्होंने हम सभी में हिम्मत जगाई। मैं बस यह जानता हूं कि जब मौत या गोली आती है, तो वह किसी का धर्म नहीं देखती। वो आ जाती है, और उस वक्त हम अपनी जान बचाने की ही सोचते हैं। मेरा परिवार खुश है कि मैं वापस लौट आया हूं। अगर शिवजी ने और अल्लाह ने चाहा तो मैं अमरनाथ यात्रा पर वापस जरूर जाऊंगा।