नई दिल्ली : नरेंद्र मोदी सरकार ने सोमवार को जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन और आर्टिकल 370 को हटाने से संबंधित संकल्प को राज्यसभा में बहुमत से पास करा लिया। इसके तहत जम्मू-कश्मीर को संविधान द्वारा दिए गए विशेष राज्य के दर्ज को वापस ले लिया गया है। साथ ही राज्य को दो हिस्सों में विभाजित कर जम्मू-कश्मीर को केंद्र प्रशासित प्रदेश का दर्जा दिया गया है। इसके अलावा नए राज्य लद्दाख को भी बिना विधानसभा वाले केंद्र शासित प्रदेश के बतौर गठित किया गया है।
सोमवार को गृह मंत्री द्वारा राज्यसभा में पेश संकल्प को बहुमत से पारित तो करा लिया गया है लेकिन अभी इसे पूरी तरह से लागू होने की राह में कई अड़चनें सामने आने का अनुमान है। इनमें एक तो यही है कि इसे ‘असंवैधानिक’ बताकर सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी जा सकती है। इसके लिए संविधान के आर्टिकल 370 में निर्धारित प्रावधानों को आधार बनाया जा सकता है। गौरतलब है कि संविधान में अस्थायी आर्टिकल 370 को समाप्त करने का एक विशिष्ट प्रावधान निर्धारित है।
संविधान के अनुच्छेद 370 (3) के मुताबिक, 370 को बदलने के लिए जम्मू-कश्मीर की संविधान सभा की अनुमति जरूरी है। पर जम्मू-कश्मीर की संविधान सभा को साल 1956 में भंग कर दिया गया था और इसके ज्यादातर सदस्य भी अब जीवित नही हैं। इसके अलावा संविधान सभा के भंग होने से पहले सेक्शन 370 के बारे में स्थिति भी स्पष्ट नहीं की गई थी कि यह स्थायी होगा या इसे बाद में समाप्त किया जा सकेगा।
जम्मू-कश्मीर को विशेष बनाने वाले संविधान के आर्टिकल 370 के प्रावधान को सरकार ने जिस तरह खत्म किया, उसे कश्मीरी दलों ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देने की बात कही है। गौरतलब है कि राष्ट्रपति ने सोमवार को जम्मू-कश्मीर से जुड़ा संवैधानिक आदेश जारी किया। सीनियर एडवोकेट एम.एल. लाहौटी कहते हैं कि आर्टिकल 370 (3) में कहा गया है कि राष्ट्रपति संविधान सभा की सहमति से ही विशेष दर्जा वापस ले सकते हैं। ऐसे में यह सवाल उठ सकता है कि क्या नए संवैधानिक आदेश को संविधान सभा की सहमति है/ क्योंकि यह सभा तो 1956 में ही भंग हो गई थी। राष्ट्रपति के आदेश में कहा गया है कि संविधान सभा को विधानसभा पढ़ा जाए। जम्मू-कश्मीर विधानसभा अभी भंग है, इसलिए चुनी हुई सरकार के अधिकार गवर्नर में निहित हैं और राज्य सरकार (गवर्नर) की सिफारिश पर राष्ट्रपति ने यह प्रावधान खत्म किया है। सवाल उठेगा कि क्या संविधान सभा और विधानसभा में अंतर नहीं है। क्या गवर्नर की सहमति को राज्य सरकार की सहमति माना जाएगा/ लोकसभा के पूर्व सेक्रेटरी जनरल पी.डी.टी. अचारी भी मानते हैं कि राष्ट्रपति के आदेश को चुनौती देने का यह सबसे बड़ा पॉइंट संविधान सभा हो सकता है।
बता दें कि पूर्व आईएएस शाह फैसल की पार्टी से जुड़ीं शेहला राशिद ने सोमवार को ट्वीट कर इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देने का ऐलान भी किया है। शेहला ने कहा कि जम्मू-कश्मीर सरकार को गवर्नर से और संविधान सभा को विधानसभा से बदलकर यह कदम उठाया गया है जो संविधान के साथ धोखा है। उन्होंने इसे लेकर प्रगतिशील ताकतों से एकजुटता की अपील भी की।