अमेठी : मिट्टी का कोई मोल नहीं होता मोल होता है उससे गढ़ी जाने वाले चीजों का दीपावली पूजन की संस्कृति और रिवाज मिट्टी से बने दीपकों और मूर्तियों के बिना अधूरे है इनकों गढऩे में लगा कुम्हार समाज मिट्टी के मोल को लेकर खासा परेशान है कुछ कुम्हारों को गांवों से महंगे दामों में मिट्टी खरीदनी पड़ रही हैं लेकिन इसके बावजूद दीपावली के त्यौहार की रौनक कम नहीं हो जाए इसलिए चाक और हाथ दोनों ने रफ्तार पकड़ ली है। इस उम्मीद के साथ लोगों के घर इनके दीपकों से रोशन होगे तो उनके घर में भी रौनक बनी रहेगी इन दिनों हर तरफ मिट्टी से दीपक, लक्ष्मी गणेश की मूर्तियां आदि तैयार करने का काम जोर शोर से चल रहा है।
इसीलिये खड़ा हो गया है संकट-
एक समय था जब घर-घर में मिट्टी के बर्तन ही काम में लिए जाते थे लेकिन आधुनिकता के चलते स्टील, क्राकरी, सिल्वर, नॉन स्टिक बर्तनों और चाइनीज प्रोडक्ट्स की मांग बढ़ गई है ऐसे में मिट्टी से जुड़े परिवारों के लिए रोजी रोटी का संकट पैदा हो गया है दीपावली पर जो सामान की बिक्री होती है इससे साल भर की कमाई होने की उम्मीद रखते हैं।
मिट्टी खरीदी जा रही है मोल-
अमेठी के हरखूमऊ बाजार शुकुल निवासी बड़कऊ ने बताया कि पहले मिट्टी की कोई कीमत नहीं चुकानी पड़ती थी लेकिन अब मिट्टी का मोल भाव होने लगा है मिटटी से कलश बनाने की परंपरा को बचाए रखने के लिए हम मिट्टी खरीद रहे हैं पहले गाँव के बाहर खेत होते थे,जहां से मिट्टी के बर्तन व प्रतिमा के लिए मिट्टी लाते थे लेकिन अब यहां घर बन गए हैं इसलिए मिट्टी मिलना मुश्किल हो गया है ऐसे
में अब मिट्टी प्रति ट्राली के हिसाब से खरीदी जा रही है।
ऐसे बनते हैं मिट्टी के बर्तन-
बाहर से लाई गई मिटटी का पहले महिन चूरा किया जाता है इसे पानी में कई घंटों तक रौंदा जाता है फिर इसे कई घंटों तक भिगोया जाता है। इसके बाद इसे गूंथकर चाक पर चढ़ाया जाता है और कुशल हाथों से इसे दीपक, कलश, गमले, गुल्लक आदि का रूप दिया जाता है इन कच्चे बर्तनों को कुछ समय धूप में सुखाया जाता है इसके बाद मिटटी से बने हांव में कई घंटों तक पकाया जाता है ठंडा होने के कारण इन बर्तनों पर रंग बिरंगे रंगों से डिजायन बनाकर सुंदर बना दिया जाता है इसके बाद ही इन्हें बिक्री के लिए भेजा जाता है।
रिपोर्ट@ राम मिश्रा