नई दिल्ली – पूर्व केन्द्रीय गृहमंत्री पी चिदम्बरम ने कहा है कि किसी भी सभ्य देश में सशस्त्र बल विशेष अधिकार कानून (एएफएसपीए) के लिए कोई जगह नहीं है और वह संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (यूपीए) सरकार के कार्यकाल में इस कानून को खत्म भी करना चाहते थे, लेकिन रक्षा मंत्रालय और सशस्त्र सेना ने उन्हें यह सब करने नहीं दिया।
चिदम्बरम ने रविवार को एक दैनिक में अपने स्तंभ में लिखा है कि वह इस बात से पूरी तरह सहमत थे कि यह कानून खत्म ही हो जाना चाहिए, लेकिन रक्षा मंत्रालय एवं सेना इस बात पर राजी नहीं थी। रक्षा मंत्री ए.के.एंटनी उनकी अनदेखी कर इस कानून को खत्म करना नहीं चाहते थे।
चिदम्बरम ने अपनी यह राय ऎसे समय में जाहिर की है जब जम्मू-कश्मीर में भाजपा के सहयोग से मुफ्ती मोहम्मद सईद की सरकार बनने के बाद इस कानून को हटाने की मांग फिर बढ़ी है। पूर्व गृहमंत्री ने यह भी कहा है कि इस कानून को बदलने के लिए एक समझौता भी हुआ था। उन्होंने और राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार ने इस कानून को बदलने के लिए संशोधन का मसौदा भी तैयार किया था, पर इस संशोधित विधेयक को पेश करने पर फैसला नहीं लिया जा सका। इसकी वजह से यह काला कानून जारी रहा।
उन्होंने कहा कि अगर यह कानून हट जाए तो जम्मू-कश्मीर से लेकर मणिपुर तक लोगों का नजरिया बदल सकता है। इस कानून की जगह एक मानवीय कानून आना ही चाहिए। केन्द्रीय रिजर्व पुलिस बल तथा सीमा सुरक्षा बल के वरिष्ठ अधिकारी भी इस कानून के बगैर काम करने पर राजी थी।नई दिल्ली। पूर्व केन्द्रीय गृहमंत्री पी चिदम्बरम ने कहा है कि किसी भी सभ्य देश में सशस्त्र बल विशेष अधिकार कानून (एएफएसपीए) के लिए कोई जगह नहीं है और वह संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (यूपीए) सरकार के कार्यकाल में इस कानून को खत्म भी करना चाहते थे, लेकिन रक्षा मंत्रालय और सशस्त्र सेना ने उन्हें यह सब करने नहीं दिया।
चिदम्बरम ने रविवार को एक दैनिक में अपने स्तंभ में लिखा है कि वह इस बात से पूरी तरह सहमत थे कि यह कानून खत्म ही हो जाना चाहिए, लेकिन रक्षा मंत्रालय एवं सेना इस बात पर राजी नहीं थी। रक्षा मंत्री ए.के.एंटनी उनकी अनदेखी कर इस कानून को खत्म करना नहीं चाहते थे।
चिदम्बरम ने अपनी यह राय ऎसे समय में जाहिर की है जब जम्मू-कश्मीर में भाजपा के सहयोग से मुफ्ती मोहम्मद सईद की सरकार बनने के बाद इस कानून को हटाने की मांग फिर बढ़ी है। पूर्व गृहमंत्री ने यह भी कहा है कि इस कानून को बदलने के लिए एक समझौता भी हुआ था। उन्होंने और राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार ने इस कानून को बदलने के लिए संशोधन का मसौदा भी तैयार किया था, पर इस संशोधित विधेयक को पेश करने पर फैसला नहीं लिया जा सका। इसकी वजह से यह काला कानून जारी रहा।
उन्होंने कहा कि अगर यह कानून हट जाए तो जम्मू-कश्मीर से लेकर मणिपुर तक लोगों का नजरिया बदल सकता है। इस कानून की जगह एक मानवीय कानून आना ही चाहिए। केन्द्रीय रिजर्व पुलिस बल तथा सीमा सुरक्षा बल के वरिष्ठ अधिकारी भी इस कानून के बगैर काम करने पर राजी थी।