अदालत के यह कहने पर कि दिल्ली में रहना ऐसा है, जैसे ‘गैस चेम्बर’ में रहना, दिल्ली सरकार द्वारा की जा रही तुरंत कार्रवाई पर हमें उसे शाबाशी देनी होगी लेकिन उसने जैसी कार्रवाई सुझाई है, उस पर उसे सबसे ज्यादा शाबाशी कार कंपनियों के मालिक देंगे।
यदि दिल्ली सरकार का तुगलकी फरमान स्थायी तौर पर लागू हो गया तो क्या होगा? लोग एक की बजाय दो कारें रखेंगे, ताकि एक दिन वे सम नंबर की कार चलाएं और दूसरे दिन विषम नंबर की। दूसरी कार खरीदने के लिए ‘लोन’ देने वाले बैंकों की भरमार हो जाएगी। लोग किश्तों पर कार खरीदेंगे। यहां तक कि मध्यम वर्ग के लोग भी बसों में धक्के खाने की बजाय किश्तें भरना ज्यादा सरल समझेंगे। कार कंपनियों की चांदी हो जाएगी।
दिल्ली की 88 लाख कारें जल्दी ही बढ़कर एक करोड़ के आंकड़े को पार कर देंगी। अब अरविंद केजरीवाल से कोई पूछे कि दिल्ली का प्रदूषण घटेगा या बढ़ेगा? इसके अलावा सम-विषम नंबरों की कारें चलवाना दिल्ली में यों भी आसान नहीं है। 88 लाख न सही, 44 लाख कारों के नंबर पुलिस वाले रोज़ कैसे चेक करेंगे? पुलिस वाले छाती कूट रहे हैं कि यह तुगलकी फरमान जारी करने के पहले हमको कुछ भी बताया तक नहीं गया।
फिर लोग यह भी पूछ रहे हैं कि नोएडा, गुड़गांव और दिल्ली सीमांत से जुड़े क्षेत्रों की जो हजारों कारें रोज दिल्ली आती है, उन्हें आप कैसे चेक करेंगे? जिस कार से कोई आदमी एक दिन दिल्ली आया, उसी कार से वह आदमी दूसरे दिन दिल्ली के बाहर नहीं जा सकेगा, क्योंकि उसकी कार का नंबर तो वही रहेगा।
यह तर्क बहुत बोदा है कि सिंगापुर वगैरह में यही पद्धति लागू है। वे शहर बहुत छोटे-छोटे हैं और वहां सामूहिक आवागमन के साधन बहुत सुलभ हैं। टैक्सी लेना वहां बहुत मंहगा नहीं पड़ता। दिल्ली में यही किया जाए तो ज्यादातर लोगों की एक चौथाई या आधी तनखा इसमें ही खत्म हो जाएगी।
अफसोस यही है कि भाजपा नेताओं की तरह ‘आप’ के नेता भी नकलची बन गए हैं। अगर वे अकलची बनना चाहें तो वे बुद्धिपूवर्क कई सार्थक कदम उठा सकते हैं। जैसे कारों पर प्रदूषण-निरोधी नियम सख्ती से लागू करें।
व्यस्त मार्गों पर केवल उन्ही कारों को चलने दें, जिनमें कम से कम चार लोग सवार हों। सरकारी दफ्तरों और स्कूलों कालेजों के समय ऊपर-नीचे करें ताकि सुबह और शाम को यातायात अवरुद्ध न हो और ज्यादा पेट्रोल न जले। दिल्ली में 4500 बसें नहीं, 10 हजार बसें चलें और मेट्रों का जाल जरा ज्यादा फैले तो कारें अपने आप कम चलेंगी। हर मोहल्ले के कार मालिक अपने दफ्तर जाते-आते समय तीन-चार साथियों के साथ साझी यात्रा करें।
अरविंद केजरीवाल की सरकार लोकपाल बिल, तनखा बढ़ोतरी और उद्दंड विधायकों के कारण अपनी प्रतिष्ठा पहले ही पतली कर चुकी है। अब वह इस तरह के उटपटांग फरमान जारी करके क्या अपनी अपरिपक्वता का प्रमाण नहीं दे रही है?
लेखक:- वेद प्रताप वैदिक