दिल्ली कि जनता परेशान है कि उसकी समस्याओ का निराकरण होने के बजाय समस्याए दिन -प्रतिदिन बढ़ती ही जा रही है। दिल्ली में कानून व्यवस्था कि बात करे तो उसमे सुधार कि बात तो कोई कर नही रहा बल्कि केंद्र एवं दिल्ली कि सरकार कानून व्यवस्था पर आरोप -प्रत्यारोप का खेल खेलकर अपने को जनता का सबसे बड़ा हितैषी साबित करने पर लगी है। फरवरी में बनी पूर्ण बहुमत की सरकार का आधा से ज्यादा समय तो केंद्र की सरकार से नोंक -झोंक में ही बीत रहा है और फिर बचा समय दिल्ली सरकार को भला नजीब जंग और मुकेश मीणा को भी तो देना है।
आखिर दिल्ली में ऐसी क्या खास बात है कि उसकी टकराव की खबरे आय -दिन सुर्खिया बटोरती है। दिल्ली एक संघ शासित राज्य है और देश कि राजधानी होने के नाते वहाँ कि सुरक्षा देश के लिया बहुत महत्वपूर्ण है। दिल्ली में कई महत्वपूर्ण लोग जैसे राष्ट्रपति,प्रधानमंत्री ,सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायधीशभी रहते है ,ऐसे में उनकी सुरक्षा के मायनो में बहुत महत्वपूर्ण हो जाती है। वहीँ दिल्ली में सभी प्रमुख विभागों के मुख्यालय भी है। ऐसे में अगर कानून व्यवस्था कि बात करे तो अगर पुलिस दिल्ली सरकार को दे दी जाये तो उन सभी लोगो और संस्थाओ की जिम्मेदारी दिल्ली सरकार कि हो जाएगी और कुछ अनिष्ट होने पर प्रत्यक्ष हो या अप्रत्क्ष सभी तौर पर उंगलिया तो केंद्र पर भी उड़ेगी ही और इस बात से इनकार नही किया जा सकता है और अगर हम अपने संविधान की ही बात करे तो संविधान जिन देशो के संविधान के सम्मिश्रण से बना है वहाँ भी देश की राजयधानी को केंद्र के अधीन रखा गया है और कि पुलिस भी केंद्र के अधीन ही है चाहे वे अमेरिका जैसा शक्तिशाली देश ही क्यों न हो। इन सब बिन्दुओ के आधार पर अगर पुलिस केंद्र सरकार के पास रहती है तो सीधे -सीधे तौर पर सरकार देश की राजधानी कि सुरक्षा के लिए जिम्मेदार हो गयी। और राज्य को देश की सुरक्षा के लिए जिम्मेदार नही ठहराया जा सकेगा।
इस समय देश की राजधानी में जिस तरह कानून व्यवस्था की स्थिति खराब हो रही है वह काफी चिंताजनक है। दिल्ली में पिछले कुछ दिनों एक बार फिर रेप की घटनाओ में जिस तरह से वृद्धि हुए है उससे तो कानून व्यवस्था एवं केंद्र सरकार पर सवाल उठने लाजमी हो गए है लेकिन हाल -ए -दिल्ली केवल एक समस्या से पीड़ित हो तो बताया भी जाये। इस समय दिल्ली नगर निकाय कर्मियों कि हड़ताल चल रही है जिसके कारण पूरे दिल्ली में जगह -जगह कचड़े के ढेर दिखाए दे रहे है और प्रदूषण से पीड़ित दिल्ली को और पर्दुष्ट कर रहे है। दिल्ली की आंतरिक समस्याओ के लिए तो दिल्ली सरकार पर सवाल उठे लगे है ,जिस तरह दिल्ली की सरकार जो जनता ने अपार बहुमत देकर सिरमौर बनाया था आज उसी सरकार से जनता कहीं-कहीं छली महसूस कर रही है। वैसे केजरीवाल से तो यूपी की जनता भी निराश है ,लेकिन ऐसा क्या हुआ की यूपी की जनता केजरीवाल से नराज है ? दिल्ली ने फ्री वाई -फाई के वादे हुए तो यूपी की जनता ने सोच की वह नही दिल्ली के बाडर्र पर जा कर अखिलेश के लैपटॉप में का वाई-फाई चला लगे पर अब तक उनको निराश ही मिली है पर सबसे ज्यादा तो निराश तो दिल्ली की जनता है। दिल्ली में प्याज एवं चीनी जैसे मुद्दे को लेकर बवाल होता है तो क्या हुआ ?सरकार को दादरी और फरीदाबाद जाने से फुर्सत मिले तो कुछ दिल्ली के लिया भी सोचे। वैसे केजरीवाल किसी और के बारे में सोचे या न सोचे वे अपने मित्र नीतीश कुमार के बारे में जरूर सोचते है। और दिल्ली की जनता को दिए वादो को भूलकर सुशासन कुमार को वेट देने की अपील करने लगे है। खैर इस समय केंद्र और दिल्ली दोनों सरकारों को सोचना होगा की दिल्ली ने दोनों को ही वोट दिया है इसीलिए दिल्ली को दोनों से आशा है और अगर जनता की आशा निराशा में बदलती है तो फिर कोई नही समझ पाता की राजा कब रंक बन गया।
लेखक :- सुप्रिया सिंह (स्वतंत्र टिप्पणीकार )
माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं जनसंचार विश्वविद्यालय भोपाल
में जनसंचार की छात्रा है ।