दिल्ली की स्थानीय सरकार द्वारा प्रस्तावित जन−लोकपाल बिल का अन्ना हजारे ने समर्थन कर दिया है। उन्होंने कुछ सुझाव भी दिए हैं लेकिन उनका यह समर्थन बड़े मौके पर आया है और इससे आम आदमी पार्टी का आत्मबल निश्चय ही बढ़ा है।
प्रशांत भूषण, योगेंद्र यादव और डॉ. आनंद कुमार के विरोध की टक्कर में अन्ना का समर्थन काफी महत्वपूर्ण है लेकिन मूल प्रश्न यह है कि क्या अन्ना हजारे को इतनी समझ है कि वे लोकपाल और जोकपाल में फर्क कर सकें? वे एक सीधे−साधे कार्यकर्त्ता हैं।
समाजसेवी हैं। भले आदमी हैं। उन्हें कानून की बारीकियों का क्या पता? अरविंद केजरीवाल ने उन्हें अनशन पर बिठा दिया और अचानक ही वे ख्याति−प्राप्त व्यक्ति बन गए। उनके मुकाबले जो बात प्रशांत वगैरह कह रहे हैं, वह ज्यादा ध्यान देने लायक हैं।
दिल्ली के वर्तमान जन−लोकपाल की नियुक्ति और मुक्ति, दोनों के प्रावधान ऐसे रखे गए हैं, जिसके कारण ताले की चाबी मुख्यमंत्री की जेब में पड़ी रहेगी। मुख्यमंत्री, विपक्षी नेता, विधानसभा अध्यक्ष और दिल्ली के मुख्य न्यायाधीश लोकपाल की नियुक्ति करेंगे। चार लोगों के इस चयन−मंडल में बहुमत किसका होगा?नेताओं का, जो सबसे अधिक भ्रष्ट हैं। इसी तरह लोकपाल को मुक्त करने के लिए विधानसभा के 2/3बहुमत को ही काफी मान लेना गलत है।
इसका अर्थ यह हुआ कि दिल्ली का लोकपाल, लोकपाल नहीं,अरविंद पाल होगा। अब से लगभग चार साल पहले जब अरविंद ने मुझे लोकपाल का मूल मसविदा दिखाया था, तब भी मैंने उसी वक्त कई संशोधन सुझा दिए थे।
अरविंद ने दूसरे ही दिन मुझे संशोधित मसविदा भेज दिया। अरविंद से मैं आशा करता हूं कि वह लोकपाल की नियुक्ति और मुक्ति, दोनों के लिए नेताओं और विधानसभा को एकाधिकार नहीं देंगे। मुख्यमंत्री बनने के बावजूद मैं उनमें एक आंदोलनकारी का खुलापन और लचीलापन देखना चाहता हूं।
सबसे आपत्तिजनक बात तो यह है कि यह लोकपाल केंद्र सरकार के कर्मचारियों और नेताओं को भी अपनी जद में ले रहा है। यह प्रावधान डालकर अरविंद इस बिल की भ्रूण−हत्या ही कर रहे हैं। यदि केंद्र में ‘आप’की सरकार हो तो भी वह इस बिल को पास नहीं होने देगी। दिल्ली प्रदेश की विधानसभा, नाम मात्र की विधानसभा है और मुख्यमंत्री नाम मात्र का मुख्यमंत्री होता है।
दिल्ली केंद्र प्रशासित क्षेत्र है। अरविंद की हर चाल इस सीमा को लांघने की कोशिश करती है। किसी दिन उल्लंघन की इस प्रक्रिया में उनकी सरकार ही उलटी टंग जाएगी। यदि वे अपनी सीमा में रहें तो भी चमत्कार कर दिखाने की अपार संभावनाएं हैं। वे यदि दिल्ली के किसी एक मोहल्ले को भी भ्रष्टाचार−मुक्त कर सकें तो सारा देश उन्हें अपने कंधे पर बिठा लेगा। मोह−भंग को प्राप्त यह देश नौटंकियों से ऊब रहा है। आशा है, अब बेचारे अन्ना को नई नौटंकी में नहीं फंसाया जाएगा।
लेखक:- डॉ.वेदप्रताप वैदिक