लखनऊ : पवित्र तीर्थ कैलाश मानसरोवर की मान्यता हिन्दू समाज में ही नहीं जैन और बौद्ध में भी है। जैन धर्म में कैलास को अष्टापद कहते है। कहा जाता है कि प्रथम तीर्थकर ऋषभदेव ने यहीं निर्वाण प्राप्त किया था। बौद्ध साहित्य में मानसरोवर का उल्लेख अनवतप्त के रूप में हुआ है। जिसका अर्थ है पृथ्वी का स्वर्ग। ऐसा विश्व प्रेरणा स्थल वर्तमान में चीन के आधिपत्य में है।
आदि शिव मन्दिर मनकामेश्वर की महंत देव्या गिरि ने पीएम नरेन्द्र मोदी से चीन के चंगुल से कैलाश मानसरोवर को मुक्त करने की मांग की है। हाल ही में उन्होंने कैलाश मानसरोवर की यात्रा का उसे मुक्त करवाने के लिए संकल्प लिया है। लखनऊ लौटने पर उनका भव्य स्वागत किया गया।
कैलाश मानसरोवर संकल्प यात्रा में 14 सदस्य शामिल थे। यह दल 18 मई को लखनऊ से रवाना हुआ था। आठ दिवसीय यात्रा के बाद लौटने पर मनकामेश्वर मठ मंदिर और भारत तिब्बत रक्षा मंच के सदस्यों ने अपना संकल्प दोहराते हुए कहा कि वह मानसरोवर तीर्थ मुक्ति आन्दोलन को तीव्र करेंगे। इस दल में गोविंद प्रसाद अग्रवाल, आशादेवी, बिशन कुमार अग्रवाल, संजय गुप्ता, सुनील वर्मा, राजेश अग्रवाल, देवेंद्र गोयल, कविता, श्रवण, सुभा और मीनू शामिल थी।
महन्त देव्यागिरि ने अपने अनुभवों को साझा करते हुये बताया कि कैलाश मानसरोवर को चीन से मुक्त होना चाहिए, क्योंकि वहां के लोगों को कैलाश मानसरोवर के प्रति कोई आस्था नहीं है दूसरी ओर यह विश्व के विभिन्न मतावलम्बियों का धार्मिक स्थल है। महंत देव्यागिरि की कामना है कि यह विश्व धार्मिक स्थल के रूप में विकसित किया जाए। वहां आवागमन सुलभ और सुरक्षित करवाया जाए। आध्यात्मिक पर्यटकों का रहन सहन भी दुरुस्त किया जाए। उन्होंने कहा कि ऊंचाई के चलते वहा दैनिक जीवन बहुत ही कष्टदायी है। इसलिए वहां सरकार को विशेष प्रयास करने होंगे।
महन्त ने प्रदेश सरकार द्वारा कैलाश मानसरोवर यात्रा में तीर्थ यात्रियों को सब्सिडी प्रदान करने की सराहना करते हुये कहा कि इससे श्रद्धालुओं को सुविधा मिलेगी और अपने अराध्य कैलाशपति के दर्शन का लाभ उठा सकेंगे।
@शाश्वत तिवारी