गृह मंत्री अमित शाह ने राज्यसभा में जम्मू-कश्मीर में राष्ट्रपति शासन की मियाद बढ़ाने का प्रस्ताव रखा। यह प्रस्ताव लोकसभा से पास हो चुका है वहीं राज्यसभा में केंद्र के इस बिल को क्षेत्रीय दलों ने समर्थन दिया है।
राज्यसभा में इस बिल पर अपनी बात रखते हुए शाह ने प्रथम प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू से जुड़े तथ्य सदन में रखने पर विपक्ष के आपत्ति करने पर टिप्पणी की।
उन्होंने कहा कि ‘मनोज झा जी और गुलाम नबी आजाद जी ने बड़ी आपत्ति जाहिर की कि हम नेहरू जी के बारे में देश की जनता में कुछ गलत विचार खड़ा करना चाहते हैं। ये ठीक सोच नहीं है। हम नेहरू जी के बारे में कोई गलत विचार खड़ा करना नहीं चाहते है और न जनता को गुमराह करना चाहते हैं।
परन्तु एक बात है कि इतिहास की भूलों से जो देश नहीं सीखते हैं उनका भविष्य अच्छा नहीं होता है। इतिहस की भूलों की चर्चा होनी चाहिए, और इतिहास की भूलों से सीखना चाहिए।’
शाह ने कहा कि ‘मैं नरेन्द्र मोदी सरकार की तरफ से सदन के सभी सदस्यों तक ये बात रखना चाहता हूं कि कश्मीर भारत का अभिन्न अंग हैं और इसे कोई देश से अलग नहीं कर सकता। मैं फिर दोहराना चाहता हूं कि नरेन्द्र मोदी सरकार की आतंकवाद के प्रति जीरो टॉलरेंस की नीति है।’
उन्होंने कहा कि, ‘जम्हूरियत सिर्फ परिवार वालों के लिए ही सीमित नहीं रहनी चाहिए। जम्हूरियत गाँव तक जानी चाहिए, चालीस हज़ार पंच, सरपंच तक जानी चाहिए और ये ले जाने का काम हमने किया।’
शाह ने कहा कि ‘जम्मू कश्मीर में 70 साल से करीब 40 हजार लोग घर में बैठे थे जो पंच-सरपंच चुने जाने का रास्ता देख रहे थे।क्यों अब तक जम्मू-कश्मीर में चुनाव नहीं कराये गये, और फिर जम्हूरियत की बात करते हैं। मोदी सरकार ने जम्हूरियत को गांव-गांव तक पहुंचाने का काम किया।’
उन्होंने सदन में कहा, ‘सूफी परंपरा कश्मीरियत का हिस्सा नहीं थी क्या? पूरे देश में सूफियत का गढ़ था कश्मीर, कहां चली गई वो संस्कृति? उनको घरों से निकाल दिया गया। उनके धार्मिक स्थानों को तोड़ दिया गया। सूफी संतों को चुन-चुन कर मारा गया।’
शाह ने राज्यसभा में कहा कि ‘जो भारत को तोड़ने की बात करेगा उसको उसी भाषा में जवाब मिलेगा और जो भारत के साथ रहना चाहते है उसके कल्याण के लिए हम चिंता करेंगे। जम्मू कश्मीर के किसी भी लोगों को डरने की जरुरत नहीं है।’
गृहमंत्री ने कहा कि, ‘कश्मीर की आवाम की संस्कृति का संरक्षण हम ही करेंगे। एक समय आएगा जब माता क्षीर भवानी मंदिर में कश्मीर पंडित भी पूरा करते दिखाई देंगे और सूफी संत भी वहां होंगे। मैं निराशावादी नहीं हूं। हम इंसानियत की बात करते हैं।’