दमोह [ TNN ] सनातन धर्म में पूर्वजों की आत्मिक शांति तथा उनके मोक्ष प्राप्ति की कामना को लेकर किये जाने वाले कर्म का विधान बतलाया गया है जिसको तर्पण का नाम दिया गया है। सनातन धर्म के अनुसार प्रतिबर्ष भाद्र माह की पूर्णिमा से प्रारंभ होकर कुंवार माह की अमावश्या तक चलने वाले इस पर्व पर संपूर्ण विश्व में सनातन धर्मावलंबी अपने पूर्वजों का तर्पण करते हैं। सृष्टि के प्रारंभ से ही लगातार चलने वाले उक्त तर्पण को करने के लिये नदी,सरोवरों के साथ ही कुछ क्षेत्र विशेष का महत्व बतलाया गया है। धार्मिक एवं वैज्ञानिक दोनो रूप से प्रमाणित उक्त तर्पण को करने का क्रम प्रतिबर्षानुसार इस बर्ष भी नगर के सरोवरों में जारी है। प्रतिदिन प्रात:काल से ही तर्पण करने वाले सरोवरों के घाटों पर पहुंचते हैं और यह सिलसिला कई घंटों तक चलता रहता है। ज्ञात हो कि इस समय पितृपक्ष चल रहे हैं और सनातन धर्मावलंबी अपने पूर्वजों के लिये सरोवरों में जाकर तर्पण करते हैं। श्रृद्धा पूर्वक किया जाने वाला उक्त पवित्र कार्य के लिये अनेक धार्मिक एवं वैज्ञानिक मान्यतायें बतलायी जाती हैं।
परन्तु क्या तर्पण का कार्य उस विधान से हो पा रहा है इस पर प्रश्न-चिन्ह अंकित होते देखा जा सकता है। वह इससे कि लोग अपनी कमी के कारण नहीं अपितु जिनके कंधों पर उक्त कार्य को करने में सहयोग प्रदान करने की है क्या वह अपना कर्तव्य सही ढंग से निभा पा रहे हैं?
गंदे जल में तर्पण-
जी हां! हम बात कर रहे हैं सरोवरों में फैली गंदगी की जिसको हटाने की जिम्मेदारी नगर पालिका की है। गंदगी और बदबू युक्त पानी में तर्पण करने वाले लगभग प्रत्येक नागरिक के मुंह से शासन-प्रशासन एवं संबधित विभाग के लिये उनकी कार्यशैली और लापरवाही पूर्ण रवैया के लिये जो निकलता है उसका उल्लेख समाचार पत्र में नहीं किया जा सकता। परन्तु इतने से शायद जिले के मुखिया अंदाजा जरूर लगा सकते हैं। ज्ञात हो कि सर्वधर्म संभाव की बात करने वाली कांग्रेस के ही एक बिना चाबी का गुड्डा स्वयं को बतलाने वाले नगर पालिका अध्यक्ष का दायित्व निभा रहे हैं तो वहीं चर्चित मुख्यनगरपालिका अधिकारी के बारे में तो कोन नहीं जानता?
रिपोर्ट – डा.हंसा वैष्णव