मध्यप्रदेश की लोकसभा सीटों के लिए अब तक कांग्रेस ने जिन उम्मीदवारों की घोषणा की है, उनमे सर्वाधिक चर्चित नाम पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह का है। दिग्विजय सिंह को कांग्रेस ने भोपाल लोकसभा सीट से उम्मीदवार बनाया है। यह सीट 1989 से ही भाजपा के कब्जे में है। इस नाते इसे कांग्रेस के लिए चुनौतीपूर्ण सीट कहना गलत नहीं होगा। यद्यपि दिग्विजय सिंह आत्मविश्वास से लबरेज दिखाई दे रहे है ,परन्तु उन्होंने स्वयं कहा था कि वे राघौगढ़ की परंपरागत सीट से लड़ने के इक्छुक थे ,फिर भी कांग्रेस ने उन्हें भोपाल से उम्मीदवार बनाया है। दिग्विजय सिंह ने पार्टी के फैसले को शिरोधार्य करते हुए भोपाल में अपना चुनाव अभियान प्रारंभ कर दिया है। कांग्रेस के लिए यह मुकाबला कितना भी कठिन क्यों न हो ,परन्तु दिग्विजय सिंह को उम्मीदवार बनाने के बाद नेताओं और कार्यकर्ताओं में जो उत्साह जागा है ,वह भाजपा की चिंता का कारण बन सकता है। दिग्विजय सिंह की उम्मीदवारी ने इस सीट पर भाजपा एवं कांग्रेस के मुकाबले को रोचक बना दिया है।
अब इस सीट पर सारे प्रदेश ही नहीं ,बल्कि देशभर की निगाहें टिकी रहना स्वभाविक है। स्वयं मुख्यमंत्री कमलनाथ इस मुकाबले में विशेष रूचि ले तो कोई आश्चर्य नहीं होगा। आखिर उन्ही के आग्रह पर ही तो राहुल गांधी ने दिग्विजय सिंह को राघौगढ़ की बजाय भोपाल लड़ने के लिए विवश किया है।
वैसे दिग्विजय सिंह अतीत में भी दो बार लोकसभा चुनाव जीत चुके है ,इसलिए उन्हें इस बार भी लोकसभा चुनाव लड़ने में न तो कोई घबराहट है और न ही कोई दिक्क्त है, लेकिन राजनीतिक पंडित भी यह सवाल तो उठा ही रहे है कि आखिर उन्हें भोपाल से लड़ने के लिए क्यों कहा गया है।
गौरतलब है कि वर्षांत में सम्पन्न हुए मप्र विधानसभा के चुनाव के दौरान दिग्विजय सिंह पार्टी की समन्वय समिति के प्रभारी थे। उन्होंने इस जिम्मेदारी को चतुर नेता की तरह कुशलता से निभाया था। प्रदेश में कांग्रेस का वनवास ख़त्म करने में उनके योगदान को भी कम नहीं आका जा सकता है। दरअसल कांग्रेस आज सत्ता में है तो उसकी पटकथा उन्होंने अपनी नर्मदा यात्रा के दौरान ही लिख दी थी। तीन हजार किलोमीटर की यात्रा उन्होंने किसी राजनीतिक महत्वाकांक्षा की पूर्ति के लिए नहीं की थी ,लेकिन इस दौरान उन्होंने कांग्रेसियों में उत्साह जरूर जगा दिया था ,जो सत्ता में वापसी नामुमकिन मान चुके थे। प्रदेश में पार्टी के 15 वर्षों के वनवास को समाप्त करने में जिस समर्थित राजनेता का इतना महत्वपूर्ण योगदान रहा हो उसे लोकसभा चुनाव अपनी पसंद की सीट से इतर किसी चुनौतीपूर्ण सीट से लड़ने के लिए विवश करना पार्टी के लिए भी हितकर नहीं लग रहा है।
2014 के लोकसभा चुनाव में जो पार्टी अपने संसदीय इतिहास का सबसे दयनीय प्रदर्शन करते हुए मात्र 44 सीटों पर सिमट गई थी .उसके लिए तो प्रत्याशी का चयन यह होना चाहिए था कि किसी भी प्रत्याशी को उस सीट से लड़ने का अवसर मिलना चाहिए था .जिस सीट पर उसकी जीत की संभावना ज्यादा हो .परन्तु दिग्विजय सिंह को भोपाल जैसी कठिन सीट जो तीन दशक से भाजपा के पास है ,से लड़ने के लिए भेजा गया। अब इसमें दो राय नहीं हो सकती है कि दिग्विजय सिंह को किसी सोची समझी रणनीति के तहत भोपाल तक सीमित कर दिया है। सवाल यह भी उठता है कि यदि मुख्यमंत्री कमलनाथ की सलाह पर ही कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने यह फैसला किया है तो क्या कमलनाथ से यह अपेक्षा की जानी चाहिए की वे उन्हें जिताने के लिए एड़ी चोटी का जोर लगाएंगे। यहां यह सवाल भी पूछा जाना चाहिए कि दिग्विजय सिंह को राघौगढ़ छोड़कर भोपाल से लड़ने का कहने वाले कमलनाथ स्वयं 9 बार छिंदवाड़ा से ही क्यों लोकसभा चुनाव लड़े थे। अतः पार्टी के लिए तो लाभ की स्थिति यह होती कि दिग्विजय सिंह को भोपाल की एक सीट जीतने के लिए मैदान में उतारने की बजाय राघौगढ़ से ही उम्मीदवार बनाया जाता ,जहां कम समय देकर भी दिग्विजय शानदार जीत को बलवती बनाने में समर्थ होते और बाकी का समय राज्य की शेष सीटों पर पार्टी उम्मीदवारों की जीत की रणनीति बनाने में देते।
बहरहाल दिग्विजय सिंह भोपाल सीट से चुनाव लड़ने के लिए पुरे दमखम के साथ तैयार नजर आ रहे है।पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती कह रही थी कि दिग्विजय सिंह को तो सामान्य भाजपा कार्यकर्ता ही हराने में सक्षम है. किन्तु आज स्थिति यह है कि भाजपा को इस सीट पर उम्मीदवार नहीं मिल रहे है, जो दिग्विजय सिंह के कद के राजनेता साबित होंगे। मुख्यमंत्री कमलनाथ का यह तंज भाजपा की स्थति को बयां करता है कि पार्टी को भोपाल और इंदौर सीटों के लिए विज्ञापन निकाल लेना चाहिए। भोपाल लोकसभा सीट पर लगभग तीन दशक से भाजपा का कब्ज़ा जरूर रहा है ,लेकिन दिग्विजय सिंह की उम्मीदवारी ने अब उसे चिंता में डाल दिया है भोपाल से चुने गए दो मंत्री पीसी शर्मा एवं आरिफ अकील दिग्विजय खेमे से ही आते है। दिग्विजय सिंह ने पूर्व मुख्यमंत्री से लेकर भोपाल के लोकसभा प्रत्याशी चुने जाने तक का सफर सधे क़दमों से तय करते हुए उनके विरोधियों के सारे गीले शिकवे दूर करने की पूरी कोशिश की है फिर चाहे वे पार्टी कार्यकर्ता हो या शासकीय कर्मचारी। खैर अब फैसला भोपाल के मतदाताओं को करना है।
इधर दिग्विजय सिंह ने प्रत्याशी बनते ही भाजपा एवं पूर्ववर्ती शिवराज सरकार पर तीखे प्रहार करना शुरू कर दिया है। उन्होंने पूर्व सरकार पर विभिन्न घोटालों में शामिल होने का आरोप लगाते हुए पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को खुली चुनौती दी है कि यदि उनमे हिम्मत है तो मुझपर मानहानि का दावा करके दिखाए। उन्होंने अगले 15 दिनों में भोपाल के लिए एक विजन डॉक्युमेंट देने की घोषणा भी की है। इधर भाजपा की दिक्कत प्रत्याशी चुनने से लेकर आगामी संभावनाओं तक में बनी हुए है। कहा जाए तो मप्र की राजनीति में दिग्विजय सिंह होने के यही मायने है। उधर पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती के भी भोपाल में चुनाव प्रचार करने के एलान से भी दिग्विजय सिंह चिंतित नजर नहीं आ रहे है। उनके इस आत्मविश्वास से भाजपा की घबराहट बढ़ना वाजिब है। दिग्विजय ने तो एलान कर दिया है कि शिवराज हो या उमा भारती ,हम जीतकर दिखाएंगे। अब यदि दिग्विजय सिंह अपने इस कथन को सच साबित कर दिया तो यह उनकी ऐतिहासिक जीत होगी। उनकी यह जीत प्रदेश की राजनीति में निश्चित रूप से बड़े उलटफेर का संकेत भी लेकर आएगी।
:-कृष्णमोहन झा
(लेखक IFWJ के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष और डिज़ियाना मीडिया समूह के राजनैतिक संपादक है)