डिण्डौरी : रंगों के त्योहार होली में चारों ओर मस्ती और रंग गुलाल का आलम देखा जा सकता है डिण्डौरी जिले के धनवासी गांव में होली की मस्ती में चार चांद लग जाते हैं इसका कारण है कि यहां पर अनोखे ढंग से होली के त्यौहार को मनाया जाता है यहां मनाई जाने वाली होली को देखने के लिये अब आसपास के इलाके के लोग भी इकट्ठा होने लगे हैं यहां एक लकडी को चिकना कर दिया जाता है और इसमें जले हुये तेल को लगाकर इसकी चिकनाई और भी बढा दी जाती है जिसके बाद शुरू होती है होली की मस्ती, देखिये गांव में किस तरह होली का एक अलग ही रंग आनंद का रंग देखने को मिलता है।
धनवासी गांव के चौक पर फाग की मण्डली मस्ती में फाग की धुनों पर थिरक रही है एक ओर पुरूष अपनी मण्डली के साथ फाग का आनंद ले रहे हैं तो दूसरी ओर महिलाओं पर भी फागुन रंग चढा दिखाई देता है। इस बीच होली के एक और रंग की तैयारी यहां पर की जाती है वह है मस्ती का रंग, आनंद और उल्लास का रंग, यहां पर लकडी का एक खंबा गडाया जाता है और उसके ऊपर गुड की दो थैलियां लटका दी जाती हैं लकडी को जले आईल से चिकना कर दिया जाता है इसके बाद शुरू होती है मस्ती की होली, यहां महिला और पुरूष अलग अलग टोलियों में इस पर चढ गुड की थैलियों को निकालने का प्रयास करेंगे दूसरा पक्ष उन्हें रोकने का प्रयास करता है कुल मिलाकर पूरी प्रक्रिया में चारों ओर सिर्फ मस्ती के रंग देखने को मिलते हैं। गांव के बुजुर्गों की मानें तो यह त्यौहार को सामूहिक रूप में मनाने के लिये आयोजन किया जाता है जो लगभग पिछले पचास सालों से चला आ रहा है।
होली के इस अनूठे रंग में सराबोर होने के लिये अब आसपास के गांव के लोग भी यहां पर इकट्ठा होने लगे हैं धुरेडी के दूसरे दिन यहां पर इस तरह का अनूठा आयोजन किया जाता है ग्रामीणों के अनुसार होली में नशे का प्रचलन अधिक है लेकिन इस तरह एक परंपरा विकसित हो जाने से अब यहां पर युवा वर्ग इन आयोजनांे में शामिल होने के लिये आ जाता है और नशे की लत से भी दूर रहता है इसके अलावा महिला और पुरूषों को समान रूप से अवसर दिया जाता है ताकि महिलायें भी अपने आपको किसी तरह से कम न समझें।
पिछले कुछ सालों से इस अनूठे आयोजन में महिलाओं का प्रतिनिधित्व करने वाली युवती को काफी खुषी है कि वह पुरूषों से मुकाबला कर पाती है साथ ही गांव की होली में उन्हें पूरा आनंद मिलता है अन्य गावों में जहां महिलाओं का होली में निकलना दूभर होता है वहीं इस गांव में महिलायें पुरूषों से मुकाबला करती हैं और साबित करती हैं कि किसी भी मायने वे पुरूषों से कम नहीं हैं बल्कि लगातार आयोजन में जीतने वाली युवती तो खुद को पुरूषों से बेहतर मानती हैं।
शहरी इलाकों में आज जहां त्यौहारों को मनाने की परंपरा मात्र औपचारिक रह गई है वहीं धनवासी जैसे गांवों में आज भी इन त्यौहारों की प्रासंगिकता बनी हुई है इतना ही नहीं यहां होली समाज को नया संदेश देती है नशामुक्ति, आपसी भाईचारा व महिला पुरूष की समानता का संदेष। त्यौहार के मूल का संदेश धनवासी गांव की होली में देखने को मिलता है जहां हर साल इस तरह मस्ती के रंग देखने को मिल जाते हैं।
रिपोर्ट @दीपक नामदेव