नई दिल्ली- 30 अक्टूबर को दिवाली है, जिसके लिए घरों में तैयारियां जोरों पर हैं। लोग बाजारों में जमकर सामान खरीद रहे हैं लेकिन क्या आपको पता है कि हम ‘दिवाली’ क्यों मनाते हैं और क्या है इस खूबसूरत पर्व का महत्व और अर्थ।
आईये आपको बताते हैं… रोशनी के इस खूबसूरत त्योहार के बारे में कुछ खास और अहम बातें…
‘दिवाली’ संस्कृत के दो शब्दों से मिलकर बना है और वो दो शब्द हैं ‘दीप’ अर्थात ‘दीपक’ और ‘आवली’ अर्थात ‘लाइन’ या ‘श्रृंखला’ जिसका मतलब हुआ ‘दीपकों की श्रृंखला’। दीपक को स्कन्द पुराण में सूर्य के हिस्सों का प्रतिनिधित्व करने वाला माना गया है।
देश के कुछ हिस्सों में हिन्दू दीवाली को यम और नचिकेता की कथा के साथ भी जोड़ते हैं। 7 वीं शताब्दी के संस्कृत नाटक नागनंद में राजा हर्ष ने इसे दीपप्रतिपादुत्सव: कहा है जिसमें दिये जलाये जाते थे और नव दुल्हन और दूल्हे को तोहफे दिए जाते थे।
फारसी यात्री और इतिहासकार अल बरूनी, ने 11 वीं सदी के संस्मरण में, दीवाली को कार्तिक महीने में नये चंद्रमा के दिन पर हिंदुओं द्वारा मनाया जाने वाला त्योहार कहा है।
राम अयोध्या लौटे थे
राम भक्तों के अनुसार दीवाली वाले दिन अयोध्या के राजा राम लंका के अत्याचारी राजा रावण का वध करके अयोध्या लौटे थे। उस दिन अमावस्या थी इसलिए उनके राज्यवालों ने पूरे राज्य को दीपक से जलाया था।
नरकासुर और हिरण्यकश्यप का वध
इस दिन भगवान श्री कृष्ण ने अत्याचारी राजा नरकासुर का वध किया था।
पौराणिक कथा के अनुसार विष्णु ने नरसिंह रुप धारणकर हिरण्यकश्यप का वध किया था।
निर्वाण दिवस दीपावली
जबकि कुछ जगह यह भी लिखा है कि इसी दिन समुद्रमंथन के पश्चात लक्ष्मी व धन्वंतरि प्रकट हुए। जैनियों के मुताबिक तीर्थंकर महावीर स्वामी का निर्वाण दिवस दीपावली है।
स्वर्ण मन्दिर का शिलान्यास
सिक्खों के लिए भी दीवाली महत्त्वपूर्ण है क्योंकि इसी दिन ही अमृतसर में 1577में स्वर्ण मन्दिर का शिलान्यास हुआ था। पंजाब में जन्मे स्वामी रामतीर्थ का जन्म व महाप्रयाण दोनों दीपावली के दिन ही हुआ।
बुराई पर अच्छाई की जीत
दिवाली को बुराई पर अच्छाई, अंधकार पर प्रकाश, अज्ञान पर ज्ञान और निराशा पर आशा की विजय से जोड़कर देखते हैं। इसलिए इस दिन केवल घरों को ही दियों से रौशन ना करें बल्कि अपने अंदर के अंधकार को भी मिटाने का कष्ट करें।