प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने 6 वें ‘ मन की बात ’ कार्यक्रम किसानों से किया लेकिन, बात किसानों की मन की नहीं बल्कि अगर हम ये कहें कि मोदी अपने सरकार पर लग रहे भूमि अधिग्रहण बिल के आरोपो का स्पष्टीकरण देकर किसानों का भरोसा जीतने की कवायद की तो ये तनिक भी अतिशयोक्ति नहीं होगी.बेमौसम हुए बारिस से किसान के फसल बर्बाद हो गए है.किसानों की हालत दिन ब दिन दयनीय होती जा रही है.परन्तु हमारे प्रधानमंत्री के पास केवल संवेदना के अलावा और कुछ नहीं हैं.अपने तीस मिनट के बात के दरमियान प्रधानमंत्री अपनी सरकार के द्वारा लाए गए भूमि अधिग्रहण विधेयक पर 26 मिनट बोले. इससे एक बात तो स्पष्ट होती है कि सरकार कहीं न कहीं विपक्ष की सक्रियता से घबराई हुई है.सभी विपक्षी पार्टियाँ इस विधेयक के विरोध के लिए लामबंध है.संसद से लेकर सड़क तक सरकार की घेराबंदी की जा रही है.अब ‘मन की बात’के जरिये प्रधानमंत्री खुद अपनी सरकार के बचाव में अपना पक्ष रखते हुए किसानों को आश्वासन देते हुए बोलते है कि आप भ्रम में न पड़ें ,निश्चिन्त रहें हम ऐसा कुछ नहीं करेंगे जिससे किसानों का अहित हो, इसके साथ मोदी ने ये भी स्पष्ट किया कि हम उन सभी कानूनों का खत्म कर देना चाहते हैं जो किसी भी प्रक्रिया को जटिल बना रहे है किसानों से बात के दौरान मोदी ने उनकी सरकार पर भरोसा करने की बात कहीं जो अब हास्यास्पद लगता है.
चुनाव प्रचार के दौरान प्रधानमंत्री ने किसानों को लागत का 50 प्रतिशत मुनाफा दिलाने की बात कहीं जो अब तक अमल नहीं कर पाए अब ये एक और बात मन में आता है कि कहीं पार्टी अध्यक्ष अमित शाह इसे भी जुमला न करार दे दे .बहरहाल,किसानो से बात करते हुए मोदी ने एक किसान की उस हर पीड़ा का जिक्र किया जो एक किसान को झेलनी पड़ती है ,मोदी ने सरकार की सक्रियता को भी सराहते हुए बताया कि हमारे मंत्री हर राज्य तथा जिलों में जाकर किसानों की बदहाली को देख रहे है और हर सम्भव मदद के लिए भरोसा दिला रहें है .कृषि प्रधान देश में कृषि और किसान कितने मुश्किलों से गुज़र रहा है.किसानों की बदहाली का अंदाज़ा इस बात से लगाया जा सकता है कि पिछले 17 वर्षो में लगभग तीन लाख किसान आत्महत्या कर चुके हैं फिर भी सरकार मौन रहती हैं,जो अन्नदाता दुसरो के पेट को भरता है आज उसी अन्नदाता की सुध लेने वाला कोई नहीं,किसान उर्वरक के बढने दामों से परेसान है तो, कभी नहर में पानी न आने से परेसान है और अब तो मौसम भी किसानों पर बेरहम हो गई बेमौसम बरसात ने किसानों को तबाह कर दिया.आखिर गरीब किसान किसपे भरोसा करे.
प्रधानमंत्री के पास केवल संवेदना के अलावा और कुछ नहीं हैं.अपने तीस मिनट के बात के दरमियान प्रधानमंत्री अपनी सरकार के द्वारा लाए गए भूमि अधिग्रहण विधेयक पर 26 मिनट बोले. इससे एक बात तो स्पष्ट होती है कि सरकार कहीं न कहीं विपक्ष की सक्रियता से घबराई हुई है.
प्रधानमंत्री को यह एहसास होना चाहिए की इनके द्वारा चलाई गई योंजना भी किसानों तक ठीक से नहीं पहुँच रही. इस ‘मन की बात’ कार्यक्रम से भी ये बात तो निकल कर सामने आई है कि सरकार की योजनाएं ग्रामीण क्षेत्र में रहने वाले गरीब किसान,मजदूर को केवल सुनाई देती है उनतक पहुँचती नहीं.मसलन भारतीय राजनीति में अमूमन ये देखने को मिलता है कि सत्ता पर काबिज़ नेता बोलते कुछ है और करते कुछ और अगर बात किसी भी मुद्दे की कि जाए तो हर जगह केवल सरकार ही नहीं वरन विपक्ष की पार्टिया भी उतनी ही जिम्मेदार होती है जितनी की सरकार.सरकार तो योजनाओं की प्रसंसा करने में होती है तो वही दूसरी तरफ विपक्षी पार्टियाँ इसके विरोध करने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ती.किसी के पास ये देखने की फुर्सत नहीं होती की योजना कितनी कारगर साबित हुई है,योजना धरातल पर उतरी की नहीं,जो इसके लाभार्थी है,उन्हें योजना का लाभ मिला की नही.ये सब तमाम बाते है जो आज के दौर में हर किसी को परेसान कर रही है.सरकार योजना तो चलाती है पर वास्तव में उस योजना का लाभ क्या लाभार्थियों तक आसानी से मिल पाता है ? जबाब सीधा है नही.
अगर हम ये कहें की भारत एक योजनाओं का देश है तो इसमें तनिक भी अतिशयोक्ति नहीं होगी क्योकि आज़ादी के बात अब तक भारत केवल योजनाओं के मकड़जाल में उलझ के रह गया है.कोई भी योजना पुरे सही ढंग से जमीन पर नहीं उतरी,बस सरकार उसे अपने चुनावी भाषण एवं सरकारी फाइलों में इसका बेहतर ढंग से उपयोग करती चली आ रही.प्रधानमंत्री मोदी ने ‘मन की बात’ कार्यक्रम के माध्यम से इस बात को जाना परन्तु इस कार्यक्रम को किसान व जनहित तभी माना जायेगा जब मोदी गरीब किसानों तक उसके मिलने वाले योजनाओं को पहुँचाने के लिए कोई बड़ा फैसला लेंगे. ‘मन की बात’ तो ठीक है अगर प्रधानमंत्री किसानों के दिल की बात सुने तो सोने पर सुहागा होगा .मोदी की इस ‘मन की बात’ मे जमाखोरी का भी जिक्र किया.खेत से मंडी के बीच बिचौलियों की भूमिका बढ़ी है, तो वहीँ मंडी से गोदामों तक के बीच जमाखोरों की तादाद भी बढ़ी है किसान पूरी तरह त्रस्त है अगर एनएसएसओ के आकड़ो पर गौर करे तो 42 फीसद किसान खेती हमेशा के लिए छोड़ने को तैयार लेकिन विकल्प न होने के कारण वे खेती करने के लिए मजबूर हैं. अब ये देखने वाली बात होगी कि मोदी किसानों की बदहाली से उबारने के लिए क्या करते है.
:- आदर्श तिवारी
लेखक :- आदर्श तिवारी (स्वतंत्र टिप्पणीकार )
माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं जनसंचार विश्वविद्यालय भोपाल
के विस्तार परिसर “कर्मवीर विद्यापीठ” में जनसंचार के छात्र है ।
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