चुनाव आयोग द्वारा महाराष्ट्र एवं हरियाणा विधानसभा के चुनाव की तिथियां घोषित किए जाने के साथ ही दोनों राज्यों में सत्ता के दावेदार राजनीतिक दलों ने अब प्रत्याशी चयन की प्रक्रिया तेज कर दी है। महाराष्ट्र में इस समय भाजपा एवं शिवसेना के गठबंधन के पास सत्ता की बागडोर है तो हरियाणा में पिछले 5 सालों से भाजपा सरकार अबाध गति से चल रही है। महाराष्ट्र में गत विधानसभा चुनाव के पूर्व तक शिवसेना ने भाजपा के साथ अपने गठबंधन में बड़े भाई की हैसियत हासिल कर रखी थी, परंतु उक्त चुनाव में सीटों के बंटवारे को लेकर दोनों दलों में तनातनी इस हद तक बढ़ गई कि दोनों ने अपनी-अपनी अलग राज चुन ली।
दोनों दलों के अलग-अलग चुनाव लड़ने से शिवसेना घाटे में रही और मुख्यमंत्री पद पर भाजपा ने कब्जा जमा लिया। शिवसेना को दूसरे नंबर पर रहने के कारण भाजपा की शर्तों पर सरकार में शामिल होने का फैसला मन मसोसकर करना पड़ा। इन पांच वर्षों में सत्ता में भागीदारी के बावजूद शिवसेना प्रमुख और मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने एक दूसरे पर निशाना साधने में तनिक भी संकोच नहीं किया, लेकिन जब लोकसभा चुनाव का समय नजदीक आने लगा तो तत्कालीन भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने शिवसेना के सुप्रीमो उद्धव ठाकरे से मुलाकात करके उनके सारे गिले शिकवे इस तरह दूर कर दिए कि शिवसेना लोकसभा के चुनाव भाजपा के साथ मिलकर लड़ने को खुशी-खुशी तैयार हो गई इसका फायदा दोनों दलों को हुआ लेकिन भाजपा ने बड़े भाई की हैसियत पर कोई आंच नहीं आने दी। अब अगले माह होने वाले राज्य विधानसभा चुनाव में भी भाजपा की हैसियत को शिवसेना को स्वीकार करना ही होगा ,क्योंकि चुनाव के पूर्व ही केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने यह घोषणा कर दी है कि चुनाव के बाद भी राज्य में गठबंधन सरकार के मुख्यमंत्री पद की बागडोर वर्तमान मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस के हाथों में ही रहेगी। अतः जाहिर सी बात है कि शिवसेना सुप्रीमो उद्धव ठाकरे के पास इस शर्त को मानने के अलावा कोई दूसरा चारा नहीं है।
दोनों दलों को 288 सदस्यीय महाराष्ट्र विधानसभा के चुनाव हेतु सीटों के बंटवारे में आने वाली दिक्कतो का भी पूरा एहसास है, परंतु अब उनके संबंधों में पहले जैसी कटुता ना होने के कारण यह संभावना बलवती प्रतीत होती है कि अब सीटो के बंटवारे का मुद्दा किसी नहीं विवाद के पनपने का कारण नहीं बनेगा। हालांकि हाल ही में शिवसेना के वरिष्ठ नेता संजय राउत ने कहा था कि महाराष्ट्र विधानसभा की 288 विधानसभा के चुनाव हेतु दोनों दलों के बीच सीटों का बंटवारा भारत औऱ पाकिस्तान के विभाजन से भी बड़ी कसरत है, परंतु भाजपा और शिवसेना सीटों के बंटवारे के फार्मूले को लेकर पूरी तरह तनावमुक्त है। हालांकि रावत ने यह भी कहा कि अगर सरकार में होने की जगह हम विपक्ष में होते तो आज की तस्वीर कुछ अलग होती। राउत यह कहने से नहीं चूक रहे हैं कि भाजपा को सीटों के बंटवारे में 50-50 फार्मूले का सम्मान करना होगा, क्योंकि यह फैसला अमित शाह और देवेंद्र की मौजूदगी में लिया गया था। गौरतलब है कि शिवसेना के कोटे से महाराष्ट्र सरकार में मंत्री दिनकर आहोते ने पिछले दिनों यह धमकी दी थी कि भाजपा ने शिवसेना को बराबर सीट नहीं दी तो गठबंधन टूट भी सकता है। संजय राउत ने कहा कि शिव सेना को पूरी उम्मीद है कि भाजपा यह स्थिति नहीं आने देगी। शिवसेना चाहती है कि उसके लिए भाजपा इतनी सीटें अवश्य छोड़ेगी ,जिससे वह पिछले विधानसभा चुनाव की तुलना में इस बार बेहतर प्रदर्शन कर सकें।
शिवसेना इस हकीकत से अच्छी तरह वाकिफ है कि वह इस बार भी पिछले चुनाव में मिली 63 सीटों के आसपास ही रहती है तो नई सरकार में वह न तो उपमुख्यमंत्री पद के लिए सशक्त दावेदारी पेश कर पाएगी और ना ही उसे महत्वपूर्ण मंत्रालयों से नवाजा जाएगा। गौरतलब है कि पिछले चुनाव में भाजपा ने शिवसेना से लगभग दुगनी 122 सीटों पर जीत हासिल की थी जबकि उसने चुनाव अकेले अपने दम पर लड़ा था। भाजपा और शिवसेना के बीच लगभग दो दशकों से चला आ रहा गठबंधन सीटों के बंटवारे के मुद्दे पर टूट गया था। इसमें भाजपा फायदे में रही और उसने शिवसेना को उसके बड़े भाई की हैसियत से वंचित कर दिया। अभी तक राजनीतिक समीकरण यही संकेत दे रहे हैं कि भाजपा अब अपनी बड़े भाई वाली वैसी हैसियत को बरकरार रखने में सफल रहेगी। गत लोकसभा चुनाव में भाजपा एवं शिवसेना को गठबंधन होने के बाद जब शिवसेना ने 48 में से 18 सीटों पर जीत हासिल की थी और भाजपा को 23 सीटों पर सफलता मिली थी तब से शिवसेना काफी उत्साहित दिखाई दे रही है और उसे पूरी उम्मीद है कि वह इस बार पिछले चुनाव से अधिक ताकतवर बनकर उभरेगी। शिवसेना इस बार अयोध्या में राम मंदिर के निर्माण को भी चुनावी मुद्दा बना सकती हैं। उल्लेखनीय है कि गत वर्ष उद्धव ठाकरे ने 2000 से सैनिकों के साथ अयोध्या यात्रा कर रामलला की आरती में भाग लिया था। हाल ही में उन्होंने यहां तक कहा कि कि अयोध्या में जब भव्य राम मंदिर का निर्माण प्रारंभ होगा तो वहां पहली ईट शिवसैनिक ही रखेगा। उधर भाजपा को भी पूरा भरोसा है कि जम्मू-कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा देने वाले संविधान के अनुच्छेद 370 को समाप्त करने एवं मुस्लिम महिलाओं को तीन तलाक की कुप्रथा से मुक्ति दिलाने वाला कानून बनाने की उसके ऐतिहासिक और साहसिक फैसलों का लाभ उसे आगामी विधानसभा चुनाव में अवश्य मिलेगा।
राज्य विधानसभा के मौजूदा चुनाव में भाजपा और शिवसेना गठबंधन का मुकाबला राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी और कांग्रेस के गठबंधन से होगा। पिछले विधानसभा चुनाव में राकांपा को 41 और कांग्रेस को 42 सीटों पर विजय मिली थी, परंतु 17 वी लोकसभा के चुनाव में इन दोनों दलों को राज्य में शर्मनाक हार का सामना करना पड़ा था। मौजूदा विधानसभा चुनाव में कांग्रेस और राकांपा के बीच हुए चुनावी समझौते के अनुसार दोनों दलों को बराबर बराबर 125 सीटें दी गई हैं, परंतु गत 5 सालों में दोनों दलों के प्रति जनता का भरोसा कम होता गया है। राज्य में मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस को केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के वरदहस्त ने आत्मविश्वास से लबरेज कर दिया है। कांग्रेस और राकांपा मिलकर भी उससे सत्ता की बागडोर छीनने की स्थिति में नहीं है। राजनीतिक परिस्थितियों ने कांग्रेस को इन चुनाव में शरद पवार को महत्व प्रदान करने के लिए विवश कर दिया है। गौरतलब है कि कभी शरद पवार ने विदेशी मूल के मुद्दे पर कांग्रेस छोड़कर राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी का गठन कर लिया था और कांग्रेस के विरोधी बन गए थे। आज वही शरद पवार कांग्रेस के लिए इतने महत्वपूर्ण बन गए हैं कि गठबंधन की चुनावी व्यूहरचना में उनकी राय को अहमियत प्रदान करने के लिए कांग्रेसी विवश है।
कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष पद से राहुल गांधी के इस्तीफे के बाद पार्टी के लिए पुराने बुजुर्ग नेता फिर से महत्वपूर्ण हो गए हैं। पार्टी की कार्यकारी अध्यक्ष सोनिया गांधी ने विभिन्न राज्यों में निकट भविष्य में होने वाले विधानसभा चुनाव में वरिष्ठ नेताओं के अनुभव का लाभ उठाने का जो फैसला किया है, उसकी छाया हरियाणा विधानसभा चुनाव के लिए पार्टी की व्यूहरचना पर स्पष्ट देखी जा सकती है। राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र हुड्डा को राहुल गांधी ने दरकिनार कर पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष पद पर अशोक तंवर की नियुक्ति कर दी थी, परंतु सोनिया गांधी ने फिर से पार्टी का मुखिया बनते ही अपने बेटे के फैसले को पलट दिया। उन्होंने अपनी वफादार कुमारी शैलजा को हरियाणा प्रदेश कांग्रेस का अध्यक्ष बनाया और भूपेंद्र सिंह हुड्डा की उन्हें मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार के रूप में प्रोजेक्ट करने की मांग स्वीकार कर ली। गौरतलब है कि हुड्डा की सरकार के दौरान ही रॉबर्ट वाड्रा को अनैतिक तरीके से भूमि आवंटन के आरोप लगे थे, लेकिन पार्टी अध्यक्ष के रूप में राहुल गांधी ने उन्हें जब हाशिए पर डाल दिया डाल दिया था तभी से वे पार्टी के फैसलों पर सवाल उठाने लगे थे। कांग्रेस ने जब जम्मू कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा प्रदान करने वाले अनुच्छेद 370 को खत्म करने के मोदी सरकार के फैसले का विरोध किया तो हुड्डा ने पार्टी पर राह से भटकने का आरोप लगाया। उन्होंने इस बीच यह परोक्ष धमकी भी दी कि वे पार्टी छोड़ने का विकल्प भी चुन सकते हैं। हरियाणा में विवादास्पद होने के बावजूद हुड्डा के कद का कोई अनुभवी नेता कांग्रेश के पास में नहीं है। इसलिए सोनिया गांधी ने राज्य विधानसभा चुनाव में हुड्डा को पार्टी की ओर से भावी मुख्यमंत्री के रूप में प्रोजेक्ट करने का फैसला किया। यह बात अलग है कि हुड्डा को घेरने के लिए भाजपा के पास मुद्दों की कमी नहीं है। भाजपा की ओर से पार्टी का चुनावी चेहरा वर्तमान मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर ही होंगे। कांग्रेस अभी तक उन्हें तगड़ी चुनौती पेश करने की स्थिति में नहीं है। एक अन्य विपक्षी दल नेशनल लोकदल भी पारिवारिक विवादों के कारण हाशिए पर पहुंच गया है, इससे अभी तो यही संभावनाएं बलवती प्रतीत हो रही है कि पिछले विधानसभा चुनाव में अकेले अपने दम पर बहुमत हासिल करने में सफल हुई भाजपा एक बार फिर सत्ता में वापसी करने में सफल हो सकती है। और मनोहर लाल खट्टर दोबारा मुख्यमंत्री बन सकते हैं|
:-कृष्णमोहन झा
(लेखक IFWJ के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष और डिज़ियाना मीडिया समूह के राजनैतिक संपादक है)