भोपाल – स्कूल शिक्षा विभाग अपने 1.21 लाख स्कूलों का संचालन निजी हाथों में सौंपने की कवायद कर रहा है। सरकारी स्कूलों में शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार के लिए प्राइवेट पब्लिक पार्टनरशिप (पीपीपी) के आधार पर यह प्रयोग अगले शिक्षा सत्र (2016-17) से एक जिले में किया जाएगा। यदि प्रयोग सफल रहा, तो फिर इसे पूरे प्रदेश में लागू किया जाएगा। हालांकि शिक्षाविद् सरकार के इस विचार को घातक करार देते हुए इसे शिक्षा के बाजारीकरण का प्रयास बता रहे हैं। सरकार इस दिशा में प्रारंभिक कार्रवाई शुरू कर चुकी है।
योजना के तहत निजी निवेशकों को सरकारी स्कूल बिल्डिंग, स्टाफ व छात्रों के साथ सौंपे जाएंगे। निवेशक 10 साल तक इन स्कूलों को चला सकेंगे। इसके बाद अनुबंध बढ़ाना होगा। सूत्र बताते हैं कि स्कूलों के संचालन पर आने वाले खर्च के लिए अनुपात तय किया जाएगा। कुछ राशि सरकार देगी और शेष राशि निवेशक को खर्च करनी होगी। खर्च राशि की रिकवरी के लिए ये स्कूल विद्यार्थियों से फीस लेंगे। यह फीस प्राइवेट स्कूलों से कम रहेगी।
स्कूल देने के लिए सरकार निविदा निकालेगी। इस प्रक्रिया को पूरा कर निवेशक सिंगल या बल्क में स्कूल ले सकेंगे। इसके लिए सरकार पॉलिसी तैयार कर रही है। योजना के तहत निवेशक को विकल्प दिया जाएगा कि चलता स्कूल अच्छा नहीं लगे, तो वह जमीन भी ले सकता है। इसी के मद्देनजर स्कूल शिक्षामंत्री पारसचंद्र जैन ने नवीन शिक्षा नीति निर्धारण के लिए दिल्ली में आयोजित शिक्षा मंत्रियों की बैठक में यह सुझाव दिया है।
शिक्षक प्रतिनियुक्ति पर रहेंगे
इन स्कूलों में सरकारी स्टाफ ही रहेगा, लेकिन प्रतिनियुक्ति पर। संस्था के अधिकारी बतौर एमडी स्कूल का प्रबंधन संभालेंगे। उन्हें किसी भी शिक्षक को रखने और हटाने का अधिकार होगा। हालांकि इसके लिए विभाग की अनुमति अनिवार्य होगी। संस्था चाहेगी तो ऐसे शिक्षकों को भी पढ़ाने के लिए रख सकेगी, जो संविदा शिक्षक परीक्षा में मेरिट में आए हों, लेकिन पद न होने के कारण वेटिंग में रखे गए हों। हालांकि ये सरकार के कर्मचारी नहीं कहलाएंगे।
गुणवत्ता सुधारने के प्रयास
स्कूलों को पीपीपी मोड पर चलाने के पीछे सरकार का अपना तर्क है। अधिकारियों के मुताबिक आरटीई आने के बाद स्कूलों में शिक्षा का स्तर गिरा है। वर्तमान हालात में शिक्षा की गुणवत्ता नहीं सुधारी जा सकती है। वे मानते हैं कि स्कूल पीपीपी मोड पर देने के बाद स्कूलों पर होने वाला खर्च तो कम होगा ही शिक्षा की गुणवत्ता और शिक्षकों की उपस्थिति में भी सुधार आएगा। साथ ही देखरेख भी कम हो जाएगी।
दुष्परिणाम भी होंगे
ऐसा माना जा रहा है कि सरकार स्कूलों की प्राइम लोकेशन की जमीन निजी निवेशकों को सौंपने के मकसद से ऐसा कर रही है। दरअसल, शहर से लेकर गांवों तक सरकारी स्कूल प्राइम लोकेशन पर हैं। राजधानी सहित चारों महानगरों की बात करें, तो शहर में मौजूद स्कूल बड़े बाजारों के आसपास हैं और उनकी भूमि अरबों रुपए मूल्य की है। जिसे बड़े निवेशक हथियाना चाहते हैं। स्कूल उन्हें ही देकर सरकार अघोषित रूप से स्कूलों की भूमि उन्हें ही सौंप रही है। जिस पर भविष्य में मल्टीस्टोरी भवन और नए दफ्तर नजर आ सकते हैं।
पायलट आधार पर कर सकते हैं प्रयोग
यदि केंद्र सरकार पीपीपी मोड पर स्कूल चलाने की अनुमति नहीं देती है, तो भी राज्य सरकार पायलट आधार पर प्रदेश में यह प्रयोग कर सकती है। वर्तमान में इसी की तैयारी है। औपचारिकताएं निर्धारित होने के बाद सरकार पॉलिसी पर काम करेगी।
ऐसा करना खतरनाक
यह बहुत ही खतरनाक है। यह शिक्षा का बाजारीकरण है। ऐसा कर सरकार अपनी जिम्मेदारी से मुंह मोड़ना चाहती है। अच्छी शिक्षा देना सरकार की जिम्मेदारी है। सरकार के पास पर्याप्त संसाधन हैं, पैसों की कमी नहीं है, स्टाफ है। इसके बाद भी अगर सरकार स्कूलों को पीपीपी मोड पर देने की तैयारी कर रही है, तो सरकार की मंशा पर सवालिया निशान उठ रहा है।
एससी बेहार, पूर्व मुख्य सचिव, मप्र शासन
शासन तैयार होगा, तो आगे बढ़ेंगे
सरकारी स्कूलों को पीपीपी मोड पर चलाने की योजना पर काम चल रहा है। शासन तैयार होगा, तो आगे काम बढ़ाएंगे।
एसआर मोहंती, अपर मुख्य सचिव, स्कूल शिक्षा विभाग
केंद्र की अनुमति का इंतजार
अभी मैंने कुछ स्कूलों को पीपीपी मोड पर देने का सुझाव दिया है। सुझाव देने से पहले अधिकारियों से चर्चा हो चुकी है। हालांकि हम केंद्र की अनुमति का इंतजार करेंगे।
पारसचंद्र जैन, मंत्री, स्कूल शिक्षा विभाग