मुंबई – मुंबई के रहने वाले एक गरीब मराठी परिवार के बेटे गोपाल शेटे को बलात्कार के एक झूठे मामले में 7 साल की जेल काटनी पड़ी। 2009 में कुर्ला रेलवे स्टेशन पर एक मंदबुद्धि लड़की के साथ किसी गोपी नामक युवक द्वारा बलात्कार कर फरार हो जाने पर घाटकोपर के नित्यानंद होटल से गोपाल को शक के तौर पर पूछताछ के लिए लाना और फिर जेल में सलाखों के पीछे डाल देना। मुंबई के एक शिक्षित नवजवान गोपाल शेटे के साथ आप बीती सच की कहानी है।
देश में ऐसे कई मामले हैं जिसमे निर्दोषों ने जेल की चक्की पीसी है और अपनी जिंदगी गुमनामी के अँधेरे में गुजार कर सब कुछ खो दिया है। उसीमे एक नाम है मुंबई के शिक्षित नवजवान गोपाल शेटे का है। गोपाल एक कॉमर्स ग्रेजुएट और होटल मैनेजमेंट में उसने कूक की महारत हासिल की है जिसमे उसे कूक का अच्छा खासा ज्ञान है। हिंदमाता को उसने अपनी आपबीती सुनाते हुए कहा की मेरी दो बेटियों को अनाथाश्रम में छोड़ मेरी पत्नी किसी और के साथ भाग गयी। मेरे पिता का निधन हो गया यह सब का जिम्मेदार कौन ?
गोपाल ने बताया घटना 2009 की है जब वो घाटकोपर के नित्यानंद होटल में किचिन में दोपहर के समय खाना बना रहा था। तब कुर्ला की जी आर पी पुलिस आई और उसे बोली की तेरा नाम क्या है इसके द्वारा गोपाल नाम बताने पर पुलिस वाले बोले तुझे हमारे साथ कुर्ला जी आर पी पुलिस थाणे चलना पड़ेगा। किसी मामले में पूछ ताछ करनी है साहब ने बुलाया है और पुलिस वालों ने उसे गोपी गोपी बोलना शुरू कर दिया। इसे क्या पता की इसकी जिंदगी के 7 साल जेल की सलाखों के पीछे काटने पड़ेंगे।
पुलिस वालों के साथ गोपाल कुर्ला जी आर पी पुलिस थाणे आया। उसे बोला की तेरा नाम गोपी है अचानक गोपाल चौंका और बोला नहीं साहब मैं तो गोपाल हूँ आप लोग मुझे गोपी क्यू बोल रहे हो। उसे लगा की दाल में कुछ तो काला है। इसके बाद उसे कुर्ला जी आर पी ने पुलिस ने उसे कोर्ट में हाज़िर किया जहाँ उसे अदालत ने कुर्ला रेलवे स्टेशन के प्लेटफार्म पर एक मंदबुद्धि लड़की के साथ किसी गोपी नामक युवक द्वारा बलात्कार के झूठे मामले में 7 वर्ष कारावास की सज़ा सुनाई गयी और गोपाल चिरल्ला चिरल्ला कर कहता रह की मैं गोपी नहीं हूँ।
जेल के अंदर से अपनी बेगुनाही के सबूत इकट्टा करते उसे काफी वक़्त लग गया उसने आर टी आई के माध्यम से वो सब चीजें हासिल कर ली जिससे वो अदालत में निर्दोष बरी हो सके। इस दौरान उसे टी वी की बिमारी से भी ग्रस्त रहा और हार नहीं मानी उसने अपना मामला अदालत में खुद लड़ा और निर्दोष बरी हुआ अदालत ने यह भी माना की निचली अदालत से गलती हुयी है इस मामले में लेकिन तब तक उसका सब कुछ ख़त्म हो चूका था। इस वक़्त उसकी जिंदगी उसकी दोनों बेटियों के लिए है।
आज वो गोपाल उन नवजवानों के लिए एक आईकॉन है जो हार नहीं माने अपनी लड़ाई को सच की ताकत के साथ लड़े तो जीत उसी की होगी। गोपाल की इस आपबीती से यही सन्देश मिलता है कहीं न कहीं अदालत के फैसले में गलतियां होती हैं लेकिन हार न माने। गोपाल की इस सच की कहानी कई निर्दोषों के दिल में साहस जागेगा जो थक हार चुकें हैं।
रिपोर्ट :- अजय शर्मा