बिहार चुनाव नजदीक है इसके लिये जेडीयू, बीेजेपी, आरजेडी सहित अन्य सारी पार्टीयां कमर कस रही है पर कांग्रेस इस चुनाव में जनता मोर्चा की बी टीम की तरह ही इस बार भी नजर आने वाली है। इस मोर्चे में जहां जेडीयू, बीजेडी जैसी राज्य की बड़ी पार्टीयां एक साथ हैं एक एक सीट पर टिकट की मारा—मारी होगी ऐसे में कांग्रेस के हाथ कुछ सीटों के अतिरिक्त कुछ मिलने वाला नहीं।यर्थाथ के धरातल पर परखा जाये तो जितना नुकसान कांग्रेस पार्टी को भाजपा ने नहीं किया उतना इन क्षेत्रिय दलों ने पहुंचाया है उसका प्रमुख कारण है जिस विचारधारा और वोट बैंक पर कांग्रेस राजनीति करती आई है प्राय: प्राय: ये सभी दल भी उसी तरह की राजनीति करते है।
पूरे देश में नजर डाली जाये तो कश्मीर में नेशनल कांन्फ्रेस, हरियाणा में लोकदल, बिहार में जेडीयू, आरजेडी, लोक जनशक्ति पार्टी उत्तर प्रदेश में सपा, बसपा आंध्र प्रदेश में तेलगुदेशम, महाराष्ट्र में एनसीपी, पश्चिम बंगाल में त्रणमूल कांग्रेस, तमिलनाडु में एआईडीएमके, डीएमके, उडीसा बीजू जनता दल सहित और भी कई छोटे राज्य है जहां कांग्रेस से टूटकर बनी या समान विचारधारा वाले दल राज कर रहे हैं या सत्ता में रहे है। खासकर बिहार और उत्तर प्रदेश जैसे राज्य जहां कांग्रेस का तगड़ा आधार था उस पर सपा,बसपा, जेडीयू, आरजेडी जैसी पार्टियों बड़ी सेंध लगाकर कांग्रेस को लगभग गर्त में पहुंचा दिया। अब इन राज्यों में कांग्रेस इन बड़ी पार्टियों के आधार पर ही राजनीति करना पड़ रहा है।
यर्थाथ के धरातल पर परखा जाये तो जितना नुकसान कांग्रेस पार्टी को भाजपा ने नहीं किया उतना इन क्षेत्रिय दलों ने पहुंचाया है उसका प्रमुख कारण है जिस विचारधारा और वोट बैंक पर कांग्रेस राजनीति करती आई है प्राय: प्राय: ये सभी दल भी उसी तरह की राजनीति करते है।
लोकसभा चुनाव में आई 44 सीटें इस बात की परिणाम है की कांग्रेस को नई तरह से सोचने रणनीति बनाने की जरूरत है। वहीं जिस दिल्ली में लगातार तीन विधानसभा चुनाव में कांग्रेस का शासन था अब जाकर शून्य पर सिमट गया है। ये सोच का विषय है। अब पार्टी की सारी उम्मीदें राहुल गांधी की ओर लगी है हालाकिं उनकी सक्रियता पहले से बढ़ी है पर अभी बहुत कुछ करना बाकि है। पीछले चुनाव में कांग्रेस ने आरजेडी से अलग चुनाव लड़ने का फैसला किया था पर मामला सिफर ही निकला और कांग्रेस को ईकाई की संख्या में आई विधानसभा सीटों पर संतोष करना पड़ा। ये समय देश की सबसे पुरानी पार्टी के सबसे कठिन है लगभग सारे राज्य उसके हाथों से फिसलते जा रहे है, ऐसे में पार्टी को अपना पुराना आधार वापिस लौटना तगड़ी चुनौती है।
:- हर्ष उपाध्याय
लेखक :- हर्ष उपाध्याय ( स्वतंत्र टिप्पणीकार )
माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं जनसंचार विश्वविद्यालय भोपाल
के विस्तार परिसर “कर्मवीर विद्यापीठ” में पत्रकारिता के पूर्व छात्र है ।
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