अंतरराष्ट्रीय बाजार में क्रूड ऑयल की कीमतों में एक बार फिर तेज इजाफा होना शुरू हो चुका है। इस साल जून में ब्रेंट क्रूड के न्यूनतम स्तर 44 डॉलर प्रति बैरल से बढ़कर 63 डॉलर प्रति बैरल तक पहुंच चुकी है। बीते एक महीने के दौरान ग्लोबल मार्केट में क्रूड ऑयल की कीमतों में हो रही लगातार बढ़त से एशियाई और खासतौर पर भारत में मंहगाई बेलगाम होने का खतरा भी बढ़ रहा है।
बाजार के जानकारों का मानना है कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कीमतों में इजाफे का सीधा असर बड़े आयातक देशों की अर्थव्यवस्था पर पड़ता है। वहीं जून 2017 से नवंबर 2017 तक में अंतरराष्ट्रीय बाजार में हुआ इजाफा 30 फीसदी से अधिक है तो जाहिर है कि इसका असर अर्थव्यवस्था पर पड़ना शुरू हो चुका है।
गौरतलब है कि इन 6 महीनों में क्रूड ऑयल की कीमतों में उछाल की तुलना जून 2014 से जनवरी 2015 से की जा सकती है। जहां कीमतें 115 डॉलर प्रति बैरल के उच्चतम स्तर से लुढ़ककर 45 डॉलर प्रति बैरल तक पहुंच गई थी।
हाल ही में रीसर्च ग्रुप नोमुरा ने दावा किया था कि खाड़ी देशों में हालात यूं ही खराब होते रहे तो भारत को कच्चे तेल की बढ़ती कीमतों का खामियाजा भारत जैसे देशों को भुगतना पड़ सकता है। गौरतलब है कि भारत में कच्चे तेल की कुल खपत का 80 फीसदी खाड़ी देशों से निर्यात किया जाता है। लिहाजा, बढ़ती कीमतों का सीधा असर देश में खुदरा महंगाई, विकास दर और जीडीपी पर पड़ना तय है।
क्रूड ऑयल मार्केट और आर्थिक जानकारों के मुताबिक कच्चे तेल की कीमतों में 10 डॉलर प्रति बैरल के इजाफे से देश की जीडीपी में 0.15 फीसदी की गिरावट देखने को मिल सकती है। वहीं देश के चालू खाता घाटा भी जीडीपी के 0.4 फीसदी तक बढ़ सकता है। वहीं आम आदमी के लिए सबसे अहम असर यह पड़ सकता है कि क्रूड ऑयल की कीमतों में प्रति 10 डॉलर के इजाफे से खुदरा मंहगाई दर में लगभग 30-35 बेसिस प्वाइंट का इजाफा हो सकता है। लिहाजा, एक बात साफ हो चुकी है कि बीते तीन साल से केन्द्र में बीजेपी सरकार को मिल रहा कच्चे तेल का फायदा अब खत्म होने के साफ संकेत मिलने लगे हैं।
रुपये के संदर्भ में भारतीय बास्केट के कच्चे तेल की कीमत शुक्रवार को कम होकर 3908.55 रुपये प्रति बैरल हो गई, जबकि गुरुवार को यह 3954.83 रुपये प्रति बैरल थी। रुपया शुक्रवार को मजबूत होकर 64.85 रुपये प्रति डॉलर के स्तर पर बंद हुआ, जबकि गुरुवार को यह 65.30 रुपये प्रति डॉलर था।